इनके प्रयासों से बदल गई सरकारी स्कूल की तस्वीर, राज्य अध्यापक पुरस्कार से भी किया गया है सम्माानित

विपिन उपाध्याय, उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के प्राथमिक विद्यालय अमखेड़ा में शिक्षक हैं, उनके प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों विद्यालय की तस्वीर बदल गई है, जिसके लिए उन्हें राज्य अध्यापक पुरस्कार से 2021 से भी सम्मानित किया गया है। टीचर्स डायरी में पढ़िए कैसी रही है उनकी यात्रा ..

Update: 2023-03-10 09:49 GMT

शायद आपने भी सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा हो, जिसमें प्राथमिक विद्यालय के बच्चे एक वीडियो के जरिए संदेश रहे हैं कि बस में बुजुर्गों और महिलाओं को पहले बैठने की जगह देनी चाहिए। इस वीडियो को बनाया था जालौन जिल के प्राथमिक विद्यालय, अमखेड़ा के शिक्षक विपिन उपाध्याय ने, इन्हें साल 2019 में राज्य अध्यापक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। टीचर्स डायरी में वो अपनी यात्रा के बारे में बता रहे हैं।

पहले ऐसा कुछ सोचा नहीं था कि टीचर बनना है ग्रेजुएशन करने के बाद मैं दिल्ली चला गया। मैं आईटी का छात्र रह चुका हूं तो आगे की पढ़ाई के लिए यही सब कर रहा था मैंने एमएससी के लिए अप्लाई कर रहा था। इसी दौरान पापा ने जिले से फार्म भर दिया और मुझसे कहा कि होगा तो ठीक न हुआ तब भी ठीक। किस्मत से सेलेक्शन भी हो गया। मेरा मन किसी बड़े शहर में जॉब करने का था, क्योंकि मेरे जितने भी दोस्त दिल्ली में जॉब करते थे।

लेकिन फिर माँ और बड़ी दीदी के कहने पर मैं वापस आ गया, बस यहीं से टीचर बनने का सफर शुरू हुआ, शुरू में बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ा। दिल्ली जैसे बड़े शहर से जब आप सीधे अमखेड़ा आ जाते हैं, तब आप समझ सकते हैं कि मन में क्या चल रहा होगा।

लेकिन फिर भी मैंने खुद को समझाया कि यही रहना है तो कुछ तो अलग करना होगा। अगर कोई दोस्त मिलने आता है तो ऐसी जगह तो होनी चाहिए कि लोगों को कुछ बेहतर दिखा सकूं।

स्कूल की स्थिति एकदम सरकारी स्कूल के जैसी थी, छात्राकंन भी ठीक ठीक ही था जो काम हम लोगों को करना पड़ा। मैं 2013 मे पहुंचा तो 2013 मे मैं अकेला था फिर 2014 मे एक प्रधानाध्यापक मिले वीर सिंह आए और उनका सहयोग मुझे अपत्याशित रुप से मिला। जितने लगन के साथ मैं काम कर रहा था उतने ही ज्यादा लगन के साथ वो भी काम कर रहे थे।

एक उद्देश्य के साथ गाँव में कुछ परिवार ऐसे होते हैं जिनके पीछे पूरा गाँव चलता है तो उनसे हमने बात की कि आप अपने बच्चो को उतनी दूर प्राइवेट वाहन या बस से प्राईवेट स्कूल माधवगढ़ भेजते थे। बात की कि आपको क्या चाहिए ऐजुकेशन हम दे रहे हैं और आपको क्या चाहिए।

उधर से जवाब आया कि बच्चे स्कूल जाते नहीं हैं वहां जैसे इन्फास्ट्रक्चर है, कैसे पढ़ने भेज दें हमारे रिश्तेदार क्या कहेंगे। तो धीरे-धीरे हमे समझ मे आने लगा की जिस वजह से एडमिशन नहीं मिल पा रहे थे तो हमने सोचा की हम स्कूल के इन्फास्ट्रक्चर पर काम करेंगे। उसी दौरान हमें ग्राम प्रधान का भी सहयोग मिला। आप विश्वास नहीं करेंगे स्कूल में दोनो तरफ गड्ढे थे। बीच में रास्ता था। साढे तीन सौ ट्राली मिट्टी डलवाई। जमीन समतल करवाई, क्योंकि स्कूल की साजो सज्जा बढ़ने लगी लोग अपने आप आकर्षित होने लगे फिर चारों तरफ से बाउड्री वाल और भव्य गेट कायाकल्प के तहत लगवाया गया।

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इमारत काफी सुन्दर दिखने लगी जो लोग भाग रहे थे वो लोग अब एडमिशन लेने के लिए तैयार होने लगे। फिर हमने सोचा अब कुछ प्रचार-प्रसार भी कराएंगे। गाँव के चारों तरफ बड़ी-बड़ी होर्डिंग लगवा दी। इससे एडमिशन की संख्या बढ़ने लगी पहले बच्चो की संख्या 64 से 70 थी अब 100 से ज्यादा है।

साल 2019 में मुझे स्कूल बदलने का मौका मिला तो उसी गाँव में कन्या प्राथमिक विद्यालय को चुना। यहां के टीचर्स का सहयोग मिला और जो हम दो शिक्षकों ने वहां साज में किया था वो यहां पर दो साल में हो गया। हमारी मेहनत रंग भी लाई आठ साल की नौकरी में स्टेट अवार्ड भी मिल गया है। 

आप भी टीचर हैंं और अपना अनुभव शेयर करना चाहते हैं, हमें connect@gaonconnection.com पर भेजिए

साथ ही वीडियो और ऑडियो मैसेज व्हाट्सएप नंबर +919565611118 पर भेज सकते हैं।

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