ग्राउंड रिपोर्ट: ग्रामीण भारत के स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध नहीं हैं एंटी-वेनम दवाएं, जबकि इन दवाओं का एक प्रमुख निर्माता और निर्यातक देश है भारत

भारत में हर साल कम से कम 58,000 लोग सांप के काटने से अपनी जान गंवा देते हैं, जिनमें से ज्यादातर लोग गाँवों के रहने वाले है। इन मौतों का एक मुख्य कारण समय से एंटी-वेनम दवाओं का ना मिलना है। भारत दुनिया का विष-विरोधी दवाओं का प्रमुख निर्माता और निर्यातक है। लेकिन उसके बावजूद ये दवा ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए अनुपलब्ध क्यों नहीं हैं? सर्पदंश से होने वाली मौतों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने के मकसद से अपने 'द गोल्डन ऑवर' अभियान के तहत गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा के पीएचसी और सीएचसी का दौरा किया। क्या हमें वहां एंटी-वेनम दवाएं मिलीं? जानने के लिए पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट-

Update: 2022-07-16 07:20 GMT

उत्तर प्रदेश/मध्य प्रदेश/ओडिशा। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के झाऊपुर गाँव में पिछले महीने 26 जून को रमाकांत मौर्य के 16 साल के बेटे मुकेश कुमार को सांप ने काट लिया था। लेकिन अस्पताल जाते-जाते ही किशोर की मौत हो गई।

रमाकांत ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मेरा बेटा सुबह करीब दस बजे दुकान से लौट रहा था। उसे एक सांप ने काट लिया। हम तुरंत उसे एक तांत्रिक के पास ले गए। उसने कहा कि वह मदद नहीं कर पाएगा" तब मुकेश का परिवार उसे वहां से तकरीबन 16 किलोमीटर दूर गोला में सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) लेकर गया।

बेटे की मौत से आहत पिता ने बताया, "यहां जहरीले सांप के काटने के लिए कोई दवा नहीं थी। तो, हम उसे गोला से लगभग 36 किलोमीटर दूर लखीमपुर के जिला अस्पताल ले गए। लेकिन जब तक हम वहां पहुंचे, मुकेश की जान जा चुकी थी।"

26 जून को मुकेश को सांप ने काट लिया था। जब तक परिजन उसे अस्पताल पहुंचा पाते तब तक मुकेश की मौत गई। फोटो: रामजी मिश्रा

मुकेश की तरह ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के अंजेली गाँव के 45 साल के गौरंगा चरण दास को भी 2 जून को सांप ने काट लिया था। उन्हें मारसाघई के सीएचसी ले जाया गया। उनकी हालत काफी गंभीर थी। उन्हें लगभग 70 किलोमीटर दूर कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भेज दिया गया। दास ने लगभग एक महीने तक अपने जीवन के लिए संघर्ष किया, मगर वह बच नहीं पाया। इस महीने की शुरुआत में 4 जुलाई को उनकी मौत हो गई।

सांप के काटने के बाद पहले घंटे को 'द गोल्डन ऑवर' के रूप में जाना जाता है। यही वो समय होता है जब सही उपचार से लोगों की जान बचाई जा सकती है। लेकिन, अगर एंटी-वेनम दवा देने में देरी हुई, तो संभावना है कि सांप के काटने से शरीर के अंगों को नुकसान पहुंच सकता है या फिर मौत का कारण बन सकता है। जैसा कि मुकेश कुमार और गौरांग चरण दास के मामले में हुआ था।

'ट्रेंड इन स्नेक बाइट मोर्टेलिटी इन इंडिया फ्रॉम 2000 टू 2019 इन ए नेशनलटी रिप्रेजेंटेटिव मोर्टेलिटी स्टडी' नाम की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल सांपों के काटने की 28 लाख घटनाएं होती हैं जिसमें से 58,000 लोग मर जाते हैं। सर्पदंश से होने वाली मौतों में 94 प्रतिशत मामले ग्रामीण भारत से हैं।

मौतों के मुख्य कारणों में से एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में एंटी-वेनम दवाओं की अनुपलब्धता है और कभी-कभी सीएचसी में भी यह दवा नहीं मिल पाती है, जो गाँवों के सबसे नजदीकी केंद्र हैं। इसके अलावा गाँव के लोगों में सांप के काटने को लेकर गलत जानकारियां है जिससे महत्वपूर्ण समय बर्बाद हो जाता है।

विडंबना यह है कि भारत इन दवाओं के प्रमुख उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। मौजूदा समय में भारत में सात प्रयोगशालाएं एंटी वेनम का उत्पादन कर रही हैं। भारत में एंटी वेनम के लिए स्नेक वेनम प्रोडक्शन नामक 2019 के एक शोध पत्र में भारत की कुल उत्पादन क्षमता 20 लाख, 10-एमएल शीशियों का सालाना अनुमान लगाया गया है।

भारत एंटीवेनम दवाओं के प्रमुख उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। फोटो: यश सचदेव

भारत एंटी वेनम का सबसे बड़ा निर्यातक भी है, जैसा कि एक व्यापार विशेषज्ञ कंपनी वोल्ज़ा ग्रो ग्लोबल ने बताया है। यह पाकिस्तान, नाइजीरिया और घाना को एंटी वेनम निर्यात करता है। देश में 59 स्पलायर एंटी वेनम का निर्यात करते हैं।

केरल स्थित ऐप 'इंडियन स्नेक' के संस्थापक जोस लुईस ने गाँव कनेक्शन को बताया, "इस तथ्य के बावजूद कि हम एंटी-वेनम के अग्रणी निर्माता हैं और इसके सबसे बड़े निर्यातक भी हैं, हमारे ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र एंटी-स्नेक वेनम की भारी कमी की रिपोर्ट करते हैं, "इंडियन स्नेक एप भारतीय सांपों और उनसे संबंधित जानकारी के लिए भारत के सबसे बड़े डिजिटल डेटाबेस वाला एक अग्रणी मंच है। वह प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) के सांपों के विशेषज्ञ भी हैं।

स्नेक बाइट हीलिंग एंड एजुकेशन सोसाइटी की फाउंडर प्रियंका कदम ने लुईस की बात का समर्थन करते हुए कहा, "समस्या विष-विरोधी दवाओं की कमी के साथ नहीं है। चार से अधिक प्रमुख कंपनियां हैं जो एंटी-वेनम का निर्माण करती हैं। समस्या राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभागों द्वारा इसके वितरण के साथ है, "मुंबई स्थित स्नेकबाइट एक्सपर्ट जोकि कम्युनिटी व एडवोकेसी से भी जुड़ी हुई हैं, ने कहा।

सांप के काटने से होने वाली मौतों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने के मकसद से गाँव कनेक्शन ने 16 जुलाई को विश्व सांप दिवस पर 'द गोल्डन ऑवर' नाम से एक महीने का अभियान शुरू किया है। अभियान के एक हिस्से के रूप में गाँव कनेक्शन के पत्रकारों ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा के कई पीएचसी और सीएचसी का दौरा किया, ताकि यहां की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में एंटी-स्नेक वेनम दवा की उपलब्धता की जांच की जा सके। इन ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में बड़ी संख्या में एंटी वेनम दवा उपलब्ध नहीं थी।

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पीएचसी में नहीं मिलती एंटी-वेनम

एंटी-स्नेक वेनम को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए 'आवश्यक' दवा के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। पीएचसी के लिए भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) 2012 के दिशानिर्देशों के अनुसार, 24 घंटे की आपातकालीन सेवाओं में चोटों और दुर्घटना का उचित प्रबंधन, प्राथमिक उपचार, घावों की सिलाई, फोड़े का चीरा और कुत्ते के काटने / सांप के काटने / बिच्छू के काटने आदि के मामलों में रेफरल से पहले मरीज की मेडिकल कंडीशन को स्थिर करना शामिल है।

ओडिशा के केंद्रपाड़ा में एक सामाजिक कार्यकर्ता और इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने वाले अमरबरा बिस्वाल ने कहा, "लेकिन वास्तविकता इससे काफी अलग है। सांप के काटने से संबंधित आपात स्थितियों से निपटने के लिए ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली की तैयारियां दयनीय है" उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "चिकित्सा कर्मियों की कमी, खराब परिवहन सेवाएं और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कई सर्पदंश पीड़ित झोलाछाप डॉक्टरों से तुरंत इलाज कराने के लिए मजबूर हो जाते है, जो उन्हें और जोखिम में डाल देते हैं।"

गाँव कनेक्शन ने मध्य प्रदेश के विदिशा, रायसेन और गुना जिलों के कई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का दौरा किया और उनमें से अधिकांश में विष-रोधी दवाएं नहीं थीं। यहां एक मुट्ठी भर दवाओं को अन्य दवाओं के साथ रखा गया था, जबकि इन दवाओं को रेफ्रिजरेशन की जरूरत होती है। वहीं कुछ पीएचसी में दवाएं एक्सपायरी डेट को पार कर चुकी थीं।

जब गाँव कनेक्शन ने 28 जून को रायसेन जिले के दीवानगंज स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का दौरा किया गया तो उनके पास भी स्टॉक में कोई एंटी-वेनम दवा नहीं मिली। पीएचसी के डॉक्टर एके माथुर ने कहा, "इस समय हमारे पास एंटी-वेनम दवा नहीं है, लेकिन यह हमारे पास होनी चाहिए।"

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के मुदियाखेड़ा पीएचसी के डॉक्टर सुरेश यादव का भी यही कहना था। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "आपको किसी भी पीएचसी में एंटी-वेनम दवाएं नहीं मिलेंगी। वे केवल ब्लॉक और जिला स्तर के अस्पतालों में उपलब्ध हैं।"

यादव ने समझाते हुए कहा, 'मरीज को सिर्फ एंटी वेनम देना ही काफी नहीं है। आईसीयू का होना भी जरूरी है। हालत खराब होने पर उसे वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है।" वह आगे कहते हैं, "सिर्फ इतना ही नहीं, सांप के काटने के मामलों को संभालने के लिए प्रशिक्षित चिकित्सकों की भी जरूरत होती है। पीएचसी में वे नहीं हैं और यही कारण है कि सर्पदंश के मरीजों को अपनी जान जोखिम में डालकर जिला अस्पतालों तक की लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।"

गाँव कनेक्शन ने 7 जुलाई को 160 किलोमीटर से ज्यादा दूर, मध्य प्रदेश के गुना जिले में उमरी के उप स्वास्थ्य केंद्र का दौरा किया लेकिन उन्हें वहां ये दवाएं नहीं मिलीं। उप स्वास्थ्य केंद्र की स्वास्थ्य अधिकारी उषा ने कहा, "जिला अस्पताल में एंटी-वेनम दवाएं मिल जाएंगी।"

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गाँव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश में पीएचसी का भी दौरा किया, जो देश में सबसे ज्यादा सर्पदंश से होने वाली मौतों की रिपोर्ट करता है। यहां की कहानी भी अलग नहीं थी।

8 जुलाई को जब गाँव कनेक्शन लखीमपुर खीरी जिले के झाओपुर पीएचसी पहुंचा तो वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। लेकिन फार्मासिस्ट मनोज मौर्य से बातचीत हो गई। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे पीएचसी में कोल्ड स्टोरेज की कोई सुविधा नहीं है और न ही हमारे पास दवा है।"

सीतापुर जिले के बिहट गौर पीएचसी में फार्मासिस्ट एसके वर्मा ने कहा कि स्वास्थ्य केंद्र में बिजली नहीं है इसलिए वहां टीके नहीं रखे जा सकते।

हालांकि सीतापुर के महोली में सीएचसी के डॉक्टर इमरान अली ने कहा कि उनके पास लगभग 35-40 टीके उपलब्ध हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा, "इसके अलावा, हमने अपने अधीन आने वाले पीएचसी में से हर एक को 10 टीके भी आवंटित किए हैं। अब नई तरह की एंटी-वेनम दवाएं आ रही हैं, उन्हें विशेष रेफ्रिजेरेशन की जरूरत नहीं होती।"

यहां से 12 किलोमीटर से थोड़ी ही दूर सीतापुर में सीएचसी पिसावा के एक अन्य डॉक्टर संजय श्रीवास्तव कुछ अलग ही कहानी कहते नजर आए. उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "इस सीएचसी के अंतर्गत आने वाले पीएचसी में कोई एंटी-वेनम टीके उपलब्ध नहीं हैं और न ही इन दवाओं के भंडारण की कोई सुविधा है। सीएचसी के पास स्टॉक में लगभग 10 टीके हैं।"

ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में अतिरिक्त जिला चिकित्सा अधिकारी ए बेग ने कहा, "जिला मुख्यालय अस्पताल, नौ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और 45 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में एंटी-वेनम दवाएं उपलब्ध हैं। लेकिन हमने जिले के 227 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों में एंटी-वेनम वैक्सीन का स्टॉक नहीं किया है क्योंकि ये सेंटर ग्रामीण इलाकों में केवल स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा चलाए जा रहे हैं।

अतिरिक्त जिला चिकित्सा अधिकारी ने आगे कहा: "जिले में हर साल बीस से पच्चीस लोग सांप के काटने से मर जाते हैं। यह साल अलग नहीं है। राज्य सरकार एक सांप के काटने से मरने वाले के परिवार के सदस्यों को 4 लाख रुपये का मुआवजा देती है।

ओडिशा स्टेट डिजास्टर मिटिगेशन अथॉरिटी के आंकड़े बता रहे हैं कि ओडिशा में सर्पदंश से मरने वालों की संख्या दोगुनी हो गई है। 2015-16 में मौतों का आंकड़ा 520 था। लेकिन 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में सालाना सर्पदंश से होने वाली मौतों ने हजार का आंकड़ा पार कर लिया।

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गोल्डन ऑवर का महत्व

भारत में लगभग 90 प्रतिशत मामले 'बिग फोर'- करैत, भारतीय कोबरा, रसेल वाइपर और आरी स्केल्ड वाइपर के काटने के होते हैं। जुलाई 2020 के अध्ययन से पता चलता है कि सर्पदंश से होने वाली मौतों में से 70 प्रतिशत आठ राज्यों - बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश (जिसमें अभी हाल ही में बना तेलंगाना राज्य शामिल है), राजस्थान और गुजरात में हुई। हर साल 8,700 मौतों के साथ उत्तर प्रदेश इस सूची में सबसे ऊपर है।

नई दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के चिकित्सा वैज्ञानिक जॉय कुमार चकमा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ग्रामीण भारत में सर्पदंश आम है क्योंकि बहुत से लोग खेतों और जंगलों में काम करते हैं जहां सांपों के मिलने की संभावना अधिक होती है।" वैज्ञानिक ने कहा, "हमारे देश में लगभग दस लाख सर्पदंश का अनुमान है। ऐसे मामलों में एंटी-वेनम दिया जाना चाहिए। लेकिन, अधिकांश ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में न तो स्टाफ होता है और न बुनियादी ढांचा। यही वजह है कि ऐसे मामलों को जिला अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है।"



चकमा ने "व्हाइट पेपर ऑन वेनॉमस स्नेक बाइट इन इंडिया" नामक एक पेपर लिखा है जिसे पिछले साल 2021 में प्रकाशित किया गया था। वैज्ञानिक का ये पत्र विभिन्न कारणों पर चर्चा करता है। पेपर के मुताबिक, जहरीले सांपों के कारण उच्च मृत्यु दर और रुग्णता हो सकती है। साथ ही वह नीतिगत निर्णयों, वेनम की गुणवत्ता में सुधार और एंटी-स्नेक वेनम पर सिफारिशें भी देता है।

'द गोल्डन ऑवर' के दौरान इलाज में देरी का अर्थ अक्सर विकलांगता या मृत्यु होता है। उत्तर प्रदेश के महोरा गाँव की मीनू कनौजिया, ओडिशा के बलिया गाँव की जानकी साहू और मध्य प्रदेश के पतिचक्क गांव की हरिवती आदिवासी सभी को जहरीले सांपों ने काटा था। डॉक्टरों का कहना है कि जानकी और हरिवती (वह नौ महीने की गर्भवती थीं) की मृत्यु हो गई, जबकि मीनू 30 जून से लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में बेहोश पड़ी थी। उनका ब्रेन डैमेज हो चुका था। 55 साल की मीनू के बचने की संभावना दिन पर दिन कम होती गई और 14 जुलाई को उनकी मौत हो गई।

मीनू के बेटे धर्मेंद्र कुमार ने 7 जुलाई को गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने अपने गाँव से आठ किलोमीटर दूर मल्हौर गांव में निकटतम सीएचसी को फोन किया था। उन्होंने उसे सीधे लखनऊ के सरकारी अस्पताल ले जाने की सलाह दी, जो यहां से करीब 20 किलोमीटर दूर है।" उन्होंने कहा, "दो सप्ताह से ज्यादा का समय हो गए और उसे 30 से अधिक एंटी-वेनम टीके लगा चुके हैं, लेकिन वह अभी भी बेहोश है या फिर दौरे पड़ रहे हैं। उन्हें लगातार दर्द निवारक दवाएं दी जा रही थी।" 

मीनू, 30 जून से बेहोश पड़ी थी, लखनऊ के एक सरकारी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, जहां 14 जुलाई को उनकी जान चली गई। फोटो: अरेंजमेंट 

12 जुलाई को गाँव कनेक्शन ने यह जानने के लिए मल्हौर गाँव के सीएचसी का दौरा किया कि मीनू को लखनऊ ले जाने की सलाह क्यों दी गई। मल्हौर सीएचसी के डॉक्टर अविनाश कुमार ने कहा कि गंभीर मामलों को नियमित रूप से बड़े अस्पतालों में रेफर किया जाता है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारे पास एंटी वेनम है, लेकिन अगर लक्षण गंभीर हैं और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगे, तो हम उन्हें बड़े केंद्रों में रेफर कर देते हैं।"

मध्य प्रदेश के पतिचक्क गाँव की हरिवती आदिवासी की कहानी और भी दुखद थी। वह नौ महीने की गर्भवती थी जब उसकी सर्पदंश से मौत हो गई। उसके पति ने एम्बुलेंस को फोन किया जो कभी नहीं आई। उन्होंने कहा, "मुझे एक प्राइवेट गाड़ी करनी पड़ी, जिसकी तलाश में कीमती समय लग गया। जब तक मैं हरिवती को 25 किलोमीटर दूर सीएचसी खनियाधना लेकर पहुंचा, तब तक मेरी पत्नी और मेरे अजन्मे बच्चे दोनों की मौत हो चुकी थी।"

मध्य प्रदेश के उज्जैन में रेप्टाइल कंजर्वेशन सेंटर के निदेशक मुकेश इंगले ने गांव कनेक्शन को बताया, "हर साल अकेले मध्य प्रदेश में हरिवती जैसे 2000 से ज्यादा लोग सर्पदंश से मर जाते हैं।" उन्होंने कहा, "ज्यादातर सर्पदंश ग्रामीण भारत के भीतरी इलाकों में होते हैं और इसके कारण बड़ी संख्या में मौतें होती हैं क्योंकि पीड़ितों को समय पर एंटी-वेनम नहीं मिल पाता है।"

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पीएचसी में एंटी वेनम क्यों नहीं?

ICMR के वैज्ञानिक जॉय कुमार चकमा ने बताया कि सरकार किस तरह से एंटी-वेनम ड्रग्स की खरीद और वितरण करती है, "केंद्र सरकार निर्माताओं से रियायती दर पर एंटी-स्नेक वेनम खरीदती है और फिर उन्हें राज्यों को मुहैया कराती है। आईसीएमआर वैज्ञानिक ने कहा कि जरूरत और इलाके में सर्पदंश की घटनाओं के आधार पर पर्याप्त मात्रा में कोल्ड चेन के जरिए स्वास्थ्य केंद्रों को एंटी-वेनम की शीशियों की आपूर्ति की जाती है।

भारत सीरम एंड वैक्सीन लिमिटेड भारत में अग्रणी एंटी-स्नेक वेनम उत्पादकों में से एक है। इसकी एक शीशी की कीमत लगभग 600 रुपये है। ये सरकारी अस्पतालों और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त में दी जाती हैं।

लुईस ने बताया कि यहां समस्या मात्रा की नहीं है बल्कि उदासीन रसद प्रबंधन का मामला है। उन्होंने कहा, "राज्य एंटीवेनम खरीदते हैं लेकिन वितरण प्रबंधन एक मुद्दा है। अगर कोई कमी होती है, तो स्टॉक समय पर नहीं भरा जाता है।"

प्रियंका कदम के अनुसार, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में एंटी-वेनम की अनुपलब्धता के अलावा, सर्पदंश के कारण पंजीकृत मौतों की संख्या और असल में हुई मौतों की संख्या में भी भारी अंतर है, जिनमें से अधिकांश की रिपोर्ट नहीं की गई।

"इससे समस्या का मुकाबला करने के लिए कोई मजबूत रणनीति बनाना मुश्किल हो जाता है। हमें लगता है कि संख्या (सांप के काटने से होने वाली मौतें) बहुत अधिक हैं, "स्नेकबाइट हेल्थ एंड एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक ने कहा।

यह ग्राउंड रिपोर्ट पंकजा श्रीनिवासन ने लखनऊ (यूपी) से शिवानी गुप्ता, सीतापुर और लखीमपुर खीरी (यूपी) से रामजी मिश्रा, विदिशा (एमपी) से सतीश मालवीय और गुना (एमपी) से बृजेंद्र दुबे के सहयोग से लिखी है।

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