यूपी के उन्नाव के 13 गाँवों में धान के खेत में भर गया नाले का गंदा और प्रदूषित पानी

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 1,000 किसानों के उपजाऊ खेत सीईटीपी नाले से निकलने वाले अपशिष्टों में डूबे हुए हैं, लगभग एक महीने से यही हाल है। अधिकारी मानते हैं कि नाले की अधूरे गाद की सफाई नहीं हुई है, जबकि सीईटीपी के मालिक इसके लिए अक्टूबर की बारिश को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। किसानों की धान की खड़ी फसल बर्बाद हो गई है और अब वे चिंतित हैं कि वे रबी गेहूं की बुवाई समय पर नहीं कर पाएंगे।

Update: 2022-11-09 07:16 GMT

कंचन खेड़ा, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। दस बीघा जमीन उन्होंने लीज पर ली थी। लेकिन आज जब उनकी फसल कटने के लिए तैयार खड़ी है, तो उसको बर्बाद होते हुए देखना 28 साल के श्रीकृष्ण रावत के लिए आसान नहीं है। वह इस नुकसान से काफी परेशान और दुखी हैं।

"मैंने इस दस बीघा जमीन पर धान की खेती में अब तक 60,000 रुपये खर्च कर दिए थे। यह मेरी जमीन नहीं थी, मैंने इसे बटाई पर लिया था। अब पूरा खेत बदबूदार, प्रदूषित पानी में डूबा हुआ है। मेरी पूरी फसल बर्बाद हो गई और उपजाऊ जमीन को जो नुकसान पहुंचा, वो अलग, "कंचन खेड़ा गाँव निवासी रावत ने गाँव कनेक्शन से शिकायत करते हुए बताया।

कंचन खेड़ा गाँव से होकर गुजरने वाले गंदे नाले की ओर इशारा करते हुए रावत ने कहा, "मैंने अपनी सारी बचत इस उम्मीद में खर्च कर दी कि मुझे इस साल अच्छा मुनाफा हो जाएगा। मैं सूखे और कीटों के हमलों से अपनी फसल बचाने में कामयाब रहा। लेकिन नाले से हो रहे इस पानी के रिसाव ने मुझे और मेरे परिवार पर कहर बरपा दिया है। परिवार को खिलाने लायक अनाज की कटाई तो भूल जाओ, खराब हुआ धान मेरे मवेशियों को खिलाने लायक भी नहीं है।"

रावत उन 13 गाँवों के एक हजार से ज्यादा किसानों में से एक हैं, जिनके खेत नाले से निकले गंदे पानी से भर गए हैं। यह नाला पास के बंथर गाँव में स्थित कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) से निकलने वाले अपशिष्टों को ले जाने के लिए है। संयंत्र की क्षमता 1.5 मिलियन लीटर प्रतिदिन है और इसका 40 किलोमीटर लंबा नाला घसील पुरवा गाँव में समाप्त होता है जहां यह पानी को गंगा में बहा देता है।


कंचन खेड़ा गाँव के किसानों का आरोप है कि सीईटीपी के नाले की सफाई हुए काफी समय हो गया है, जिसके कारण यह लबालब भरा हुआ है। इससे रिसकर निकल रहे पानी से यहां के खेत जलमग्न हो गए हैं।

प्रधान संघ के नेता वीरेंद्र यादव ने गाँव कनेक्शन को बताया कि कंचन खेड़ा, रघुनाथ खेड़ा, पीपर खेड़ा, बलिया खेड़ा, डकरी, नया खेड़ा, कर्मी, बिजलामऊ, जालिमखेड़ा, बबुरिहा, जेवाखेड़ा, जोजापुर और सुपासी इलाके नाले के प्रदूषित पानी से खासा परेशान हैं।

रावत की तरह ही 55 साल की राजरानी देवी को भी अपनी निराशा को अपने तक ही सीमित रखना मुश्किल हो रहा है। जब गाँव कनेक्शन ने 6 नवंबर को कंचन खेड़ा गांव का दौरा किया, तो देवी अपने मवेशियों के चारे के रूप में इस्तेमाल करने की उम्मीद में गंदे पानी से भरे अपने खेत से धान की फसल को काटने में लगी थी।

उन्होंने बताया, "मेरी सारी मेहनत बर्बाद हो गई है। मैंने पिछले साल किसी तरह 15,000 रुपये बचाए थे। अपने खर्चों में कटौती की और इस पूरे पैसे को अपने डेढ़ बीघा (एक हेक्टेयर का एक चौथाई) धान की फसल पर लगा दिया। अब मेरा धान कटने से लगभग 15 दिन पहले हमारे खेत में घुसे गंदे पानी में सड़ रहा है। बस इस उम्मीद मैं हूं कि किसी तरह से अपने मवेशियों को खिलाने के लिए कुछ फसल बचा लूं" उनके मुताबिक करीब एक महीने से नाला ओवरफ्लो होकर बह रहा है।

'नाला रिसने से गेहूं के लिए जमीन तैयार करना नामुमकिन'

उधर इलाके के कई किसानों ने शिकायत की कि नाले से रिसने वाले पानी की समस्या का तत्काल समाधान नहीं किया गया तो उनकी अगली फसल (रबी) की बुवाई भी प्रभावित हो जाएगी।

रघुनाथ खेड़ा गाँव के 60 वर्षीय किसान भगौती रावत ने गाँव कनेक्शन को बताया, "गेहूं बोने के लिए खेत तैयार करने का समय आ गया है। अगर अधिकारी तुरंत समस्या का समाधान नहीं करते हैं, तो हमें गेहूं की बुवाई में देर हो जाएगी।"

लेकिन ट्रीटमेंट प्लांट के अधिकारी अक्टूबर के बाद हुई अधिक बारिश को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। उनके मुताबिक इसी वजह से नाले में पानी का स्तर बढ़ा है।

किसान ने यह भी बताया कि उन्होंने अपने खेतों में इतना कचरा पहले कभी नहीं देखा था।

उन्होंने कहा, "इस समस्या की जड़ नाले को समय पर साफ न करना है। लंबे समय से नाले की सफाई नहीं की गई है। गाद की वजह से नाला संकरा होता चला गया हैं और इसमें ऊपर तक पानी भर गया. अब नाले से पानी रिसकर हमारे खेतों में घुस रहा है।"

गाद न निकालने वजह से हुआ रिसाव

जब गाँव कनेक्शन ने नाले से रिस रहे पानी का कारण जानने के लिए सीईटीपी और राज्य के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया तो भगौती रावत की शिकायत सही पाई गई।

सिंचाई विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर शैलेंद्र कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "विचाराधीन नाला चालीस किलोमीटर लंबा है। पिछली बार इसकी डिसिल्टिंग 2020 में की गई थी। नाले की सफाई आंशिक रूप से की गई थी, क्योंकि उस समय कोविड-19 महामारी के चलते काम को रोक देना पड़ा था।"

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अधिकारी ने आगे कहा, "हम जानते हैं कि वाटरलोगिंग नाले के कारण हो रही है। नाले की पूरी तरह से गाद निकालने के लिए जितने फंड की जरूरत होगी, उसका आकलन कर उसे उच्च अधिकारियों के पास भेज दिया गया है। एक बार इसकी पूरी गाद निकालने का काम अच्छी तरह से हो जाने के बाद हम उम्मीद करते हैं कि इस तरह की समस्या दोबारा नहीं होगी।

लेकिन ट्रीटमेंट प्लांट के अधिकारी अक्टूबर के बाद हुई अधिक बारिश को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते है।. उनके मुताबिक इसी वजह से नाले में पानी का स्तर बढ़ा है।

उपचार संयंत्र के महाप्रबंधक ऋतुराज साहू ने गांव कनेक्शन को बताया, "क्षेत्र में कुल 27 टेनरियों का अपशिष्ट हमारे उपचार संयंत्र में भेजा जाता है। ट्रिटेड पानी का इस्तेमाल इलाके के खेतों में सिंचाई के लिए किया जाता रहा है।"

उन्होंने आगे कहा, "अक्टूबर के बाद से काफी ज्यादा बारिश हुई है जिससे अपशिष्टों का प्रवाह बढ़ गया है। हम अतिरिक्त अपशिष्ट नहीं छोड़ रहे हैं। पहले 2020 में हम 1,200-1,300 किलोलीटर ट्रीटिड अपशिष्ट छोड़ते थे। अब हम बमुश्किल 1,100 किलोलीटर ही छोड़ रहे हैं।"

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