Amway और Oriflame जैसी कंपनियों के आएंगे अच्छे दिन!

Arvind ShukklaArvind Shukkla   30 July 2016 5:30 AM GMT

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नई दिल्ली। दुकान और डीलर के बजाए (Direct Selling Industry) सीधे उपभोक्ताओं को उत्पाद बेचने वाली कंपनियों के अच्छे दिन आने वाले हैं। एमवे (Amway), टपरवेयर (Tupperware), ओरीफ्लेम (Oriflem), मोदीकेयर (Modicare) और एवॉन (Avon) जैसी अब बिना किसी रुकावट के काम कर सकेंगी। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इस इंड्रस्ट्री को संचालित करने की गाइड लाइन तैयार कर ली हैं, जिनका जल्द ऐलान हो सकता है।

भारत में करीब 7000 करोड़ की डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री (Direct Selling Industry) बिना किसी नियम क़ायदे के चल रही थीं। हालांकि केरल और राजस्थान ही दो राज्य है जहां अपने स्तर पर डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री (Direct Selling Industry) के लिए दिशा निर्देश तय हैं। अब उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री (Direct Selling Industry) के लिए नियम-क़ायदे तय कर दिए हैं।

इन नियमों के तहत अब एमवे या टपरवेयर जैसी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों (Direct Selling Industry) का एजेंट बनने के लिए कोई फीस देने की ज़रूरत नहीं होगी। साथ ही अगर उपभोक्ता इन कंपनियों से लिए गए उत्पाद से संतुष्ट नहीं हैं, तो उसे 30 दिन के अंदर लौटा भी सकेंगे। ऐसे कई और नियम डीएसए की गाइडलाइंस में होंगे। उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने इन गाइडलाइंस पर इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से चर्चा की है। इस बैठक में उन्होंने कारोबारियों से साफ तौर पर ये बताने को कहा है कि उनका काम करने का तरीका क्या है?

इंडस्ट्री (Industry) चाहती है कि केंद्र की गाइडलाइंस आने के बाद इसे कानून के दायरे में भी लाया जाए। अपने कारोबार को पॉन्जी स्कीम (ललचाऊ योजनाएं) की छवि से बचाने के लिए पिछले 15 साल से डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री को इस तरह के दिशा निर्देश का इंतजार है। मंत्रालय के साथ हुई इंडस्ट्री की बैठक के बाद अब उम्मीद जताई जा रही है कि ये इंतजार जल्द खत्म होगा।

डायरेक्ट सेलिंग कंपनी (Direct Selling Industry) क्या है?

ये कंपनियां अपने उत्पाद के ना तो डीलर बनाती हैं और न ही दुकानों पर बेचने के लिए भेजती हैं, बल्कि सीधे उपभोक्ता को सामान बेचने के लिए एजेंट रखती हैं। जो सीधे कंपनी से माल मंगाकर उपभोक्ता को बेचते हैं बदले में अपना कमीशन कंपनी से ही लेते हैं। सामान बेचने वाले इन कंपनियों के स्थाई कर्मचारी नहीं होते हैं। वो अपने आसपास और जानकारों को सामान बेचते हैं। इस वक्त व्हाट्सएप और सोशल साइट्स इनकी बिक्री का बड़ा जरिया बनी हैं।

कैसे होती है कंपनी से जुड़ने वालों की कमाई

उपभोक्ताओं को सीधे सामान बेचने वाली कंपनियां दो तरह की होती हैं। सिंगल लेवल मार्केटिंग और मल्टीलेवल मार्केटिंग। सिंगल लेवल में कंपनियां सीधे सामान बेचने वाले को कमीशन देती हैं जबकि मल्टीलेवल में आपके नीचे जुड़ने वाले लोगों का भी कमीशन आप को मिलता है। ज्यादा कमाई के लिए विक्रेता अपने नीचे लोगों को जोड़ने की जुगत में लगे रहते हैं। 

ये भारत का सबसे प्रचलित और विवादित मॉडल भी है। विवाद की वजह ऐसी कई कंपनियां थीं जो फर्जीवाड़ा कर फरार हो गईं दूसरे कथित तौर पर वह नियम जिसमें अपने नीचे लोगों की चेन (पिरामिड) बनाने पर ही कमीशन मिलता था। हालांकि कंपनियों की सफाई ये थी कि सिर्फ अपने नीचे जोड़ने से कमीशन नहीं मिलता बल्कि लगातार काम करने से ही पैसे कमाई जा सकते हैं। दूसरा रातों-रात अमीर बनने का भी कोई रास्ता उनकी कंपनियों तक नहीं आता।

इंडस्ट्री और गाइड लाइन से जुड़ी बड़ी बातें

  • 7000 करोड़ रुपये का है भारत में इन कंपनियों का कारोबार
  • कंपनी का एजेंट बनने के लिए नहीं देनी होगी एंट्री फीस
  • 30 दिन में उपभोक्ता लौटा सकेंगे सामान

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने इन कंपनियों से साफ पूछा है कि वो अपनी ऑपरेशन पॉलिसी यानी काम करने का ढंग बिल्कुल साफ तरीके से बताएं।

इंड्रस्ट्री से जुड़ी कंपनियां खुद चाहती हैं गाइडलाइऩ बनाकर इसे कानून के दायरे में लाया जाए, जिससे उन्हें संशय की दृष्टि से न देखा जाए।

पॉन्जी स्कीम यानी ललचाऊ योजनाएं 

“एक लाख लगाइए और दो साल में 10 लाख कमाईए”। “बिना कोई पैसे खर्च किए, घर बैठे दो घंटे काम करके बनिए करोड़पति।” ऐसे नारों के साथ उपभोक्ताओं को फंसाने वाली कंपनियों को पॉन्जी कंपनी यानी लालच देकर हड़पने वाली कंपनी कहते हैं। लगातार सामने आते मामले बताते हैं कि लुभावनी योजनाएं यानी पॉन्जी स्कीम पैसा डूबने के पूरे चांस होते हैं और ये स्थाई नहीं होती बावजूद इनके जाल में फंस जाते हैं और अपनी जमा पूंजी गंवा बैठते हैं।

ये योजनाएं इतनी जटिल यानी उलझी हुई होती हैं कि लोगों को आसानी से समझ नहीं आती। ये योजनाएं शत-प्रतिशत रिजल्ट का दावा करती हैं। जबकि भारत में बैंक और डाक घर के अलावा कोई ऐसी स्कीम नहीं हैं जहां निश्चित तौर पर गारंटी मिले। कंपनियों की जालसाजी रोकने के लिए सेबी (SEBI) जैसी संस्थआएं देश में हैं लेकिन मल्टीलेवल मार्केटिंग कंपनियां इनके दायरे में नहीं आती। कुछ कंपनियों की धोखाधड़ी के चलते सही तरीके से काम करने वाली कंपनियां भी शक की नज़र से देखी जाती हैं। पॉन्जी स्कीम और कंपनियों से बचने का बेहतर तरीका है खुद ही सावधान रहा जाए।

 

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