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60 रुपए लीटर बिकता है देसी गाय का दूध , गोबर से बनती है वर्मी कंपोस्ट और हवन सामग्री  

cow milk

सीतापुर (उत्तर प्रदेश) गाय को लेकर देश भर में दो तरह की बातें चर्चा में हैं, एक गौरक्षक को लेकर बवाल चल रहा है तो दूसरी तरफ वो किसान हैं जो छुट्टा जानवरों से परेशान हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या गोवंश की है। ये गायें छुट्टा इसलिए हैं क्योंकि किसानों के काम की नहीं हैं। लेकिन सीतापुर के एक किसान के रास्ते पर चला जाए तो कई मुश्किलें आसान हो सकती हैं।

सीतापुर का ये किसान अपनी देसी गायों का दूध न सिर्फ 60 रुपए प्रति लीटर बेचता है, बल्कि उनके गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाता है तो गोमूत्र से जैविक कीटनाशक और पंचगव्य बनाते हैं। पूजा-पाठ में सामग्री कम लगे इसलिए वो गोबर, गोमूत्र और आम की लड़कियों के बूरे को मुलाकर हवन की लकड़ियां बनाते हैं।

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सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर मिश्रिख ब्लॉक के दशरथपुर गाँव में रहने वाले कमलेश सिंह के पास 70 देशी गौवंश हैं। जिनमें गिर, साहिवाल और खैरागढ़ी हैं। यहां इऩ गायों को पूरी तरह देशी माहौल में पाला जा रहा है। कमलेश और उनके परिवार को इन गायों से ऐसा लगाव है कि लगभग हर गाय का नाम रखा गया है।

गाय और खेतों से था शुरू से लगाव

लखऩऊ दिल्ली में पढ़ाई के बाद समेत अच्छी नौकरी छोड़ गोपालन की शुरुआत के बारे में कमलेश सिंह बताते हैं, “नौकरी कभी मेरा सपना नहीं रहा, गाय और खेतों से शुरु से लगाव था, इसलिए 2005 में चार गायों के साथ गोपालन की शुरुआत की। आज मेरे पास 70 गाय हैं। 4 एकड़़ की बाग गायों का आशियाना बना दिया है, पूरा प्राकृतिक माहौल है। ये गाय मैं गुजरात से गिरी के जंगली इलाकों से खरीद कर लाया था।”

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शुरुआत में हुई दिक्कत

कमलेश बताते हैं, शुरुआत में दूध को बेचने को लेकर थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन बाद में लोगों को जैसे-जैसे देसी नस्ल की गायों के दूध की गुणवत्ता के बारे में पता चला लोग अच्छी कीमत पर दूध देने को तैयार थे। अब मेरा दूध 60 रुपए लीटर में सीतापुर जाता है। आज ये जानिए मेरी हर गाय रोजाना 500 रुपए कमा कर देती है। आधा पैसा मैं उस पर खर्च करता हूं और आधा बचत में जाता है।”

परिवार के बाकी लोग भी करते हैं मदद

कमलेश के परिवार के दूसरे लोग भी इस काम में उनकी पूरी मदद करते हैं। वो बताते हैं, गायों से फायदा हो रहा है लेकिन मैं उसे सिर्फ धंधा नहीं बनाना चाहता है। इस गायों का संरक्षण जरुरी है। इसीलिए मेरे यहां तीन अच्छी नस्ल के नंदी (सांड) और ज्यादातर बछिया वाली गाय हैं ताकि उनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ सके। मैं उतना दूध निकलवाता हूं जितना उनके बछड़ों को पीने से बच जाता है। इसी लिए गाय और बछड़ों दोनों को कभी रस्सी नहीं बांधी जाती।”

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गायों को देते हैं हर्बल चारा

इस गोशाला में गायों के लिए हर्बल चारा दिया जाता है, रासायनिक खाद और कीटनाशक का बिल्कुल प्रयोग नहीं होता। हाल ही में उन्होंने हाइड्रोपेनिक तरीके से चारे का उत्पादन भी शुरु किया है। वो बताते हैं, मेरा दूध दुहने के कुछ ही देर बाद खरीददार के घर पहुंच जाता है तीन घंटे के भीतर गृहणियां दूध को खौला भी लेते हैं। ये दूध काफी पौस्टिक होता है, वैज्ञानिकों ने भी माना है कि गिर गाय के दूध में स्वर्ण तत्वों की मात्रा काफी होती है।

कमलेश 

देसी गाय पालना है आसान

एक गाय को सहलाते हुए कमलेश बताते है, “हम गौशाला चला रहे हैं, लेकिन हमारा उद्देश्य व्यापार नहीं है, जितने भी बढ़िया सेवा होती है उतनी करता हूं मैं सेवक हूं व्यापारी नहीं।” देसी नस्ल की गायों की खासियत बताते हुए वो कहते हैं, “गिर का दूध अधिकतम होता है इसके दूध में बीटा कैसीन ए-2 नामक प्रोटीन पाया जाता है इस वजह से दूध सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इस दूध की महिमा की कीमत मिल सकती है।”

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“आप लोग विदेशी नस्ल की गाय ना पालें, हालस्टीन, जर्सी, एचएफ व अन्य विदेशी गोवंश के दूध में बीटा कैसीन ए-1 नामक प्रोटीन पाया जाता है इससे मधुमेह और अनुसार रोग हो जाते हैं देसी नस्ल की गाय को पालना आसान है।” कमलेश ने आगे बताया।

गाय के गोबर से बना रहे हैं कई तरह की चीजें

कमलेश बताते हैं, “गाय का गोबर इतना अच्छा होता है कि हम कई चीजे भी बना के अच्छा व्यापार भी कर सकते हैं, गाय के गोबर से जैविक खाद बनाते हैं, उसके साथ गाय के गोबर से ही हवन सामग्री भी तैयार करते हैं, जिससे पेड़ों का कटना रुक सके।

खेती के बहुत काम आता है गाय का गोमूत्र

कमलेश ने आगे बताया, “एक तरह से देखा जाए तो गाय अपने खाने का इंतजाम खुद ही कर लेती है, क्योंकि गाय के गोमूत्र से तैयार खाद को हम खेतों में डालकर उनके खाने के लिए चारा तैयार करते हैं। हम जितनी भी खेती करते हैं वो जैविक ही करते हैं किसी प्रकार के रासायनिक का प्रयोग नहीं करते हैं।”

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