अंकित सिंह, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
बिहार(कैमूर)। आजादी के बाद से पहली बार बेरोजगारी अपने सबसे उंचे दर पर है। बेरोजगारी किसी भी देश के लिए एक समस्या होती है, लेकिन धीरे धीरे भारत में ये समस्या बड़ी होती जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को इससे सबसे ज्यादा जूझना पड़ता है, लेकिन अब ग्रामीण भी इस स्थिति से उबरने का तरीका खोज रहे हैं। ज्यादातर ग्रामीण फिर से पशुपालन, मतस्य पालन और डेयरी के व्यवसाय की ओर रूख कर बेरोजगारी की समस्या कम करने की कोशिश कर रहे हैं।गांव में जिनके पास रोजगार है वो भी अब इस काम में रूचि दिखाने लगे हैं।
बिहार का एक डॉक्टर जो पशुपालन में आजमा रहा है हाथ
बिहार के कैमूर में गांव कनेक्शन को एक ऐसे डॉक्टर मिलें जिनका पेशा लोगों का इलाज करना है, लेकिन अपने पेशे के साथ साथ ही वह बकरी पालन, गाय पालन और मछली पालन में भी हाथ आजमा रहे हैं। इस काम को वो पार्ट टाइम की तरह करते हैं, लेकिन कमाई डाक्टरी के पेशे से भी ज्यादा है। बिहार के कैमूर जिले से 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ थाने के रहने वाले डॉ बिंदेश्वरी सिंह इस पेशे को लेकर कहते हैं कि अपना काम करने में कैसा शर्म। पशु पालन और बकरी पालन तो पहले से ही हमारे घर के लोग कर रहे थे। अपने बचे हुए समय में मैं बकरी पालन का काम कर लेता हूं जिससे मुझे अच्छी खासी आय भी हो जाती है।
100 लीटर दूध का रोज करते हैं उत्पादन
डॉ बिंदेश्वरी ने गांव कनेक्शन के कम्यूनिटि जर्नलिस्ट अंकित सिंह से बात करते हुए बताया कि वो पिछले 4 सालों से मछली पालन के उद्योग से जुड़े हुए हैं। शुरूआती समय में सिर्फ दो गायों से अपना व्यापार शुरू किया था। आज उनके पास 12 से 13 गाय मौजूद है। जिससे वो एक टाइम में 40 से 50 लीटर का दूध उत्पादन करते हैं और दोनों समय का मिलाकर 100 लीटर दूध तक का उत्पादन कर लेते हैं। वे बताते हैं कि उन्होंने ही गांव में डेयरी पर दूध बेचने का काम सबसे पहले शुरू किया था। लोगों के पास इससे पहले भी गाय थी लेकिन वो बस अपने उपयोग के लिए रखी जाती थी। उनके इस क्षेत्र में उतरने से गांव के और भी लोग दूध व्यापार से जुड़ गए।
पशुपालन का पहले नहीं था कोई इरादा
बकौल डॉ बिंदेश्वरी मेरा बकरी पालन के क्षेत्र में उतरने का कोई इरादा नहीं था। दो साल पहले 3 बकरियों को बेचने एक व्यापारी मेरे दरवाजे पर आया था। मेरे यहां के एक मजदूर ने उन बकरियों को खरीदने की इच्छा जाहिर की तो मैंने खरीद लिया। फिर 6 महीने बाद 7 से 8 हजार में खरीदी गई बकरियों को मैंने 24 से 25 हजार में बेच दिया। मुझे यह फायदे का सौदा लगा। अगले दो सालों में मेरे पास तीन से 32 बकरियों हो गई। बकरी पालन तो मुझे फायदे का व्यापार लगा जिसमें आप कम समय में ही ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
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शुरूआत में लोग कसते थे तंज
डॉ बिंदेश्वरी बताते हैं जब उन्होंने इस काम को शुरू किया था तो लोग काफी तंज कसते थे कि बड़े घर का होकर बकरी पालन कर रहा हूं। मैंने इन बातों पर थोड़ा सा भी ध्यान नहीं दिया। जो कभी इसपर मजाक उड़ाते थे, आज वो भी यह व्यवसाय कर रहे हैं। गांव कनेक्शन ने जब उनसे पूछा कि जब वह डॉक्टर होकर बकरी पालन के क्षेत्र में आए तो लोगों ने क्या उनकी सोच पर सवाल नहीं उठाया? इस पर वह कहते हैं कि इसमें एक सकारात्मक बात भी रही जब मैं इस व्यवसाय से जुड़ रहा था तो कुछ लोगों ने कहा डॉक्टर है जरूर कुछ सोचकर कर रहा होगा। दूसरी ओर कुछ लोग ये भी कहने वाले थे कि, डॉक्टरी से पेट नहीं भर रहा है तो बकरी पाल कर डॉक्टर साहब पेट भर रहे हैं। कोई कुछ भी कहे आज मैं इस व्यवसाय से पूरी तरह से संतुष्ट हूं।
पशुपालन और मछली पालन से 4 लाख तक का हो जाता है मुनाफा
इस व्यवसाय से डॉ बिंदेश्वरी को कितना लाभ हो जाता है पुछने पर वो बताते हैं कि इससे उन्हें 3 लाख रूपये का शुद्ध लाभ हो जाता है। मजदूरों को उनकी मजदूरी देने और तमाम खर्चे काटने के बाद अगर 3 लाख का आय हो रहा है, तो ये एक बेहतर सौदा है। उन्होंने बताया अभी पिछले साल ही उन्होंने मछली पालन में भी हाथ आजमाया और दो लाख से ज्यादा रूपये की मछलियां भी बेची। अगर इस मुनाफे में मछली पालन का भी मुनाफा जोड़ दिया जाए तो यह 4 लाख रूपये के पार जाता है। सरकार इन योजनाओं पर ध्यान दे, तो लोगों को शहरों में नौकरियों की तलाश करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि सरकार योजनाएं तो बनाती हैं, लेकिन वह कागजों तक ही सिमट कर रह जाती है। जो कुछ योजनाएं कागजों से बाहर निकल कर आ पाती हैं पाती है, तो लोग उसका फायदा उठा पाते हैं। अगर सरकार इन योजनाओं पर ध्यान दे तो कुछ हद तक बेरोजगारी को कम किया जा सकता है।