लखनऊ। गिल्टी रोग (एंथ्रेक्स) ज्यादातर गाय, भैंस, बकरी और घोड़ों में होता है। इस बीमारी जहरी बुखार के नाम से भी जाना जाता है। पशुओं के साथ-साथ यह बीमारी मनुष्यों में भी होती है।
गिल्टी रोग का जीवाणु बहुत तेजी से फैलता है और यह लम्बे समय तक जीवित रहता है। इस रोग से ग्रस्त पशु के लार, मल, दुग्ध व अन्स स्त्राव में मौजूद जीवाणु का संक्रमण दूसरे पशुओं में चला जाता है। अगर पशुपालक पहले से ही कुछ बातों को ध्यान रखें तो काफी हद तक पशुओं को बचाया भी जा सकता है। अगर इस बीमारी से ग्रस्त पशु की मौत हो गई है तो बिना पोस्टमार्टम किए पांच-छह फीट गहराई में दफन कर देना चाहिए।
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लक्षण
- यह बीमारी एक बैक्टीरिया से फैलती है।
- इससे पीड़ित पशु सुस्त हो जाता है।
- बीमार पशु को तेज बुखार हो जाता है।
- पेट काफी फूल जाता है।
- नाक, पेशाब और मल द्वार से खून बहने लगता है।
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इस तरह करें बचाव
- पशु को रोग निरोधक टीका जरुर लगवाए। टीका लगाने से पशु को एक वर्ष तक यह रोग नहीं होता है।
- अगर पास के गांव में कोई पशु को यह रोग हुआ है तो पशुपालक आवागमन बंद कर दें।
- मरे हुए पशु की खाल नहीं छुड़वाएं जिससे बीमारी और फैलती है। पशुओं को मृत्यु के बाद पांच-छह फुट गड्ढा कर चूना के साथ गाड़ देना चाहिए।
- लक्षण दिखने पर पास के पशुचिकित्सक को संपर्क करें।