लखनऊ। किसानों की आय बढ़ाने के लिए केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान (सीएसडब्लूआरआई) ने अविशान भेड़ की ऐसी नस्ल ईजाद की है, जो एक साल में दो से ज्यादा बच्चे तो देगी साथ ही इस नस्ल से मीट भी ज्यादा मिलेगा। इसकी खासियत के लिए लोगों में इसके पालन का रूझान भी बढ़ रहा है।
“भारतीय नस्ल की जो भेड़ें है वो एक साल में एक ही बच्चा देती है लेकिन अविशान भेड़ दो से अधिक बच्चे दे रही है। कई राज्यों के किसान अविशान को पाल भी रहे है। इस नस्ल को राजस्थान की स्थानीय नस्ल मालपुरा, पश्चिम बंगाल राज्य की गैरोल और गुजरात राज्य की पाटनवाड़ी से संकरण से तैयार किया गया है।” बीकानेर स्थित केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ लीलाराम गोजर ने बताया।
भेड़ों की हर नस्ल के लिए अलग-अलग जलवायु की आवश्यकता होती है लेकिन अविशान भेड़ को राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात समेत सभी राज्यों में आसानी से पाला जा सकता है। जिन किसानों के पास प्राकृतिक संसाधनों की कमी है या फिर वह शुष्क या अर्ध शुष्क क्षेत्र मे रहते है वहां के लिए भेड़ पालन बहुत ही अच्छा व्यवसाय है।
विश्व की भेड़ जनसंख्या की लगभग 4 प्रतिशत भेड़ भारत में हैं। भारत सरकार की साल 2003 की मवेशी गणना के अनुसार, देश में लगभग 6.147 करोड़ भेड़ हैं। देशभर में लगभग 50 लाख परिवार भेड़ पालन और इससे जुड़े हुए रोजगार में लगे हुए हैं। भेड़ सामान्यतः कम वर्षा वाले शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती हैं।
भारत में प्रति भेड़ से प्रति वर्ष 1 किलोग्राम से भी कम ऊन का उत्पादन होता है। मांस उत्पादन की दृष्टि से भारतीय भेड़ों का औसत वजन 25 किलो से 30 किलो के बीच होता है। ऐसे में भेड़ों की नस्लों में सुधार करके उनसे कैसे अधिक ऊन, दूध और मांस प्राप्त किया जा सके, इसके लिए केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान काम करा है।
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अविशान नस्ल को पालने के लिए संस्थान द्वारा दिए जाने प्रशिक्षण के बारे में डॉ लीलाराम बताते हैं, “संस्थान द्वारा कई राज्यों में इस नस्ल के डेमोस्ट्रेशन लगाए हैं जहां से अच्छे रिजल्ट भी आ रहे है। अगर कोई इस नस्ल को लेना चाहते है तो संस्थान के निदेशक को पत्र लिखकर उसमें अपना पता और मोबाइल नंबर दे सकता है जब भी इन भेड़ों की यूनिट उपलब्ध होती है किसानों को फोन करके बताया जाता है।