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डायबिटीज और पीलिया जैसे रोगों में दवा की तरह काम करता है ऊंटनी का दूध

Camel

मधुमेह (डायबिटीज), टीबी और कैंसर जैसे रोगों में ऊंटनी का दूध काफी असरदार साबित हो रहा है। जिस वजह से ऊंटनी का दूध और उससे बने उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है।

रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र और लोकहित पशुपालक संस्थान जैसे संस्थान ऊंटनी के दूध और इससे बनने वाले उत्पादों को आम लोगों में लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हुए हैं।

“हमारे संस्थान में रोजाना 50 से 60 लीटर ऊंटनी का दूध आता है। इनके दूध से दही, चीस बनाते है और बाजारों में बेच रहे है। लोगों को काफी पंसद भी आ रहा है। इसके साथ साथ ऊंट-ऊंटनी के दूसरे अन्य उत्पाद जैसे गोबर से कागज और बाल से स्टोल-टीमैट बनाया जाता है। बाजार में लोगों के बीच ये उत्पाद बेहद लोकप्रिय हैं।” ऐसा बताते हैं, लोकहित पशुपालक संस्थान प्रमुख हनवंत सिंह राठौड़। वह कहते हैं कि इसके अलावा ऊंटनी के दूध से बना हुआ साबुन भी लोगों को खूब पसंद आ रहा है।

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राजस्थान के पाली जिले में ऊंट के संरक्षण एवं सर्वधन के लिए पिछले कई वर्षों से लोकहित पशुपालक संस्थान काम कर रही है। संस्थान ने इन उत्पादों को बनाकर उन्हें बेचने का काम राजस्थान में सिर्फ ऊंट पालन पर निर्भर पारंपरिक समुदायों की मदद करने और उनकी आय को बढ़ाने के लिए शुरू किया है। यह संस्थान राजस्थान में ऊंट पालन से जुड़े किसानों को जागरूक तो करता ही है साथ ही देश में ऊंटनी के दूध की डेयरी को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहा है।

“हमारे संस्थान ने कई जगह केमल माइक्रो डेयरी खोली है जिससे अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है, जिन किसानों के पास 20 से 25 केमल है। वो महीने में 18 हजार से 20 हजार रुपए कमा सकते है और ऐसे किसान हमसे जुड़े भी हुए है। इनकी संख्या को गिरने से बचाया जा सकता है बस किसानों को जागरूक करना जरूरी है।” राठौड़ ने बताया।

वर्ष 1984 में स्थापित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र पिछले डेढ़ दशक से ऊंटनी के दूध और इसकी उपयोगिता पर काम कर रहा है। इस संस्थान के शोध के अनुसार ऊंटनी का दूध कई बीमारियों के उपचार में लाभकारी है। ऊंटनी के दूध के फायदे के बारे मे संस्थान के निदेशक डॉ एन वी पाटिल बताते हैं, “ऊंटनी के दूध में रोग प्रतिरोधकता क्षमता होती है। इससे कई रोगों का इलाज हो सकता है। ऊंटनी के दूध का प्रयोग डायबिटीज और मंदबुदि बच्चों के लिए किया जाता है। इसके साथ ही उच्च रक्तचाप, टीबी, बच्चों में दूध एलर्जी कई बीमारियों बहुत उपयोगी है।”

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भारत की 19वीं पशुगणना के अनुसार देश में ऊंटों की आबादी में 22.48 प्रतिशत की गिरावट आई है। वर्ष 2012 के मुताबिक देश में 3.25 लाख ऊंट है। इजराइल, ब्रिटेन जैसे दुनियाभर के देशों में हुए अनुसंधान में यह पाया गया कि ऊंटनी का दूध पीलिया, टीबी, हदय रोग, उच्च रक्तचाप, बच्चों में दूध एलर्जी के उपचार इत्यादि में लाभदायक है। ऊंटनी के दूध से विभिन्न उत्पाद जैसे खीर, गुलाब जामुन, कुल्फी, इत्यादि बनाए जा सकते है।

डॉ पाटिल बताते हैं, “ऊंटनी के दूध को बढ़ावा देने के लिए संस्थान द्वारा कई प्रयास किए जा रहे है। जैसेलमेर, सिरोही, जालौर और उदयपुर जिलों को चिहिन्त किया गया है जहां से ज्यादा मात्रा में ऊंटनी के दूध को लिया जा सकता है और उनके दूध उत्पादों बनाकर बेचे जा सकते है। उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा तो किसानों को लाभ होगा किसान को दूध के अच्छे दाम मिलेंगे। इससे लगातार घट रही ऊंटों की संख्या में भी इजाफा होगा। संस्थान में ऊंटनी के दूध से आइसक्रीम, सुगन्धित दूध और दही जैसे उत्पाद बनाए जा रहे हैं।”

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ऊंटों की घटती संख्या को लेकर चिंतित राजस्थान सरकार ने ऊंट की संख्या को बढ़ाने के लिए “ऊंट विकास योजना” की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत हर ऊंटनी के प्रसव पर ऊंट पालक को 10 हजार रुपए की अनुदान राशि दी जाती है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए ऊंट पालक को नजदीकी पशु चिकित्सालय में ऊंटनी का रजिस्ट्रेशन कराना होता है। देश की 80 प्रतिशत ऊंटों की आबादी राजस्थान में है, रेगिस्तान में ऊंटों का प्रयोग पर्यटन एवं माल ढुलाई में किया जाता है।

“राजस्थान सरकार ने ऊंट की संख्या को बढ़ाने के लिए योजना तो शुरू की है पर यह योजना काफी छोटे स्तर की है। सरकार को कुछ बड़ी स्कीम के तहत इन ऊंट पालक किसानों को जोड‍़ना होगा ताकि लोग ऊंट पालन लोग कर सके। सरकार दूध व अन्य उत्पादों के लिए बाजार खड़ा करे तो किसानों का रूझान बढ़ेगा।”” डॉ पाटिल ने बताया।

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राजस्थान के जैसलमेर जिले के अच्छा गाँव में रहने वाले सुमेर सिहं (38 वर्ष) के पास 300 ऊंटनी है, जिनसे रोजाना 150 लीटर से ज्यादा उत्पादन होता है। सुमेर बताते हैं, “पहले खेतीबाड़ी और आने जाने के लिए लोग ऊंट का ही इस्तेमाल करते है लेकिन अब इनकी कोई मांग नहीं है। अब ऊंट पालन दूध बेचने के लिए करते है। इससे अच्छे रूपए भी मिलते है।” ऊंट पालन करने के लिए सुमेर सिंह लोगों को जागरूक भी करते है।

ऊंट

सुमेर बताते हैं, “ऊंटनी के दूध पर काफी काम हो रहा है। आने वाले समय में ऊंट पालन कठिन नहीं होगा बस लोगों को जागरूक करना है कि ऊंट पालन कर के क्या-क्या फायदे हो सकते है। हर साल हमारे यहां मरुम मेला लगता है, जिसमें हम किसानों ऊंट पालन के लिए प्रोत्साहित भी करते है।”

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ऊंटनी के दूध में पोषकीय गुण

  • ऊंटनी के दूध अन्य दुधारू जानवरों के दूध की तरह रंग में सफेद एंव गंधरहित होता है। इसमें 8-11 प्रतिशत सकल ठोस पदार्थ, 1-25 प्रतिशत कुल प्रोटीन और वसा कम मात्रा (मात्र 1-3 प्रतिशत) में पाया जाता है।
  • ऊंटनी का दूध लंबे समय तक (8-9 घंटे) खराब नहीं होता।
  • ऊंटनी के दूध में लोहा (0.32- 0.36 मिग्रा./डे.ली), जस्ता (1.2- 6.3 मिग्रा./डे.ली), कॉपर (0.09- 0.5 मिग्रा./डे.ली), जैसे खनिज और विटामिन बी, सी
  • प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • इसके दूध में जरूरी वसीय अम्ल(लिनोलिक, एरेकिडिक) भरपूर मात्रा में पाए जाते है।

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