मलिहाबाद (लखनऊ)। पिछले कई साल से आम के बाग में देसी किस्मों की मुर्गी पालने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या हैचरी की आती थी, क्योंकि परंपरागत तरीके से अंडों को सेने में काफी समय लग जाता और ये तरीका सुरक्षित भी नहीं रहता, ऐसे में मुर्गी पालकों ने पुराने फ्रीज को हैचरी बनाकर चूजों का उत्पादन शुरू कर दिया है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के मलिहाबाद के बागवानों को फार्मर फर्स्ट योजना के तहत पिछले कई साल से देसी मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू किया है। मलिहाबाद तहसील के अमलौली गाँव के ओमप्रकाश ने भी साल 2019 में आम के बाग में चंद्र प्रकाश तिवारी के साथ मिलकर देसी मुर्गी पालन शुरू किया था। जहां पर केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) की मदद से केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (CARI), बरेली से कड़कनाथ, अशील, कैरी निर्भीक, कैरी देवेंद्र जैसे देसी किस्म के चूजे लेकर अपना मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू किया है।
लेकिन ओमप्रकाश जैसे किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या हैचरी की आती, क्योंकि बाजार में बिकने वाली मशीनें काफी महंगी मिलती हैं, जिन्हें खरीदना एक छोटे किसान के लिए संभव नहीं होता है। ओम प्रकाश बताते हैं, “साल 2019 में हमने मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू किया था, आम के बाग में मुर्गी पालने के अपने अलग फायदें होते हैं, मुर्गे-मुर्गियां कीड़ों का खा जाती हैं। मुर्गी पालन तो अच्छा चल रहा है, लेकिन मुर्गियों के अंडे सेने में परेशानी होती है, क्योंकि अगर जहां कम मुर्गियां हैं, वहां पर तो मुर्गी आराम से अंडे से देती है, लेकिन जहां ज्यादा मुर्गे-मुर्गियां होती हैं, वहां परेशानी होती है।”
वो आगे कहते हैं, “हमारा व्यवसाय अच्छा चल रहा है तो हमें लगा कि चूजों का भी व्यवसाय करना चाहिए, लेकिन हैचरी मशीन बहुत महंगी आती है, इस बारे में हमने सीआईएसएच के वैज्ञानिकों से बात की, वहीं से हमें पुराने फ्रीज को हैचरी बनाने के बारे में बताया गया।”
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक और फार्मर फार्मर फर्स्ट परियोजना के अन्वेषक डॉ मनीष मिश्रा बताते हैं, “किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए फार्मर फस्ट योजना चलाई जा रही है, जिसके मलिहाबाद के सौ से अधिक किसानों को शुरूआत में हमने चूजे दिए थे। इससे उनकी अच्छी कमाई भी हो रही है। मलिहाबाद में आम की खेती होती है इसलिए आम आधारित मुर्गी पालन शुरुआत की और जिसके पास बाग है उन किसानों को चूजे कड़कनाथ, कैरी दवेंद्र, निर्भीक और श्यामा प्रजाति के चूजों को बांटा गया है।”
आम के बाग में मुर्गी पालन से हो रही आमदनी के बारे में डॉ मनीष कहते हैं, “किसी किसान की आम की एक एकड़ की बाग है तो प्रति वर्ष 70-72 हजार की आमदनी होती है, अगर उसी बाग में किसान मुर्गी पालन करता है तो उसकी आमदनी डेढ़ लाख तक हो जाती है। ऐसे में आम के साथ मुर्गी पालन कर रहे किसान की आमदनी साल में 70-75 हजार ज्यादा हो जाती है।”
“यहां पर एक किसान को देख कर दूसरे किसान भी मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू करने लगे हैं, ऐसे में हमें लगा कि किसानों को चूजों का भी उत्पादन करना चाहिए। इसलिए यहां के कई किसानों को केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली भेजा गया था, जहां पर उन्हें हैचरी का प्रशिक्षण दिया गया, जहां पर इन्हें पुराने फ्रीज को हैचरी बनाने का भी प्रशिक्षण दिया गया, “डॉ. मिश्रा ने आगे बताया।
केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान से प्रशिक्षण के बाद किसानों ने कबाड़ से 1000 से 1500 रुपए में पुराना फ्रीज खरीदा, फ्रीज से हैचरी बनाने में लगभग 3000 से 3500 रुपए का खर्च आया। ओमप्रकाश बताते हैं, “पुराने फ्रीज को हैचरी बनाने के लिए तीन हजार से पैंतीस सौ रुपए खर्च हो जाते हैं, इसमें अलग-अलग हिस्सों में अलग लाइट लगती है, जिससे अंडों को सही तापमान मिलता रहे। 20-25 दिनों में इसमें चूजे तैयार हो जाते हैं।” चूजों और मुर्गे-मुर्गियों से अच्छी कमाई होने पर अब इन्होंने अधिक क्षमता की भी हैचरी खरीद ली है, जिसमें एक बार में कई सौ अंडे हैच हो जाते हैं।
यहां के किसान चूजे तैयार होने के बाद पांच से छह दिन का चूजा लगभग 85 रुपए, 15 से 20 दिन का चूजा 100 रुपए में और दो महीने का चूजा 200 रुपए में बेचते हैं। जबकि तैयार मुर्गों की कीमत 1000 से 1200 रुपए तक मिल जाती है। यहां से चूजे खरीदने के लिए लखनऊ ही नहीं दूर-दूर के कई किसान आते हैं।
पिछले साल जब कोविड-19 की वजह से ब्रायलर उद्योग पूरी तरह से प्रभावित हुआ था, उस समय भी यहां के देसी मुर्गी पालकों को अच्छी कीमत मिल रही थी। क्योंकि ब्रॉयलर की उम्र बेहद सीमित होने के साथ इनकी खुराक का खर्च ज़्यादा आता है साथ ही इनकी दवाइयों का खर्च भी ज़्यादा आता है। देशी मुर्ग़ियों में रोगों के प्रति रोधक क्षमता होती है साथ ही पोषण पर खर्च कम आता है।
देसी मुर्ग़ी का वजन जहां धीरे बढ़ता है वहीं वह अपना भोजन कीटों, खरपतवार के बीजों और सड़े गले अनाज व सब्ज़ियों से प्राप्त करते हैं, जिससे किसानों पर ज़्यादा बोझ नहीं पड़ता। किसान कड़कनाथ और निर्भीक जैसी क़िस्मों के बच्चे लॉकडाउन में तैयार कर रहे हैं क्योंकि इन क़िस्मों का बाज़ार इन हालातों में बेहतर दिखाई दे रहा है।