पशुपालक रजत फौजी की एचएफ नस्ल की गाय अचानक बैठी कि फिर खड़ी ही नहीं हो पायी, कई दिनों के इंतजार के बाद विशेषज्ञ से पता चला कि उनकी गाय डाउनर काऊ सिंड्रोम से पीड़ित है। किसी तरह उसे तालाब तक ले जाया गया लेकिन तब जाकर उसे कुछ आराम मिला, लेकिन तब भी गाय पूरी तरह से ठीक नहीं हो पायी।
रजत फौजी हरियाणा के हिसार जिले के मीरपुर गाँव के रहने वाले हैं, उनके गाँव के संदीप मदान गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “कई दिनों तक जब उनकी गाय नहीं ठीक हो पायी तो उन्होंने अपनी गाय को गोशाला में छोड़ दी, ज्यादातर यही होता है, जब गाय खड़ी नहीं होती है तो लोगों को लगता है कि उनकी गाय नहीं ठीक हो पाएगी।”
डाउनर काऊ सिंड्रोम एक मेटाबोलिज्म से सम्बंधित बीमारी होती है, जिसमे पशु ब्याने के दो से तीन दिन बाद एक तरफ करवट लेकर लेट जाता है और खड़ा नहीं हो पाता है। यह मुख्य रूप से अधिक दूध देने वाले पशुओं मे पाई जाने वाली बीमारी है जो होलीस्टीन किस्म की गायों मे अधिक पाई जाती है। इस बीमारी में पशु सचेत अवस्था मे रहता है लेकिन खड़ा नहीं हो पता है।
हरियाणा पशुपालन विभाग के हिसार जिले के वीएलडीए संदीप सिंह डाउनर काऊ सिंड्रोम के बारे में विस्तार से समझाते हैं। वो कहते हैं, “ये क्रॉस ब्रीड की गाय में होता है, जिन गायों के अंदर एचएफ (हॉल्स्टीन फ़्रिसियन) ब्रीड के जीन होते हैं, उसमें इस बीमारी के होने के चांसेज बढ़ जाते हैं। यह एक मेटाबोलिक डिजीज है, इसे हमारे यहां पैर झूठे पड़ गए कहा जाता है।”
वो आगे बताते हैं, “इस मुख्य इलाज मसाज होता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन बना रहे, अगर एक बार गाय बैठ गई तो उसे लगता है कि वो अब उठ नहीं पाएगी। इसलिए इसे हमें किसी भी तरह खड़ा करना पड़ता है, या फिर तालाब में डालना पड़ता है, जिससे वो पैर चलाती रही है। इसमें किसान को मेहनत करनी पड़ती है।”
यह बीमारी मुख्यतया पशु के ब्याने के बाद उसके शरीर मे प्रोटीन, फॉस्फोरस और पोटैशियम की कमी के कारण होती है। इस बीमारी पशु कैल्शियम के दो लगातार इंजेक्शन लगाने के बाद भी खड़ा नहीं हो पता है। समय पर सही उपचार और देखभाल नहीं होने के कारण पशु के तंत्रिका व माशपेशियों पर बहुत अधिक दबाब पड़ने के कारण वह लम्बे समय तक इसी अवस्था मे पड़ा रह सकता है जिसके कारण पेरोनिअल ओर टिबियल नर्व बुरी तरह से प्रभावित होने की वजह से पशु बाद मे सहारा देने के बाद खड़ा नहीं हो पाता है। काम समय मे ही अधिक मात्रा मे कैल्शियम की खुराक दिए जाने के कारण शरीर मे कैल्शियम की विषाक्तता होने लगती है जिससे हृदय की गतिविधि बढ़ जाती है और इसकी मासपेशियों मे सूजन आ जाती है।
कैसे करें इस बीमारी की पहचान
पशु मिल्क फीवर के लगातार उपचार किये जाने के बाद भी स्वयं खड़ा नहीं हो पाता है। केवल सहारा देकर ही पशु को खड़ा किया जा सकता है, लेकिन सहारा हटाने के तुरंत बाद पशु फिर से नीचे गिर जाता ह।
पशु की भूख और प्यास बहुत कम हो जाती है।
पशु का सांस लेने और गोबर व मूत्र करने की क्रिया सामान्य ही रहती है।
पिछले पैर सीधे ही रहते हैं, हालांकि पशु इनसे बार बार खड़ा होने का प्रयास करता रहता है।
सामान्य तौर पर यह बीमारी एक-दो हफ्ते तक होती है, लेकिन यह पशु की तंत्रिका और माशपेशियों को हुए नुकसान व पशु की देखभाल और प्रबंधन पर निर्भर करती है। इस अवधि मे किसी प्रकार का संक्रमण होने पर यह अवधि बढ़ भी सकती है।
जो पशु सचेतन अवस्था मे नहीं रह पाते है वो कोमा अथवा बेहोशी की स्थिति मे भी जा सकते हैं।
जो पशु एक सप्ताह से अधिक समय तक खड़े नहीं हो पाते और पड़े रहते हैं वो फेफड़ों, गुर्दों व हृदय के सही प्रकार से कार्य नहीं कर पाने के कारण कई बार मर भी जाते हैं।
इसलिए पशु मिल्क फीवर के उपचार के बाद भी किसी प्रकार का सुधार प्रदर्शित नहीं करते हैं उन्हें डाउनर काऊ सिंड्रोम की बीमारी से ग्रसित माना जाना चाहिए न की मैग्नेसियम की कमी अथवा मेरुदण्ड की चोट से।
क्यों होती है यह बीमारी
क्या पशु को ब्याने मे किसी तरह की परेशानी हुई है।
क्या पशु ब्याने के बाद सामान्य रूप से खड़ा हो पाया अथवा नहीं। यदि नहीं तो पशु कितने समय तक जमीन पर आड़ा लेटा रहा।
क्या पशु को सख्त जमीन पर रखा गया या मिट्टी, चारे या भूसे पर बिठाया गया।
क्या पशु का मिल्क फीवर के लिए सही समय पर और सही प्रकार से उपचार किया गया।
ऐसे कर सकते हैं इलाज
मिल्क फीवर की स्थिति मे सही और जल्द उपचार किया जाना चाहिए।
पशु को एक स्थान पर पड़े नहीं रहने देने चाहिए बल्कि उसको इधर उधर हिलाते रहना चाहिए और सामने के पैरों पर खड़ा करने का प्रयास करना चाहिए।
पशु को उठाने के लिए नरम रस्सियों या फिर निवार का उपयोग करना चाहिए और एक बार मे 15 से 20 मिनट तक खड़ा रखें चाहिए।
यदि पशु किसी भी प्रकार से खड़ा नहीं हो पा् रहा हो तो उसके लिए नरम बिस्तर का प्रबंध करना चाहिए जो की घास, चारे अथवा भूसे का बना हो सकता है। पशु के गोबर व मूत्र को समय समय पर साफ करते रहना चाहिए।
पशु का दूध समयानुसार दुहना चाहिए और थनों को साफ सुथार रखना चाहिए।
कैल्शियम, मैग्नेसियम एवं फॉस्फोरस थेरेपी का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार करना चाहिए।
विटामिन और प्रतिजैविक दवाओं का प्रयोग भी पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार करना चाहिए।
पशु के पैरो की मालिश भी लाभदायक होती है।
पशु को किसी तालाब में छोड़ देना चाहिए, इससे पशु पैर हिलाने की कोशिश करेगा।