मुर्गियों के मुकाबले बतख पालन से हो सकती है ज्यादा कमाई

Diti BajpaiDiti Bajpai   13 Jun 2019 5:05 AM GMT

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बरेली (उत्तर प्रदेश)। पोल्ट्री व्यवसाय में ज्यादातर लोग मुर्गियां पालते हैं लेकिन मुर्गियों की अपेक्षा बतखों को कम लागत और कम जगह में पालकर अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। एक साल में एक बतख 280 से 300 अंडे देती है जो मुर्गियों के मुकाबले दोगुना है।

देश की कुल पोल्ट्री में करीब 10 फीसदी हिस्सा बतखों का है। अगर इनकी सही देखरेख और खान-पान की व्यवस्था की जाए तो इनसे अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. गौतम कुलौली बताते हैं, "मुर्गी के बाद देश में बतख पालन ज्यादा प्रचलित है। पूरे देश में साउथ से नार्थ तक बतख पालन को ज्यादा लाभदायक माना जाता है।"

बतखों को गाँव के तालाबों, धान व मक्के के खेतों में पाला जा सकता हैं। यह उन्हीं तालाबों, नाले-नालियों के आसपास घूमकर कीड़े-मकोड़े व घेंघे को खाते हैं। बतख पालन में सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें मुर्गियों के मुकाबले इनमें बीमारियां बहुत ही कम होती है।

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बतखों की नस्लों के बारे में डॉ. गौतम बताते हैं, "बतखों में अंडे और मांस के लिए अलग-अलग नस्ल है। अंडे के लिए खाकी कैंपबेल नस्ल है, यह कम से कम एक साल में 280 से 300 अंडे देती है, काफी किसान इसका पालन भी कर रहे हैं। अंडे के लिए इंडियन रनर भी है लेकिन इसके अंडे का उत्पादन खाकी कैंपबेल नस्ल से कम है।''

मांस के लिए पाली जाने वाली बतखों की नस्ल के बारे में डॉ. कुलौली ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मांस के लिए वाइट पेकिंग नस्ल सबसे अच्छी है। हमारे देश में ही नहीं विदेशों में भी इसे पाला जाता है। इसके अलावा हर राज्य में बतख की देसी नस्ल है जिनको ज्यादातर किसान पालते हैं।"

छोटे किसान मछली, धान व मक्के के साथ भी बतख पालने से अच्छी कमाई कर सकते हैं। इंट्रीगेटेड फार्मिंग के बारे में डॉ. कुलौली ने बताया, "बतख को ज्यादातर इंट्रीगेटेड फार्मिंग में ही प्रयोग किया जा रहा है। अगर एक हेक्टेयर मछली का तालाब है तो उसमें आप कम से कम ढाई सौ बतख को छोड़ सकते हैं। बतख का बीट मछली के लिए आहार बनेगा, जिससे मछली को न्यूट्रीशियशन मिलेगा और मछली की बढ़वार भी जल्दी होगी।"

वह आगे कहते हैं, "ऐसे ही धान की खेती में अगर बतख छोड़ दिए जाए तो उसमें जो भी कीड़े होंगे, जो खेती को खराब करते हैं, यह सब बतख खा लेते हैं। इससे दोगुना लाभ भी होता है।"


बतखें दड़बों (बतख को रखने की जगह) के अंदर कम रहती हैं और मुर्गियों के मुकाबले कम दाना खाती हैं। इसलिए इनके खाने-पीने में ज्यादा खर्चा भी नहीं आता है। सिर्फ चौथाई एकड़ के पोखर में 20-25 बतखें पाली जा सकती हैं। बतखें दो साल तक अंडे देती हैं। नए चूजों को अलग रख कर बतखों के समूह बनाए जा सकते हैं, ताकि हर पांच-छह महीने पर अंडा व मीट देने वाली बतखें लगातार तैयार होती रहे।

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"शुरुआत में 250 से 300 बत्तखों को पालें और प्रशिक्षण लेकर ही इसका पालन करें। इससे नुकसान कम होगा और आगे चलकर इनकी संख्या भी बढ़ा सकते हैं। हमारे संस्थान द्वारा 15 दिन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है," डॉ. गौतम ने बताया।

चार तरह की होती है बतखों की नस्ल

देश में 4 तरह की बतखें पाई जाती हैं। उनमें खाकी कैंपबेल भूरे रंग की व छोटी होती है। यह बतख 300 तक अंडे देती है। वाइट पेकन बतख ब्रायलर यानी मांस के लिए होती है, काफी बड़ी होती है और गाँव कस्बों में आसानी से पाला जा सकता है। ये बतख अंडे कम देती है, लेकिन मांस के लिए इसकी बढ़वार ज्यादा व तेजी से होती है। मोती या मसकोवी बतख बड़ी, काले व सफेद रंग की होती है। इसका मीट बहुत नर्म होता है। चौथी बतख देसी किस्म की होती है। यह बतख एक साल में 280 तक अंडे देती है। यह खुद इधर-उधर घूम कर कीड़े-मकोड़े ढूंढ़कर खाती है।

अंडा और मीट उत्पादन के लिए बतखों के चूजों का रखें ध्यान

  • अंडों से निकले चूजों को फर्श पर रखने से पहले चटाई जरूर बिछा दें।
  • पांच से छह हफ्तों तक हर दो से तीन दिनों में चटाई को धूप में सुखाएं।
  • चूजों को रोज दिन में 3-4 बार साफ पानी पिलाएं और मक्का, मूंगफली छोड़ कर टूटे चावल का बारीक दाना, पानी में भिगो कर दें।
  • अंडों से निकलने के दो हफ्ते बाद चूजे बढ़ने लगते हैं, उन्हें खुले में छोड़ें, दाना चुगने दें। साथ ही कुत्ते, बिल्ली, सांप, आदि से उन्हें बचाकर रखें।
  • एक महीने बाद चूजों को तालाब में छोड़ें।
  • चार महीने की उम्र में नर व मादा की पहचान हो जाती है, नर भारी होते हैं व उनकी पूंछ ऊपर को मुड़ी होती है।
  • खानपान ठीक हो और पूरा ध्यान रखा जाए तो बतखें पांच महीने में अंडे देने लगती हैं। उस वक्त नर बतखों को बेच दें। इससे पैसा मिलेगा व दाना बचेगा।

इन बातों को रखें विशेष ध्यान

  • जहां बतखों को रखा गया है वहां का फर्श सूखा व साफ रखना जरूरी है।
  • बतखों के चूजे हमेशा रोगरहित और अच्छी नर्सरी से लें।
  • बीमार बतखों को फौरन अलग कर दें और मरी बतखों को जला दें या कहीं दूर ले जा कर दबा दें।
  • डॉक्टरों से सलाह लेकर बीमारियों से बचाव के लिए बतखों को समय पर टीके जरूर लगवाएं।
  • 10-12 फीट लंबे व 5-6 फीट चौड़े कमरे में 20-25 बतखें आराम से रह लेती हैं।
  • एक बतख को रहने के लिए करीब 2 वर्ग फीट जगह होनी चाहिए और अगर वह पोखर के आसपास हो जाए तो और भी अच्छा होगा।

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यहां से ले सकते हैं प्रशिक्षण

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान

इज्जतनगर बरेली

0581-2303223, 2300204, 2301220, 2310023


    

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