लखनऊ। घोड़ों में होने वाली खतरनाक बीमारी इन्फ्लुएंजा देश में खत्म हो चुकी है। वर्ष 2008 में इस बीमारी से करीब 40 से 45 हजार घोड़े प्रभावित हुए थे।
“वर्ष 1987 में फ्रांस से कुछ घोड़े भारत लाए गए थे, जिनमें इन्फ्लुएंजा बीमारी थी। उस समय इस बीमारी का प्रकोप इतना फैला की करीब 70 हजार से ज्यादा घोड़े इससे प्रभावित हुए। तब पहली बार यह बीमारी भारत में आई। उसके बाद वर्ष 2008 में चाइना से यह बीमारी आई थी। इस बीमारी को खत्म करने के लिए हमने वैक्सीन भी तैयार किया।” ऐसा बताते हैं, हिसार स्थित केंद्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ नितिन विरमानी।
यह भी पढ़ें- ये बोल नहीं सकते…. मगर हम आपको बताते हैं कि इन पर कितना जुल्म होता है…
डॉ विरमानी आगे बताते हैं, “इस समय देश में यह बीमारी नहीं है। यह बीमारी भारत न आए इसके लिए समय-समय पर राजस्थान, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश के बार्डर एरिया में सर्विलांस करते है और सैंपल लेते रहते है। यह बीमारी बहुत जल्दी फैलती है। इसके लिए इसका बचाव बहुत जरूरी होता है।”
19 वीं पशुगणना के अनुसार देशभर में करीब 11.8 लाख अश्व प्रजाति (घोड़ा, गधा, खच्चर) हैं, इससे लाखों परिवारों की अजीविका जुड़ी हुई है।
इंफ्लूएंजा का वायरस केवल घोड़ों में ही नहीं बल्कि अन्य जानवरों जैसे पक्षियों, सूअरों, ऊंटों, कुत्तों और यहां तक कि सीलों और ह्वेलों में भी फैलता है। पक्षियों में ये सबसे ज्यादा होते हैं। इन्फ्लुएंजा बीमारी होने से घोड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता नष्ट होने लगती है, जिससे पशुपालक को करोड़ों रूपयों का नुकसान होता है।
यह भी पढ़ें- वर्ष 2017 में सैकड़ों घोड़ों, गधों की जान ले चुका ये है रोग
इस बीमारी के लक्षणों के बारे में गैर सरकारी संस्था ब्रुक्स इंडिया के पशुचिकित्सक डॉ मनीष बताते हैं, “जैसे इंसानों में सर्दी जुकाम होता है तो जो स्त्राव नाक से निकलता है। उससे दूसरे को जुकाम है। ऐसे ही घोड़ों में ये वायरल इंफेक्शन होता है। इनके जो नाक से स्त्राव निकलता है उससे दूसरे पशु को भी हो जाता है। इस बीमारी से ग्रसित पशु को गहरी खांसी आती है। इसके साथ ही पशु को तेज बुखार रहता है। वजन भी घटने लगता है।”
अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ मनीष ने बताया, “अगर पशुओं में इस बीमारी के लक्षण दिखे तो तुंरत उन्हें स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए और पशुचिकित्सक से सलाह उसका इलाज कराना चाहिए।