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गैर मिलावटी समाज: जिसका घी अमेरिका से लेकर सिंगापुर के मुस्तफा मॉल तक में बिकता है

डेयरी से फायदा कारोबार: भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में किसानों को दूध के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। दूध की कीमतें गिर रही हैं। लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो दूध और उसके उत्पादों से मुनाफा कमा रहे हैं,डेयरी को फायदा कारोबार बना रहे हैं।
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पंचकुला (हरियाणा)। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में किसानों को दूध के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। दूध की कीमतें गिर रही हैं। लेकिन इसी बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो दूध और उसके उत्पादों से मुनाफा कमा रहे हैं,डेयरी को फायदा कारोबार बना रहे हैं। हालांकि इन लोगों ने अपने कामकाज में कुछ बदलाव किए हैं और कुछ ऐसे कदम उठाए है.. जिसमें बड़ी बात है शुद्धता की। शुद्धता की बदौलत ये दूध और उसके उत्पादों की विदेशों में भी मांग है।

अगर दूध की गुणवत्ता अच्छी है तो सही कीमत मिलना भी तय है, यह साबित किया है हरियाणा के मोहन सिंह अहलूवालिया ने। आज उनके साथ पांच लाख से ज्यादा पशुपालकों को लाभ मिल रहा है। दूध की कीमतों को लेकर गांव की गलियों से दिल्ली की सड़कों तक विरोध जता चुके अहलूवालिया दुग्ध उत्पादक किसानों की आवाज भी हैं। कुछ साल पहले उन्होंने गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी समिति बनाई, जिसमें आज कई राज्यों के पांच लाख किसान हैं। 


गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी क्या है?

गैर मिलावटी समाज की मुहिम के बारे में ग्वाला गद्दी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन सिंह अहलूवालिया बताते हैं, “दूध के दाम बढ़ाने के लिए वर्ष 2011 में जंतर मंतर से लेकर संसद तक हमने सड़कों पर दूध फैलाकर विरोध जताया था, जिसमें ग्वाला गद्दी के कई किसान शमिल थे। लगभग छह महीने हम लोगों ने आंदोलन किया। किसी भी बड़े नेता को नहीं छोड़ा जिससे इस मुद्दे पर मुलाकात न की हो।”

मोहन सिंह अहलूवालिया गाँव कनेक्शन को आगे बताते हैं, “उसी बीच दिल्ली की सीएम ने मुझसे कहा था कि आप दूध बगैर मिलावट का पिलाइए। तब हमने कोशिश करके तकरीबन 84 हज़ार किलो दूध रोजाना दिल्ली में बगैर किसी मिलावट के पिलाया था। उसके बाद अपने आप समझ आ गया जब बिना मिलावट के दूध उपलब्ध होगा तो किसान को खुद दूध की कीमत मिल जाएगी।”

हरियाणा में चंडीगढ़ से पंचकुला मार्ग चलने पर खेड़ी गांव पड़ता है जहां पर मोहन सिंह की “गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी” का मुख्यालय है। यहीं से डेयरी उद्योग की नई रोशनी निकल रही है। इस समिति में कई राज्यों के दूध उत्पादकों द्वारा अलग-अलग जगह से उत्पादित देशी गाय का शुद्द घी पनीर, दही, छाछ, मक्खन बनाया जाता है, जिसको विदेशों में बेचा जा रहा है।

गैर मिलावटी समाज की मुहिम मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा राज्य के पांच लाख से ज्यादा किसानों तक पहुंच गई है। अहलूवालिया के मुताबिक हमसे जुड़े पशुपालक किसी प्रकार का खतरनाक पेस्टीसाइड का प्रयोग नहीं करते हैं। ताकि दुध या उसके उत्पादों की शुद्धता बरकरार रहे। यही वजह है कि हमारे उत्पादों को अमेरिका ने कैटेगरी वन में रखा है।

“ग्वाला गद्दी में तैयार घी अमेरिका, सिंगापुर, यूक्रेन, दुबई और बहरीन भेजा जा रहा है। इसके अलावा हमें कई मुल्कों से भी ऑफर मिले हैं कि हम अपने उत्पाद वहां भी बेचे।” मोहन सिंह गर्व से बताते हैं, “अमेरिका में हमको कैटगरी वन में रखा गया है अभी हमारे जो दूध से उत्पाद यहां से जा रहे हैं, उसका टेस्ट नहीं होता है सीधे हम उपभोक्ता तक डिलीवर कर सकते है। साथ सिंगापुर के प्रसिद्ध मुस्तफा मॉल में भी हमारे डेयरी प्रोडेक्ट को रखा गया है।”

एनीमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलूवालिया वही शख्स है,जिनकीदूध पर आई एक रिपोर्ट ने देश में हंगामा मचा दिया था। 2018 में आई अपनी एक रिपोर्ट में उन्होंने अपनी एक रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि देश में बिकने वाले 68 फीसदी दूध और उससे बने उत्पाद नकली हैं। देश में दूध की स्थिति को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को भारत को एडवाइजरी तक जारी करनी पड़ी थी।

विदेशों में गैर मिलावटी दूध उत्पादों को बेचकर मोहन को जो कीमत मिल रही है उससे वह अपने साथ जुड़े किसानों को उसकी लागत से अधिक कीमत दे पा रहे हैं।

पूरे देश में दूध की कीमतों को लेकर किसान परेशान है कई किसान संगठन न्यूनतम सर्मथन मूल्य तय करने की बात भी कर रहे हैं लेकिन मोहन सिंह की इस मुहिम ने और डेयरी किसानों के लिए एक उदाहरण कहा जा रहा है। उन्होंने इस मुहिम को एक नारा भी दिया है ‘कोई दान नहीं, कोई चंदा नहीं, कोई सब्सिडी नहीं बस काम के बदले दाम’।


एक यात्रा का जिक्र करते हुए अहलूवालिया कहते हैं, “हिमाचल के किन्नौर, रामपुरबसेर, बिलासपुर, कंगड़ा जिले में गया मैंने वहां देखा कि दूध की कीमतें किसानों को बहुत कम मिल रही है। 14 से 15 रुपए में दूध मिल रहा था। तो मैंने उनको बोला कि 10 दिन के लिए दूध बेचना बंद कर दीजिए। उस दूध को लोगों को बिना किसी मिलावट के नि:शुल्क पिलाईए और मिल्क मंडी एक छोटी सी बना करके और लोगों को बाजार में उस दूध को लेकर बैठ जाइए।”

बात को जारी रखते हुए वह आगे कहते हैं, “मेरे कहने पर उन्होंने ऐसा किया। लोग उनके पास आते हैं वो बताते थे कि यह शुद्ध दूध है तो लोग बर्तन लेकर धीरे-धीरे आने लगे। फिर उन लोगों ने मुझे बताया कि कोई भी ऐसा किसान नहीं आया जिसने 35 रुपए से कम दाम उनको दिया हो।”

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2018 की बात करे तो देश में 176.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। विश्व के कुल दूध उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है लेकिन इसके व्यापार से जुड़े किसानों को उनकी लागत के सही दाम नहीं मिल पा रहे है।

दूध में उपलब्ध फैट और एसएनएफ के आधार पर ही दूध की कीमत तय होती है। कोऑपरेटिव की तरफ से दूध के जो दाम तय किए जाते हैं, वह 6.5 फीसदी फैट (वसा) और 9.5 फीसदी एसएनएफ के होते हैं। इसके बाद जिस मात्रा में फैट कम होता जाता है उसी तरह कीमत में कमी आती है। जो किसान बाजार में दूध बेच देते हैं यानी जो ग्राहकों तक सीधे दूध को पहुंचाते हैं उन्हें तो काफी फायदा हो जाता है लेकिन जो लोग ऐसा नहीं कर पाते उन्हें मजबूरन दूध को तमाम निजी डेयरी कंपनियों के केंद्रों पर औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है।

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किसानों को दूध के दाम कैसे मिल सकते हैं?

इसके बारे में मोहन कहते हैं, “किसान सोचता है कि जो कॉपरेटिव है या फिर जो और कंपनियां हैं वो हमको कीमत दे देंगी ऐसा बिल्कुल नहीं है। किसान को छोटे-छोटे कॉपरेटिव बनाने होंगे नहीं तो एफपीओ और स्वयं सहायता समूह बनाकर दूध को बेच सकते हैं। इसके अलावा गाँव, कस्बे और शहर से लेकर अपनी स्थानीय स्तर पर मंडी बनाए मिल्क का बाजार बनाए और यह चिंतन करे कि हमे दूध को यही बेचना है ये चितन न करे कि दिल्ली जाकर दूध बेचना है।” 

ग्वाला गद्दी से जुड़े किसानों को दी जाती है हर सुविधा

“देश की सीमा पर जैसे जवान काम करता है वैसे ही पशुपालक सुबह चार बजे उठकर चाहे गर्मी, बरसात और सर्दी हो काम करता है उनको चारा पानी डालता है बड़ी मेहनत के साथ वह दूध का उत्पादन करता है। तो उनको किसी भी प्रकार की समस्या है तो चाहे वो पशुपालक की हो, दूध की कीमतों को लेकर हो, पशुचिकित्सा पर हो हम काम करते हैं।” मोहन सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।

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समिति से जुड़े किसानों को समय-समय पर किया जाता है प्रेरित

ग्वाला गद्दी से जुड़े किसानों को दूध से बने उत्पादों के अच्छे दाम मिल सके इसके लिए समय पर टीम बनाकर उनको प्रेरित किया जाता है। मोहन सिंह बताते हैं, “हमसे जुड़े किसानों में नए-नए सुधार करना और ग्वालों का इतिहास बताना हमारा काम है। उनको संगीत और नाटक के माध्यम से उनकी ही स्थानीय भाषा में प्रचार-प्रसार करते है।” 

देश में मिलावटी दूध का है करोबार

किसानों को दूध के सही दाम न मिलने की एक वजह मिलावटी दूध भी है। किसान संगठन ने कई बार मिलावटी दूध को बंद करने और इसके लिए कड़े कानून बनाने की बात कही है। ग्वाला गद्दी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और एनीमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलूवालिया ने अपनी एक रिपोर्ट में सितंबर 2018 में कहा था कि देश में बिकने वाले 68 फीसदी दूध और उससे बने उत्पाद नकली हैं।

इस मिलावटी कारोबार का उदाहरण देते हुए मोहन कहते हैं, “देश में दूध का उत्पादन इतना नहीं है, जितने की खपत है। किसी गाँव में 1000 घर है तो सिर्फ 400 घरों में ही गाय-भैंस है। यही गाँव के बचे 600 लोगों को दूध देते हैं। यानी उनको देने के बाद वो दूध नहीं बचता जो बाहर जा सके। ऐसे में अगर गांवों में ही पर्याप्त दूध नहीं तो शहरों में कैसे पहुंच रहा?” वो लोगों से भी अपील करते हैं कि उपभोक्ताओं को चाहिए सीधे किसानों से दूध खरीदें।

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