देश में पहली बार भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से हुआ मारवाड़ी घाेड़ी 'राज-प्रथमा' का जन्म, इस तकनीक से बढ़ सकती है अब घोड़ों की सँख्या

देश में घोड़ों की संख्या में कमी एक बड़ी समस्या है, वैज्ञानिक इस समस्या से निपटने के लिए नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। मारवाड़ी नस्ल की घोड़ी में पहलीभ्रूण स्थानांतरण तकनीक से राज प्रथमा का जन्म हुआ है।

Divendra SinghDivendra Singh   25 May 2023 10:41 AM GMT

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देश में पहली बार भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से हुआ मारवाड़ी घाेड़ी राज-प्रथमा का जन्म, इस तकनीक से बढ़ सकती है अब घोड़ों की सँख्या

19 मई, 2023 को एक सरोगेट माँ से नर घोड़े का जन्म हुआ है। नवज़ात घोड़े का नाम 'राज-प्रथम' रखा गया है।

देश में पिछले कुछ वर्षों में घोड़ों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आयी है, ख़ासकर देसी नस्ल के घोड़ों में। ऐसे में मारवाड़ी नस्ल पर वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोग से एक बार फिर इनकी संख्या बढ़ सकती है।

आईसीएआर-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान के बिकानेर स्थित इक्वाइन प्रोडक्शन कैंपस में पहली बार मारवाड़ी नस्ल के घोड़े में भ्रूण स्थातंरण तकनीक से सरोगेसी के ज़रिए 'राज-प्रथमा' का जन्म हुआ है।

आईसीएआर-एनआरसीई के राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ तिरुमला राव तल्लूरी बताते हैं, "देश में घोड़े पर भ्रूण स्थातंरण तकनीक का प्रयोग पहली बार नहीं हुआ है, लेकिन मारवाड़ी जैसे देसी नस्ल के घोड़े में इस तकनीक के इस्तेमाल से पहली बार सरोगेसी से बच्चा पैदा हुआ है।"

वो आगे कहते हैं, "हमारा इंस्टीट्यूट देसी नस्लों को बचाने का काम कर रहा है, इसलिए मारवाड़ी नस्ल पर पहली बार ये प्रयोग किया गया है। क्योंकि देश में मारवाड़ी नस्ल की संख्या कम हो रही है, इसलिए इसको बचाने के लिए ये काम किया गया है।"


भ्रूण स्थानांतरण तकनीक में, ब्लास्टोसिस्ट चरण (गर्भाधान के 7.5 दिन बाद) में एक निषेचित भ्रूण को घोड़ी से लेकर और सरोगेट माँ को सफलतापूर्वक स्थानांतरित कर दिया गया।

मारवाड़ी नस्ल का नाम राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र पर पड़ा है, क्योंकि मारवाड़ क्षेत्र इनका प्राकृतिक आवास होता है। मारवाड़ क्षेत्र में राजस्थान के उदयपुर, जालोर, जोधपुर और राजसमंद ज़िले और गुजरात के कुछ निकटवर्ती क्षेत्र शामिल हैं। मारवाड़ी घोड़ों को मुख्य रूप से सवारी और खेल के लिए पाला जाता है। आमतौर पर इनके शरीर का रंग भूरा होता है। शरीर के कुछ हिस्सों सफेद पैच के साथ शाहबलूत और काला रंग भी होता है। मारवाड़ी घोड़े काठियावाड़ी घोड़ों की तुलना में लंबे होते हैं।

डॉ तल्लूरी आगे कहते हैं, "आमतौर पर एक घोड़ी अपने जीवन में आठ-दस बच्चे दे सकती है। इसलिए एक घोड़ी से ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे लेने के लिए उसके एम्ब्रयो को प्रिजर्व करके फिर दूसरे सरोगेट में उसे ट‍्रासंफर कर देते हैं, यही काम हम भी कर रहे हैं। इस तकनीक से हम 20-30 बच्चे ले सकते हैं।"

19 मई 2023 को एक सरोगेट माँ को एक ब्लास्टोसिस्ट-स्टेज भ्रूण के ट्रांसफर से 23.0 किलो के मादा घोड़े का जन्म हुआ है। नवज़ात घोड़े का नाम 'राज-प्रथम' रखा गया है।


मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल की आबादी तेज़ी से घट रही है। साल 2019 में जारी 20वीं पशुगणना के मुताबिक़ देश में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों की सँख्या 33,267 है। जबकि घोड़े और टट्टू की सभी नस्लों की सँख्या 3 लाख 40 हज़ार है, जो 2012 में 6 लाख 40 हज़ार थी।

सरोगेसी तकनीक के फायदों के बारे में डॉ तल्लूरी आगे कहते हैं, "अगर कई बार किसी मादा में गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है तो इस तकनीक से मादा के भ्रूण को स्वस्थ मादा में ट्रांसफर कर दिया जाता है। यही नहीं अगर कोई बढ़िया नस्ल की मादा है, उसके पैर में दिक्कत है या फिर किसी और कारण से गर्भधारण नहीं कर सकती है तो उसके भ्रूण को कुछ दिनों बाद सरोगेट मदर के गर्भ में ट्रांसफर कर दिया जाता है।"

अब तक, टीम ने 10 मारवाड़ी घोड़ों के भ्रूणों का विट्रिफिगेशन भी सफलतापूर्वक किया है। आगे का काम भ्रूणों को क्रायो प्रिजर्व करना है।

क्या है भ्रूण स्थानांतरण

इसे मल्टीपल ओव्यूलेशन और एम्ब्रियो ट्रांसफर (एमओइटी) तकनीक के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग बेहतर मादा पशुओं की प्रजनन दर को बढ़ाने के लिए किया जाता है। आम तौर पर, एक साल में एक गाय से एक बछड़ा/बछिया प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन एमओईटी तकनीक के इस्तेमाल से एक पशु से कई बच्चे मिल जाते हैं। एक बढ़िया नस्ल के पशु को सुपर-ओव्यूलेशन को प्रेरित करने के लिए एफएसएच जैसी गतिविधि वाले हार्मोन दिए जाते हैं। हार्मोन के प्रभाव में, मादा सामान्य रूप से उत्पादित एक अंडे की बजाए कई अंडे देती है। एस्ट्रस के दौरान 12 घंटे के बाद सुपर-ओवुलेटेड मादा का 2-3 बार गर्भाधान किया जाता है और विकासशील भ्रूणों को फिर से प्राप्त करने के लिए इसके गर्भाशय को गर्भाधान के बाद मध्यम 7वें दिन से फ्लश किया जाता है।

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