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बागपत में भी फैली ग्लैंडर्स बीमारी, अब तक नौ घोड़ों को सुलाया गया मौत की नींद

ग्लैंडर्स जीवाणु जनित रोग है। इस बीमारी के बैक्टीरिया सेल में प्रवेश कर जाते हैं। इलाज से भी यह पूरी तरह नहीं मरते हैं। यह बीमारी ज्यादातर घोड़े, गधों और खच्चरों में होती है। इस बीमारी से पीड़ित पशु को मारना ही पड़ता है।
#Glanders disease

बागपत। कुछ दिन पहले जो घोड़ा नवाब सिंह की कमाई का एकमात्र जरिया था उसको मौत की नींद सुला दिया गया, क्योंकि नवाब सिंह के घोड़े को लाइलाज बीमारी ग्लैंडर्स थी। 

बागपत जिले में पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों द्वारा 14 नमूनों को जांच के लिए हिसार स्थित केंद्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र भेजा गया था, जिसमें से नौ नमूने पॉजटिव थे। जिले में टीम द्वारा इन घोड़ों को मार दिया ताकि जिले में इस बीमारी को फैलने से रोका जा सके। इसके लिए जिले के डीएम ऋषिरेंद्र कुमार ने बागपत को कंट्रोल एरिया घोषित कर दिया है। प्रदर्शनी, मेले, पशु पैंठ और जिले में घोड़ों के आवागमन पर रोक लगा दी गई है।
हिसार स्थित केंद्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. हरिशंकर सिंगहा ने बताया, “बागपत जिले से पहले 14 सैंपल आए थे जिसमें नौ पॉजटिव थे। उसके बाद 100 सैंपल फिर आए है, जिसकी जांच चल रही है कुछ दिनों में उसकी भी रिपोर्ट आ जाएगी।” ग्लैंडर्स की बीमारी की पुष्टि के लिए देश के कई राज्यों से सैंपल केंद्र में आते है। “पिछले साल पूरे यूपी से 18 हजार सैंपल आए थे जिसमें 253 पॉजटिव निकले थे। इस बीमारी को लेकर राज्यों के जागरूकता बढ़ी है। हमारे पास यूपी ही नहीं जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश महाराष्ट्र समेत कई राज्यों से हमारे पास सैंपल आ रहे है।” डॉ. हरिशंकर ने बताया।  


ग्लैंडर्स जीवाणु जनित रोग है। इस बीमारी के बैक्टीरिया सेल में प्रवेश कर जाते हैं। इलाज से भी यह पूरी तरह नहीं मरते हैं। यह बीमारी ज्यादातर घोड़े, गधों और खच्चरो में होती है। इस बीमारी से पीडि़त पशु को मारना ही पड़ता है। अगर कोई पशुपालक इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आता है तो यह मनुष्यों में भी फैल जाती है।
19वीं जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में अश्व प्रजाति (घोड़ा, गधा, खच्चर) के 2 लाख 51 हजार पशु हैं, जिसमें अभी तक साढ़े सत्तरह हजार पशु के सैंपलों की जांच की जा चुकी है। प्रदेश के इन पशुओं से लाखों परिवारों की अजीविका जुडी हुई है। 
लखनऊ स्थित रोग एंव प्रक्षेत्र नियंत्रण निदेशक डॉ एस.के.श्रीवास्तव बताते हैं, “पूरे प्रदेश के पशुचिकित्सकों को इस बीमारी से जुड़ी जानकारी और ट्रेनिंग दी जा रही है। इसकी रोकथाम के लिए प्रदेश में सर्विलांस चलाया जा रहा है। विभाग द्वारा हर जिले से हर महीने सैंपल इकट्ठा करके जांच के लिए भेजा जा रहा है। जिनके पशुपालकों के पशु को मारा जा रहा है सरकार द्वारा उनको मुआवजा भी दिया जा है।”  


इस बीमारी से घोड़े के मरने पर 25000 रूपए और गधों, खच्चर के मरने पर 16000 रूपए की धनराशि पशुपालकों को दी जाती है। इस राशि का 50 प्रतिशत भारत सरकार और 50 प्रतिशत उत्तर प्रदेश सरकार देती है 
“घोड़े और इसकी प्रजाति के लिए ग्लैंडर्स बीमारी खतरनाक है। अब तक जिले के नौ पशु की इस बीमारी से पुष्टि हुई है और उन पशु को बेहोश करके जहर का इंजेक्शन देकर मारा जा रहा है। साथ ही गड्ढे खोदकर उन्हें दफनाया जा रहा है। इसके अलावा आस पास के कई क्षेत्रों के सैंपल को लेकर हिसार भेजा गया है।” बागपत जिले के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ राजपाल सिंह ने बताया, “हर महीने करीब 20 सैंपल को जांच के लिए भेजा जाता है। इस बार कुछ सैंपलों की पुष्टि की गई है। इस बीमारी से पशुपालक को काफी नुकसान होता था क्योंकि भूमिहीन और अल्पसंख्यक पशुपालकों की आजीविका का साधन वही होता है। इसीलिए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार मुआवजा भी देने लगी है। इस बीमारी का न तो कोई उपचार है और न ही कोई टीका निजात नहीं किया गया है।” 

लक्षण 
  • गले व पेट में गांठ पड़ जाना
  • जुकाम होना (लसलसा पदार्थ निकलना)।
  • श्वासनली में छाले
  • फेफड़े में इन्फेक्शन।


  • इस बात का रखे ध्यान...
  • इस बीमारी से प्रभावित पशु को मारने के बाद गड्ढे में दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए। गड्डा 4 फीट का होना चाहिए।
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