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बकरी दूध का बढ़ रहा है बाजार, छोटे किसानों को मिलेगा इसका फायदा

कई प्रमुख बीमारियों में बकरी के दूध की उपयोगिता सिद्ध होने के कारण देश के अधिकांश भागों में पिछले कुछ वर्षों में इसके दूध की मांग तेजी से बढ़ी है। आज दिल्ली, बंगलौर से लेकर लखनऊ तक में बकरी का दूध खरीदा और बेचा जाने लगा है।
goat milk

भारत में बकरियों को गरीबों की आजीविका का साधन माना जाता है साथ ही गरीबों की गाय के रूप में भी जाना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी बकरी के दूध की विशेषता और उपयोगिता के महत्व को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत तौर पर इसका दुग्ध उपयोग के लिए अपनाया था। यूरोपियन देशों में इसे नवजात शिशुओं की मां (नर्स) के रूप में पाला जाता है। मां का दूध उपलब्ध न होने की स्थिति में बकरी के दूध को पीने की सलाह दी जाती है। दूसरे जानवरों के बच्चों को भी बकरी के दूध पर आसानी से जिंदा रखकर पाला और बचाया जा सकता है। यह सस्ता व आसानी से उपलब्ध होने और अपनी विशेषताओं, उपयोगिताओं और गुणों के कारण औषधि का काम करता है।

वैश्विक बाजार में भारत 5.6 मिलियन टन बकरी का दूध उत्पादन करता है, जो कुल उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत है। दुनिया में भारत बकरी दुग्ध उत्पादन में भी प्रथम स्थान पर है। वैश्विक बकरी दूध का वर्ष 2018 में 8.5 बिलियन डालर का बाजार था और यह 2026 तक 11.5 बिलियन डालर के मूल्य तक पहुंचने की उम्मीद है। देश के कुल दूध उत्पादन में बकरी के दूध की लगभग 3 से 4 प्रतिशत तक हिस्सेदारी है। गुणवत्ता के अनुसार बकरी के दूध का रासायनिक संगठन लगभग मानव दूध के समान ही है।

जिस तरीके से धीरे-धीरे देश के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर अर्द्ध शहरी और शहरी क्षेत्र के लोगों में बकरी पालन के प्रति जिज्ञासा, जागरूकता और रूझान बढ़ा है। उसको देखते हुए आने वाले कुछ ही वर्षों में बकरी पालन एक उभरते हुए व्यवसाय का रूप ले सकता है। कम समय, कम श्रम और कम पूंजी के साथ इस व्यवसाय को शुरू करके कुछ ही वर्षों के अंदर बड़ा रूप दिया जा सकता है।

देश की भौगोलिक परिस्थितियों और बदलते जलवायु परिवर्तन को देखते हुए बकरी को एक भविष्य का पशु कहना गलत नहीं होगा। दुनियां में आज जहां बकरा मांस की मांग सर्वाधिक है वहीं बकरी के दूध के गुणों को देखते हुए धीरे-धीरे इसकी मांग पैदा होना शुरू हो चुकी है। देश के कई राज्यों में अलग से बकरी के दूध का बाजार खड़ा होना भी शुरू हो चुका है।

देश में अभी तक बकरी के दूध का अलग से कोई बाजार नहीं रहा है। अधिकांशतः बकरी का दूध गाय-भैस के दूध के साथ ही मिलाकर बिक्री होता रहा है। लेकिन देश के कई हिस्सों में धीरे-धीरे अलग से बकरी के दूध का बाजार खड़ा होना शुरू हो चुका है। इससे बकरी पालकों को उनके दूध का उचित भाव मिलने के साथ ही जरूरतमंद उपभोक्ताओं को शुद्ध बकरी का दूध सुलभ हो पा रहा है।

कई प्रमुख बीमारियों में बकरी के दूध की उपयोगिता सिद्ध होने के कारण देश के अधिकांश भागों में पिछले कुछ वर्षों में इसके दूध की मांग तेजी से बड़ी है। आज दिल्ली, बंगलौर से लेकर लखनऊ तक में बकरी का दूध खरीदा और बेचा जाने लगा है। राजस्थान, महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्यों के कुछ जिलों में भी बकरी का दूध खरीदा-बेचा जा रहा है। कुछ प्राइवेट संस्थान, एनजीओ, एफपीओ एवं कापरेटिव दुग्ध संघों द्वारा इस दिशा में कार्य करना शुरू किया गया है। यह बकरी पालकों से दूध खरीदकर उसे पाश्चुरीकृत करने के साथ ही पैकिंग करके बिक्री कर रहे हैं।

अभी यह कम शुरूआती स्तर पर ही हो रहा है, लेकिन शुरूआत हो चुकी है। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में अच्छी पहल की है। राज्य के इंदौर और जबलपुर दुग्ध संघों के माध्यम से इंदौर और जबलपुर संभाग के जिलों में ग्रामीण-आदिवासी बकरी पालकों से 50 से लेकर 70 रूपये प्रति लीटर की दर पर बकरी दूध खरीदने की शुरूआत की गई है। बकरी के इस दूध को प्रोसेसिंग करके 200 एमएल की बोटल में 30 रूपये की दर पर आम उपभोक्ताओं को बिक्री भी किया जा रहा है।

इससे बकरी पालकों को दूध की अच्छी कीमत मिलना शुरू हुई है। वहीं बकरी के दूध के शौकीन और जरूरतमंद लोगों को शुद्ध बकरी का दूध मिल पा रहा है। जरूरत इस बात की है कि अन्य राज्यों के दुग्ध संघों को भी इस दिशा में आगे आने की जरूरत है। अमूल ब्रांड जैसा इस दिशा में पहल करता है तो बकरी दूध के बाजार को नई दिशा मिल सकेगी। इससे बकरी पालन के प्रति आम ग्रामीणों में और अधिक रूझान पैदा होगा। क्योंकि अभी तक बकरी सिर्फ मांस के लिए ही बिक्री हो रही थी। अब दूध, मांस, रेसा और खाल सब कुछ बिक्री होने के चलते बकरी पालन और अधिक मुनाफे का धंधा बनकर उभर सकेगा।

बकरी के दूध में कैप्रोइक, कैप्रीलिक और कैप्रिक वसीय अम्लों की मात्रा अधिक होती है। इन्हीं वसीय अम्लों की मात्रा के कारण बकरी का दूध हृदय से संबंधित रोगों, गुर्दे और पित्ताशय से संबंधित विकारों व महिलाओं में प्रदर रोग के उपचार में कारगर सिद्ध हुआ है। बकरी का दूध अत्यधिक पौष्टिक होता है। इसमें पोटेशियम, आयरन और कैल्शियम सहित सभी आवश्यक विटामिन और खनिज लवणों की प्रचुरता होती हैं। यह रक्तचाप के स्तर को कम करने, चयापचय को बढ़ाने, अच्छे हृदय स्वास्थ्य को बनाएं रखने, तंत्रिका कार्यप्रणाली में सुधार करने के साथ ही लाभदायक आंत बैक्टीरिया के विकास को बढ़ाने में मदद करता है।

नियमित रूप से बकरी का दूध सेवन करने से डेंगू जैसे वायरल रोगों में रक्त प्लेटलेट काउंट में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एनीमिया, अस्थमा, एक्जिमा, मैग्नींशियम की कमी वाले रोगों, पाचन रोगों और त्वचा विकारों में भी मदद करता है। जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों, जैसे हृदय संबंधी विकार, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, मोटापा, हड्डी रोगों आदि के प्रति बढ़ती लोगों की फिक्र से बकरी दूध की मांग बढ़ी है। लैक्टोज असहिष्णु व्यक्तिओं का झुकाव भी बकरी दूध के प्रति होने से बाजार को और अधिक उत्प्रेरित कर रहा है। बकरी के दूध पर आधारित शिशु फार्मूला अपनी उच्च पोषण सामग्री के कारण आकर्षण पैदा कर रहा है।

कोविड-19 महामारी के बाद से बकरी दूध की मांग बढ़ी है। बाजार में उपलब्ध बकरी दूध उत्पादों में पाश्चुरीकृत दूध, दही, पनीर, दूध पाउडर, शिशु फार्मूला आदि शामिल हैं। इसके अलावा साबुन से लेकर सौन्दर्य प्रसाधन तक बनाने में बकरी के दूध की काफी मांग बढ़ी है। पोषण की दृष्टि से बकरी दूध को लगभग गाय के दूध के समतुल्य ही माना जाता है, लेकिन कुछ भौतिक गुणों में अंतर के कारण यह मनुष्यों की पाचनशक्ति और स्वास्थ्य के लिए प्रभावशाली है। एक्जिमा, अस्थमा, गैस संबंधी परेशानी, कब्ज अथवा पाचन संबंधी विकारों में गाय की तुलना में बकरी का दूध ज्यादा लाभदायक माना जाता है।

अध्ययनों से यह भी सिद्ध हुआ है कि गाय के दूध के विपरीत बकरी का दूध पेट में सूजन कम करता है। यह दिल का स्वस्थ्य रखता है। दिल के दौरे और एथेरोस्क्लेरोसिस जैसे हृदय रोगों के होने की संभावना को कम करता है। बकरी के दूध में प्रोटीन और कैल्शियम का अच्छा प्रतिशत होता है, जो वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के साथ ही हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक है। धीरे-धीरे ही सही लेकिन बकरी दूध के प्रति लोगों में पैदा हो रही जागरूकता और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के कारण बकरी दूध का एक नया बाजार खड़ा होना शुरू हो चुका है। इसके चलते भविष्य में इसका लाभ बकरी पालकों को मिलना तय है।

(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)

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