बरसात के मौसम में बकरियों का इस तरह रखें ध्यान, नहीं होंगी बीमारियां

बकरियों के लिए पानी स्टैंड, दाना स्टैंड और चारा स्टैंड जरूर बनाएं क्योंकि जमीन से अगर ये चीजें ऊपर रहेंगी तो नमी और गंदगी से दूर रहेंगी।

Neetu SinghNeetu Singh   27 Jun 2018 9:56 AM GMT

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बरसात के मौसम में बकरियों का इस तरह रखें ध्यान, नहीं होंगी बीमारियां

रांची(झारखंड)। बारिश के मौसम में पशुपालकों में जानकारी के अभाव में बकरियों की मृत्युदर आमतौर पर बहुत ज्यादा होती है। इस मृत्युदर को कम करने के लिए झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के राज्यस्तरीय पशु सलाहकार लक्ष्मीकांत सोनकर से गाँव कनेक्शन संवाददाता ने खास बातचीत की।

झारखंड राज्य में बकरी पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने पर होता है। यहां की जलवायु में ब्लैक बंगाल नस्ल की बकरियां उपयुक्त हैं। राज्य में 72 फीसदी लोग बकरी पालन करते हैं। बारिश में इस मृत्युदर को कम करने के लिए आजीविका मिशन और झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी पशुपालकों को जागरूक करने के लिए पिछले कई वर्षों से काम कर रहा है। पेश है पशु सलाहकार लक्ष्मीकांत सोनकर से बातचीत के मुख्य अंश।

सवाल- बरसात के मौसम में बकरियों के स्वास्थ्य को लेकर पशुपालकों के सामने क्या-क्या दिक्कतें आती हैं?

जवाब- बरसात के मौसम में बकरियों में बीमारी होने की कई वजह हैं, जैसे बरसात में नया चारा निकलता है, बरसात में नमी की वजह से नई घास निकलती है तो घास के ऊपरी हिस्से में वो कृमि लग जाती है। जब बकरियां इस नई घास को चरती हैं तो बकरियों के पेट में कृमियों की संख्या बढ़ जाती है, जिसकी वजह से दस्त होना, कमजोर होना जैसी बीमारियां होना सामान्य बात है। बरसात में भीगने पर बकरियों को निमोनिया हो जाती है, बाड़े में साफ़-सफाई न होने की वजह से भी कई तरह की बीमारियां पनपती हैं। यहां के कुछ किसान जागरूकता के अभाव में दो तीन बार बारिश होने के बाद तब इंतजाम करना शुरू करते हैं तब तक बकरियां की हालत काफी ज्यादा बिगड़ चुकी होती है। कई बार तो एक दो बकरियां मर भी जाती हैं।

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सवाल- बरसात के मौसम में बकरियों की देखरेख के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए?

जबाब- हर गाँव में हमारी पशु सखियां हैं, जो बकरियों की देखरेख को लेकर समय-समय पर पशुपालकों को जागरूक करती रहती हैं। बरसात के पहले किसी भी गाँव में बकरियों को सामूहिक रूप से डीवार्मिंग कराना जरूरी है। बकरियों में एक फड़किया रोग (एन्टो टाक्सिमियां) होता है, इस रोग में बकरियां चारा ज्यादा खाती हैं और पाचन सही से नहीं कर पाती हैं। अगर बकरी को फड़किया रोग है और वो रात में ठीक से चारा खाकर सोई हैं तो पाचन न होने की वजह से सुबह तक उसकी मृत्यु हो जाती है, इसमें पशुपालक को इलाज कराने तक का मौका नहीं मिलता है।

पशुपालक को बरसात से पहले दो टीके बकरियों को लगवाने भी महत्वपूर्ण हैं, पहला पीपीआर दूसरा ईटी (फड़किया) का टीका। ईटी का टीका दिया जाना बहुत जरूरी है क्योंकि इस टीके से 90 फीसदी बकरियों की मृत्युदर को रोका जा सकता है।

बकरियों के रहने के लिए अलग बाड़ा होना बहुत जरूरी है। जिस बाड़े में बकरियां रहती हैं उसकी नियमित साफ़-सफाई होनी चाहिए। बकरियों को बैठने के लिए मचान की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे वो नमी से दूर रहें। दीवार से सटाकर बांस की खपचियों को लगा दें उसपर अगर बकरियां बैठेंगी तो वो कई तरह की बीमारियों से बच जाएंगी। बकरियों को जहां बाँधा जाता है वहां मच्छर बहुत होते हैं इसलिए नियमित रूप से हर शाम धुआं जरूर करें। सप्ताह में एक बार जहां बकरियां बैठती हैं वहां सूखी चूनी का भुरकाव करें जिससे बैक्टीरिया न पनपने पाएं।

बकरी जब खेत से चरके आए तो बाड़ा में जाने से पहले बाड़ा के बाहर टब में पानी भरकर रख दें और उसमें लाल दवा डाल दें। बकरी जब भी बाड़े में जाए तो उस तब में पैर डालकर ही अन्दर जाए जिससे बाहर की बीमारी अन्दर नहीं पहुंचेगी।

सवाल- बकरियों के खानपान को लेकर बरसात के मौसम में क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जबाब- बरसात के मौसम में सूरज निकलने के दो घंटे बाद की बकरियों को चराने जाना चाहिए और शाम को धूप रहे उससे पहले चराकर वापस आ जाना चाहिए जिससे इनमें रोगों की संख्या कम होती है। बकरियों का पेट घास से पर्याप्त मात्रा में नहीं भरता है इसलिए सूखा चारा देना हर दिन बहुत जरूरी है। बकरियों के मेमने को चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए क्योंकि बच्चे छोटे होते हैं जो रोग से जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। इन्हें घर पर ही मुलायम पत्तियां और दाना देना चाहिए।

बकरी को बरसात का और पोखर का पानी नहीं पीने देना चाहिए, इनमें ऐसी आदत डाली जाए जिससे जब ये चरने जाएं तो पानी पीकर जाएं और जब वापस आएं तो घर पर पानी पिएं। रात का चारा सुबह न दें, गीली घास और गीला चारा न खिलाएं। बकरियों को चरने के अलावा नियमित 100 से 150 ग्राम दाना और दो किलो सूखा चारा देना चाहिए। जिससे इनकी बरसात में भी शारीरिक वृद्धि नहीं रुकेगी।

इसके अलावा बकरियों के लिए पानी स्टैंड, दाना स्टैंड और चारा स्टैंड जरूर बनाएं क्योंकि जमीन से अगर ये चीजें ऊपर रहेंगी तो नमी और गंदगी से दूर रहेंगी। अगर चारा स्टैंड में टांग देते हैं तो बकरियां उछलकर खाती हैं जिससे उनकी पाचन क्रिया अच्छी रहती है, दूसरा बरसात में अगर पत्ते गीले हैं तो चारा स्टैंड में टांगने से पत्तों का पानी नीचे गिर जाता है। पानी हमेशा ताजा पिलाएं।

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सवाल-बकरियों के रहने के लिए अलग से बाड़ा बनाना कितना जरूरी है?

जबाब- बकरियों का अलग से बाड़ा होना बहुत जरूरी है क्योंकि बकरियों में कई ऐसे रोग होते हैं जो बकरियों से मनुष्यों में पहुंच जाते हैं। टीबी और रेबी ऐसे रोग हैं जो बकरी से मनुष्यों में हो जाते हैं। जो बकरी बीमार है, उसे बाड़े से अलग रखें और उसे चराने न ले जाएं। बड़े जानवरों के साथ बकरियों को न बांधें। बकरी बहुत ही सफाई वाला जानवर है इसलिए बाड़े में साफ़-सफाई का खास ध्यान रखा जाए।

अगर एक बाड़ा 300 स्क्वायर फीट की जगह में बनाना है तो 100 स्क्वायर फीट की जगह को छायादार बनाएं बाकी खुला छोड़ दें। जिससे बकरी का जब मन होगा छायादार जगह में बैठेगी जब मन होगा खुले में बैठेगी। बकरी गर्मी बर्दाश्त कर सकती है पर बरसात का मौसम बकरी के लिए सहन करना मुश्किल होता है इसलिए इस मौसम में बकरी की देखरेख की खास जरूरत होती है।

सवाल- झारखंड में कितने फीसदी लोग बकरी पालन करते हैं? झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी बकरियों की देखरेख को लेकर क्या प्रयास कर रहा है?

जवाब- झारखंड में 72 फीसदी लोग बकरी पालन करते हैं। यहां ब्लैक बंगाल नस्ल पायी जाती है। आजीविका मिशन के तहत राज्य में करीब पांच हजार पशु सखियां काम करती हैं, जिनका काम घर-घर जाकर बकरियों का टीकाकरण करना और उनका इलाज करना है। ये पशु सखियां पशुपालकों को समय-समय पर बकरियों की देखरेख को लेकर जागरूक करती हैं जिसकी वजह से बरसात में होने वाली बकरियों की मृत्युदर में कमी आयी है।

जो मृत्युदर पहले यहां 35 फीसदी थी अब वही मृत्युदर घटकर पांच फीसदी बची है। पहले जो पशुपालक बरसात शुरू होते ही बकरियां बेच देते थे, अब वो उनकी सही देखरेख करते हैं। जो पहले पांच सात बकरियां पालते थे अब वही 15-20 बकरियां पाते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान

  • बकरी को सूखें स्थान पर और साफ़-सफाई से रखें जिससे बीमार होने की संभावना बहुत कम रहती है।
  • बकरी को सूरज निकलने के दो घंटे बाद चराने ले जाएं और सूरज ढलने से पहले बाड़े में वापस ले आएं।
  • बकरी का अलग से बाड़ा जरूर बनायें और उनके बैठने के लिए लकड़ी या बांस का मचान बनाएं।
  • बकरी को पेट के कीड़े की दवा तीन से चार महीने के अंतराल पर दें, जिससे बकरी का शारीरिक विकास अच्छा होगा। ये दवा हमेशा भूखे पेट दें जिससे दवा का असर पूरा होता है।
  • टीकाकरण समय-समय पर कराएं जिससे बीमारी से होने वाले नुकसान से बचा जा सके।
  • सभी बकरियों को सामूहिक रूप से बरसात से पहले और बाद में कृमिनाशक दवा जरूर दें।
  • बकरी को सप्ताह में एक बार नीम के पत्ते जरूर खिलाएं।
  • बकरी को ताजा पानी और चारा दें। चारा, पानी और दाना को मिट्टी की सतह से दूर रखें इसके लिए पानी, चारा और दाना स्टैंड बनाएं।
  • गर्भवती बकरी को अतिरिक्त आहार दें। नर मेमने का बधियाकरण दो से चार महीने की उम्र में करवाएं।
  • ऐसे पहचाने बकरी में खुरपका मुंहपका रोग

  • बकरी के मुंह एवं खुर मे छाले हो जाते हैं, जो धीरे-धीरे घाव बन जाते हैं।
  • बकरी खाने-पीने में कमी कर देती है।
  • यह सामान्य चाल नही चल पाती है।
  • रोग की गम्भीर अवस्था मे घाव में कीड़े पड़ जाते हैं जिससे खून बहने लगता है।
  • खुरपका मुंहपका रोग का ऐसे करें उपचार।
  • लाल दवा के दो प्रतिशत घोल से बकरी को नियमित मुंह और खुरों को साफ़ करें।
  • लाल दवा से घाव धुलने के बाद धतूरा तेल लगाने से आराम मिलता है।
  • समय पर टीकाकरण करवाना ही एक मात्र बचाव का साधन है।
  • रोग की अवस्था मे लगातार तीन दिन तक हर्बल मसाला बोलस देने से रोग धीरे धीरे ठीक हो जाता है।

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