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पशुओं को लू लग जाए तो इन तरीकों से करें उपचार

#animal husbandry

लखनऊ। गर्मियों के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़ते हुए तापमान से पशुओं में लू लगने का खतरा बढ़ जाता है। लू लगने से पशुओं की त्वचा तो सिकुड़ जाती है साथ ही दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन भी घट सकता है।

गर्मी के मौसम में पशुपालकों को अपने पशुओं को सुरक्षित रखने के लिए भी सावधान रहने की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में चलने वाली गर्म हवाएं (लू) जिस तरह हमें नुकसान पहुंचती हैं ठीक उसी तरह ये हवाएं पशुओं को भी बीमार कर देती हैं। अगर पशुपालक उन लक्षणों को पहचान लें तो वह अपने पशुओं का सही समय पर उपचार कर उन्हें बचा सकते हैं।

अगर पशु गंभीर अवस्था मे हो तो तुरंत निकट के पशुचिकित्सालय में जाए। क्योंकि लू से पीड़ित पशु में पानी की कमी हो जाती है। इसकी पूर्ति के लिए पशु को ग्लूकोज की बोतल ड्रिप चढ़वानी चाहिए और बुखार को कम करने व नक्सीर के उपचार के लिए तुरन्त पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।


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आमतौर पर इस मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक। पशुपालक अपने पशु को दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाए। जिससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद मिलती रहे। इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ी मात्रा में नमक एवं आटा मिलाकर पानी पिलाना चाहिए।

लक्षण-

  • पशुओं को लू लगने पर 106 से 108 डिग्री तेज बुखार होता है
  • पशु सुस्त होकर खाना-पीना छोड़ देता है
  • मुंह से जीभ बाहर निकलती है तथा सांस लेने में कठिनाई होती है
  • मुंह के आसपास झाग आ जाता है
  • उपचार-
  • इस रोग से पशुओं को बचाने के लिये निम्न सावधानियां बरतनी चाहिये
  • पशु बाड़े में शुद्ध हवा जाने एवं दूषित हवा बाहर निकलने के लिये रोशनदान होना चाहिए
  • गर्म दिनों में पशु को दिन में नहलाना चाहिए खासतौर पर भैंसों को ठंडे पानी से नहलाना चाहिए
  • पशु को ठंडा पानी पर्याप्त मात्रा में पिलाना चाहिए
  • पशुओं की टीन या कम ऊंचाई वाली छत के नीचे नही बंधन चाहिए

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दुधारू पशुओं के चारे पर विशेष ध्यान दें

गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन एवं पशु की शारीरिक क्षमता बनाये रखने की दृष्टि से पशु आहार बहुत ही महत्वपूर्ण है। गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा अधिक मात्रा में देना चाहिए। इसके दो लाभ हैं- पशु चाव से हरा एवं पौष्टिक चारा खाकर अधिक ऊर्जा प्राप्त करता है तथा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करती है।

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