देश की राजधानी दिल्ली में घोड़े ग्लैंडर्स बीमारी की मार झेल रहे हैं और घोड़ा पालकों के माथे चिंता की लकीरें उभर आई हैं। ग्लैंडर्स बीमारी की चपेट में आने वाले घोड़ों को मार दिया जाता है जिस वजह से घोड़ा पालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
दिल्ली में ग्लैंडर्स बीमारी की चपेट में आए सात घोड़ों को पशुपालन विभाग ने मार दिया। बताया जा रहा है कि यदि राजधानी में किसी अन्य घोड़े में भी यह लक्षण दिखा तो उसे भी मार दिया जाएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, यह इंफेक्शन इंसानों के लिए भी बेहद खतरनाक है। घोड़ों में होने वाली ये बीमारी इंसानों में भी फैलने का डर है। इसी वजह से सरकार ने पशुपालन विभाग को ग्लैंडर्स बीमारी की चपेट में आए घोड़ों को मारने का आदेश दिया है।
राजा गार्डन स्थित पशुपालन केंद्र ने कुछ समय पहले घोड़ों के 13 सैंपल जांच के लिए हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (एनआरसीआई) भेजे थे। यहां 13 में से 7 सैंपल पॉजिटिव पाए गए, जिन्हें पशुपालन विभाग ने बेहोशी की दवा देकर मार दिया।
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19 वीं पशुगणना के अनुसार देशभर में करीब 11.8 लाख अश्व प्रजाति (घोड़ा, गधा, खच्चर) है, इससे लाखों परिवारों की अजीविका जुड़ी हुई है।
इस बीमारी का फैलाव सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से हुआ है। पशु मेलों में खरीदे और बेचे गए घोड़े देश के विभिन्न हिस्सों में जाते है। अभी यूपी के अलावा गुजरात, उत्तराखंड़, जम्मू कश्मीर, दिल्ली , राजस्थान समेत कई राज्यों से सैंपल आ रहे है। अब इस रोग के मामले लगातार बड़े स्तर पर सामने आ रहे है।” ऐसा बताते हैं, हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान(एनआरसीई) केंद्र के निदेशक डॅा भूपेंद्र नाथ त्रिपाठी।
बरतें सतर्कता
ब्रुक इंडिया के सहयोगी करन बताते हैं , “यह बीमारी कुछ दिन से लेकर महीनों तक प्रभावित करती है, अगर पशुपालक को इस बीमारी के लक्षण दिखें तो तुरंत पास के पशु चिकित्सालय में इसकी सूचना दें और खून की जांच कराएं।”
क्या है ये बीमारी
ग्लैंडर्स बीमारी एक संक्रामक रोग है। इस बीमारी के बैक्टीरिया सेल में प्रवेश कर जाते हैं। इलाज से भी यह पूरी तरह नहीं मरते हैं। ऐसे में दूसरे जानवर और इंसान भी इससे संक्रमित हो जाते हैं।यह बीमारी ऑक्सीजन के जरिये फैलती है। शरीर में गांठे पड़ जाती हैं। गांठों में संक्रमण होने के कारण घोड़ा उठ नहीं पाता है और बाद में उसकी मृत्यु हो जाती है।
लक्षण
- गले व पेट में गांठ पड़ जाना
- जुकाम होना (लसलसा पदार्थ निकलना)
- श्वासनली में छाले
- फेफड़े में इन्फेक्शन
- बचाव के लिए क्या करें
- पशु को समय पर ताजा चारा-पानी देना
- बासी खाना न दें
- ज्यादा देर तक मिट्टी-कीचड़ में न रहने दें
- साफ-सफाई का ध्यान रखना
- गर्मी में नहलाना
- दवाओं का छिड़काव जरुर करें
- बीमार पशुओं के नजदीक न जाने दें
इस बात का रखें ध्यान
इस बीमारी से प्रभावित पशु को मारने के बाद गड्ढे में दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए। गड्डा 4 फीट का होना चाहिए।