गर्मियों में नवजात पशुओं की देखभाल करना ज्यादा जरूरी होती है। अगर पशुपालक उनका ढग़ से ख्याल नहीं रखता है तो उसको आगे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर पशुपालक अपने स्तर पर नवजात पशुओं की देखभाल कर सकता है।
इन बातों का रखें ध्यान
सीधे तेज धूप और लू से नवजात पशुओं को बचाने के लिए नवजात पशुओं को रखे जाने वाले पशु आवास के सामने की ओर खस या जूट के बोरे का पर्दा लटका देना चाहिये ।
नवजात बच्चे के जन्म के तुरंत बाद उसकी नाक और मुंह से सारा म्यूकस(लेझा बेझा)बाहर निकाल देना चहिये ।
अगर बच्चे को सांस लेने में ज्यादा दिक्कत हो तो उसके मुंह से मुंह लगा कर सांस प्रक्रिया को ठीक से काम करने देने में सहायता पहुंचानी चहिये ।
नवजात बछड़े का नाभि उपचार करने के तहत उसकी नाभिनाल को शरीर से आधा इंच छोड़ कर साफ धागे से कस कर बांध देना चहिये।
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बंधे स्थान के ठीक नीचे नाभिनाल को स्प्रिट से साफ करने के बाद नये और स्प्रिट की मदद से कीटाणु रहित किये हुए ब्लेड की मदद से काट देना चहिये । कटे हुई जगह पर खून बहना रोकने के लिए टिंक्चर आयोडीन दवा लगा देनी चहिये।
नवजात बछड़े को जन्म के आधे घंटे के अंदर खीस पिलाना बेहद जरूरी होता है । यह खीस बच्चे के भीतर बीमारियों से लडऩे में मदद करता है ।
अगर कभी बच्चे को जन्म देने के बाद मां की मृत्यु हो जाती है तो कृत्रिम खीस का प्रयोग भी किया जा सकता है । इसे बनाने के लिए एक अंडे को फेंटने के बाद 300 मिलीलीटर पानी में मिला देते हैं । इस मिश्रण में 1/2 छोटा चम्मच रेंडी का तेल और 600 मिलीलीटर सम्पूर्ण दूध मिला देते हैं। इस मिश्रण को एक दिन में 3 बार 3-4 दिनों तक पिलाना चहिये ।
इसके बाद यदि संभव हो तो नवजात बछड़े/बछिया का वजन तथा नाप जोख कर लें और साथ ही यह भी ध्यान दें कि कहीं बच्चे में कोई असामान्यता तो नहीं है । इसके बाद बछड़े/बछिया के कान में उसकी पहचान का नंबर डाल दें ।
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