लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बिसनपुर गाँव में रहने वाले राजपाल शर्मा छुट्टा जानवरों से फसल को बचाने के लिए तपती धूप हो या कड़ाके की ठंड दिन-रात खेतों में गुजार देते हैं। यह कहानी सिर्फ राजपाल की नहीं है। छुट्टा जानवरों की समस्या से देश का हर गाँव हर किसान पीड़ित है।
भारत के ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत की समस्याओं और मुद्दों को समझने के लिए मई 2019 में देश के 19 राज्यों में एक सर्वे कराया। इस सर्वे में 18,267 लोगों की राय ली गई। सर्वें में छुट्टा पशुओं की समस्या को भी शामिल किया गया। इसमें 43.6 फीसदी लोगों ने माना कि छुट्टा पशुओं की समस्या नहीं थी लेकिन अब यह एक समस्या बन गई। वहीं 20.5 प्रतिशत लोगों ने माना कि यह एक समस्या है।
वर्ष 2012 में हुई अंतिम पशुगणना के अनुसार भारत में करीब 52 लाख छुट्टा पशु हैं। पिछले सात सालों में इनकी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी ही हुई है। वहीं 16 जुलाई 2018 में ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ में छपी खबर के मुताबिक के भारत में 52 लाख छुट्टा गायें सड़कों पर घूमती हैं। शहरों में ये यातायात जाम करती हैं तो गांवों में ये खेतों को नुकसान पहुंचाती हैं। खबर के मुताबिक एक राज्य में दस लाख से अधिक छुट्टा पशु हैं।
किसानों के लिए अनुत्पादक गायों को रखना बेहद कठिन और खर्च से भरा होता है इसलिए वह उन्हें छुट्टा छोड़ देते हैं। “पहले खेतों में बैलों का प्रयोग होता था और अगर किसी को जरुरत नहीं थी तो वह पशु बाजार में बेच देता था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता है। हरा चारा और भूसा इतना मंहगा है कि किसान उसे खरीद कर जानवर को नहीं खिला सकता।” ऐसा बताते हैं, राजपाल शर्मा। राजपाल उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के बिसनपुर गाँव में 10 एकड़ गेहूं, धान आलू की खेती करते हैं। राजपाल छुट्टा जानवरों की समस्या को लेकर पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से भी मिल चुके है।
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बढ़ते मशीनीकरण और पशुओं की खरीद-बिक्री पर रोक लगने छुट्टा जानवरों की संख्या ने देश में विकराल रुप ले लिया। भोपाल स्थित केन्द्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक खेती का 90 फ़ीसदी काम मशीनों से हो रहा है और मानव और पशु श्रम 5-5 फ़ीसदी है। पंजाब राज्य के बरनाला जिले में रहने वाले कवलजीत सिंह का कहना हैं, “अभी तक खेत में बिजली, पानी, खाद बीज का खर्चा था वहीं अब छुट्टा पशुओं से फसल को बचाने के लिए तारबंदी करानी पड़ती जिसमें खर्च बहुत आता है खेती करना अब आसान नहीं रह गया।”
बड़े और संपन्न किसान तो खेतों को बचाने के लिए उपाय कर लेते है लेकिन छोटे किसानों के लिए तारबंदी कराकर अपने खेत को बचाना एक कठिन काम हो गया है। वह इस आर्थिक बोझ को नहीं पाते हैं, जिससे उनका उत्पादन कम हो रहा है और आय भी लगातार घट रही है। “पिछले साल मूंग की फसल लगाई थी दिन-रात भर पहरा देने के बावजूद 50 प्रतिशत नुकसान हो गया।” उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्व नगर जिले के मगरौली गाँव में रहने वाले गौरव मिश्रा ने बताया।
गौरव छुट्टा जानवरों की संख्या बढ़ने का कारण पशुओं की खरीद बिक्री की रोक को मानते हैं। वह बताते हैं, “सरकार ने जब से पशुओं की खरीद बिक्री पर रोक लगाई है तब से यह दिक्कत काफी बढ़ गई है। मेरे गाँव में छुट्टा जानवरों की वजह से एक किसान मर भी गया। जानवर इतने निडर है कि हमला कर देते है।”
गोरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने 23 मई को एक अधिसूचना जारी करके मवेशी बाजार से पशुओं के वध के लिए उनकी खरीद फरोख्त पर प्रतिबंध लगाने संबंधी अधिसूचना जारी की थी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति मवेशी खरीदता है तो उसे लिखित में यह वादा करना होगा कि वह इनका इस्तेमाल खेती के काम में ही करेगा, न कि मारने के लिए।
इसके अलावा खरीद-फरोख्त से पहले क्रेता और विक्रेता के लिए पहचान-पत्र और स्वामित्व का सबूत दिखाने, पशु बिक्री की प्रतियां संबंधित जिले के स्थानीय राजस्व अधिकारी, पशु चिकित्सा अधिकारी, पशु बाजार समिति और विक्रेता को देने और खरीदे गए मवेशियों की अगले छह महीने तक बिक्री न करने जैसी शर्तें जोड़ी गई थीं। इन मवेशियों में गाय, बैल, सांड, बधिया बैल, बछड़े, बछिया, भैंस और ऊंट शामिल थे। इस नोटिफिकेशन को लेकर केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में तीखा विरोध देखा गया था।
छुट्टा जानवरों की समस्या को लेकर खेतों और सड़को तक ही सीमित नहीं है इस मुद्दे को लेकर किसान संसद तक पहुंच चुके है। हरियाणा राज्य के भिवानी जिले में भारतीय किसान यूनियन के युवा प्रदेश अध्यक्ष रवि आजाद बताते हैं, “हरियाणा सरकार घोषणाओं की सरकार है। आवारा जानवरों के लिए राज्य में नंदी गोशालाएं बनाने का निर्देश दिया गया था पर आज तक एक भी ईट नहीं लगी।” अपनी बात को जारी रखते हुए आजाद ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, “हरियाणा राज्य का कोई किसान ऐसा नहीं है जो छुट्टा जानवर से परेशान नहीं है।
किसान दिनभर खुद खेतों में रहता है और रात में पूरा परिवार फसल बचाता है फिर भी उत्पादन का 20-30 हिस्सा पशु खराब कर देते है। पिछले पांच-छह सालों में यह समस्या ज्यादा बढ़ी है और दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। हम अधिकारियों घर सामने पशुओं को लेकर गए आंदोलन किया लेकिन समस्या बनी है।”
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खेतों और सड़कों पर छुट्टा जानवरों की संख्या बढ़ने का कारण ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने लिखा है गाय को एक धार्मिक जानवर माना जाता है, जिसे भारत की 80 प्रतिशत हिंदू आबादी पवित्र मानती है। कई राज्यों में गोवंश हत्या पर प्रतिबंध है। केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में गोहत्या पर प्रतिबंध नहीं है।
गोवा, जहां पर गो हत्या पर प्रतिबंध नहीं है, वहां पर सरकार द्वारा छुट्टा पशुओं के लिए विशेष प्रबंध किया जाता है। इस योजना के तहत गोवा सरकार की तरफ से पंचायतों को पशुओं के लिए धन दिया जाते हैं। अभी तक सिर्फ तीन संगठनों को इसके तहत धन मिला है।
भारत में खासकर उत्तर प्रदेश में छुट्टा गोवंश बड़ी समस्या बने हुए हैं। पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं (छुट्टा पशुओं) की संख्या सात लाख 33 हज़ार 606 है। इन पशुओं को संरक्षित करने के लिए योगी सरकार ने गोवंश आश्रय स्थल खोलने के निर्देश दिए। उत्तर प्रदेश के 68 जिलों में एक-एक करोड़ रुपए और बुंदेलखंड के 7 जिलों को डेढ़ करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। लेकिन जमीन स्तर पर देखे तो समस्या और विकराल हो गई है।
गाँव कनेक्शन की टीम ने सरकार द्वारा बनाए गए गोवंश आश्रय स्थल की स्थिति देखी और उस स्थिति से लोगों को रु-ब-रु कराया। इन आश्रयों में चारे पानी की उचित व्यवस्था न होने से छुट्टा जानवर मरने को मजबूर है। वहीं आश्रयों में जिंदा गायों की आंखों को कौवे नोच-नोचकर खा रहे थे। इन स्थलों में गायों की संख्या से ज्यादा उनकी कब्रें थी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने तीसरे बजट में गोवंश के संवर्धन, संरक्षण, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थाई गोशालाएं, शहरी इलाकों में कान्हा गोशाला और बेसहारा पशुओं के रखरखाव के लिए अलग-अलग मदों में 612.60 करोड़ रुपए का इंतजाम किया था। इनमें से 248 करोड़ रुपए ग्रामीण इलाकों के लिए थे। छुट्टा जानवरों के लिए सरकार ने लंबा चौड़ा बजट तो पास कर दिया लेकिन अभी जमीनी स्तर पर इस बजट का कैसे इस्तेमाल हो रहा है सरकार द्वारा इसकी कोई निगरानी नहीं की गई।
वाशिंगटन के मुताबिक भारत में पशुओं के लिए 1800 गौशालाएं आश्रय गृह के रूप में हैं। एक आश्रय गृह में सात महीने के दौरान लगभग 8000 पशुओं की मौत हो जाती है।
“गोवंश आश्रय स्थल बना दिए गए लेकिन सुद लेने कोई नहीं आया। किसान आज भी अपनी फसल को बचाने के लिए खेतों में ही है।” उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की ग्राम पंचायत रामसनेही घाट में रहने वाले राजपुतान सिंह ने बताया। गायों के कल्याण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने मंडी, शराब और टोल आदि पर सेस लगाया था।
द वाशिंगटन पोस्ट’ में छपी खबर में यह साफ लिखा है कि भारत में छुट्टा पशुओं के लिए केवल 1821 शरणागृह है। अगर हम मान भी लें कि छुट्टा पशुओं की संख्या में कोई भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई है तो भी यह संख्या काफी कम है। 52 लाख छुट्टा पशुओं के लिए करीब 5000 शरणागृहों की अभी आवश्यकता है।
बिहार राज्य के किसान छुट्टा गोवंश से तो परेशान है इसके साथ ही बड़ी संख्या में नीलगाय, बन सुअर खेतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पटना जिले के मोकामा ब्लॉक में टाल विकास समिति के संयोजक आनंद मुरारी बताते हैं, ”इसमें किसानों की सबसे बड़ी गलती है वह जानवर को सुबह 8 से शाम 4 बजे तक छोड़ देता है। और वह आंतक मचाते हैं। अगर थाने में रिपोर्ट करो तो थानेदार बोलते है अपनी फसल की सुरक्षा खुद करों। ऐसे में सरकार को कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि जो किसान गोवंश को छुट्टा छोड़े उस पर कार्रवाई हो।”
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किसान या पशुपालक जिसकी आय पहले से ही कम है ऐसे में इन अनुपयोगी गोवंश को रखने, भरण पोषण आदि में उनके पर खर्च करने में असमर्थ है। पहले गाय का दूध देना बंद कर देने और खेती में अनुपयोगी बैलो को बेच दिया करते थे और इसके बदले उनको नई गाय खरीदने के लिए एकमुश्त राशि मिल जाया करती थी लेकिन केंद्र सरकार ने मांस के लिए मवेशियों की बिक्री पर पूरी तरह से पांबदी लगा दी, अब इन अनुपयोगी गोवंश को कोई खरीदने वाला नहीं हैं जिसके चलते किसानों के पास अपने अनुपयोगी गोवंश को छुट्टा छोड़ने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नही बचा हैं|
इन छुट्टा जानवरों की स्थिति झारखंड राज्य में कुछ अलग दिखाई देती है। इस राज्य के रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर गोला गाँव के रहने वाले अमित कुमार (25 वर्ष) ने बताया, “हमारे यहाँ हमेशा से गाय रही है पर हमारे यहाँ कोई भी गाय को छुट्टा नहीं छोड़ता है। हमारे खूटे पर ही गाय बूढ़ी हो जाती है पर उसे छोड़ते नहीं है। कुछ लोग बेच देते हैं पर ज्यादातर लोग पालकर ही रखते हैं।” वो आगे बताते हैं, “हमारे यहाँ ऐसी कई गायें हमारे खूंटे पर ही मरी हैं जिन्होंने कई साल दूध नहीं दिया और कुछ बूढ़ी हो गयी। हमारे यहाँ लोग बूढ़ी गाय इसलिए नहीं बेचते क्योंकि लोग सोचते हैं उन्हें काट दिया जाएगा।”
वहीं रांची जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर सिल्ली प्रखंड की लक्ष्मी देवी बताती हैं, “हमारे यहाँ लोग गाय को जबतक मन करता है तबतक पालते हैं। कई बार चारा न होने की वजह से लोग उसे बेच देते हैं पर खुला नहीं छोड़ते हैं। अगर लोग गाय को खुला छोड़ेंगे तो रोज गाँव में लड़ाई-झगड़ा होगा इसलिए लोग भले ही बेच दें पर दूसरों की फसल नुकसान होने की वजह से छोड़ते नहीं हैं।”
पंजाब में डेयरी व्यवसाय को एक नई दिशा देने के प्रयास से प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) पिछले 13 वर्षों से काम कर रही है। इस संगठन से करीब 7 हजार किसान जुड़े हुए है। इनमें से अधिकतर किसानों ने खेती के बजाय के डेयरी को मुख्य करोबार बना लिया है कारण है आवारा जानवरों की समस्या।
प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के सदस्य राजपाल सिंह ने फोन पर बताया, ” पंजाब में और राज्यों की तुलना में समस्या ज्यादा गंभीर है। इसमें पंजाब के तो आवारा जानवर है साथ ही राजस्थान से जो किसान पशुओं को फीडिंग कराने के लिए लाते हैं वो भी इन्हें छोड़ जाते है। इन जानवरों से लड़ाई झगड़े भी बढ़े है क्योंकि 15 से 20 हजार रुपए खर्च करके जानवरों को लादकर एक गाँव से दूसरे गाँव ले जाते हैं।”
बात को जारी रखते हुए सिंह बताते हैं, “एक पशु पर एक दिन में 100 में रुपए का खर्चा आता है। अब जो पशु दूध नहीं देता है उसको किसान क्यों रखेगा। इनका स्लाटर होना ही इसका हल है अन्यथा यह समस्या हल नहीं हो सकती है।”
सरकार कर रही प्रयास
छुट्टा जानवरों की समस्या से निपटने और नस्ल सुधार के लिए कई राज्यों में ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है जिसमें 90 प्रतिशत बछिया ही पैदा होती है।
उत्तराखंड राज्य के ऋषिकेश के श्यामपुर गांव में देश की पहली सेक्स सॉर्टेड सीमेन प्रयोगशाला बनाई गई है जहां आधुनिक तकनीक की मदद से सिर्फ बछिया ही पैदा की जाएगी। साथ ही पशुपालकों सस्ती दरों पर कई नस्लों के सीमन उपलब्ध कराए जाएंगे। उत्तराखंड पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. एम.एस. नयाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अभी प्रयोगशाला में अलग-अलग प्रजाति (होलस्ट्रीन फीजियन, जर्सी, साहीवाल, गिर, रेड सिंधी समेत कई प्रजाति) समीन डोज तैयार किए जा रहे थे। मार्च से हमारे पास सेक्स सोर्टेड सीमन भी उपलब्ध है। ”
बात को जारी रखते हुए नयाल ने आगे बताया, “अभी हमारे पास उच्च नस्ल के 138 सांड हैं, जिनसे डोज तैयार की जा रही है। सेक्स सोर्टेड सीमन के लिए पहले साल में 2 लाख डोज पैदा करेंगे आने वाले समय में 3 लाख डोज पैदा की जाएंगी। किसानों को यह सस्ती दरों पर उपलब्ध हो, इसके लिए केंद्र और राज्य मदद भी कर रही है।”
सेक्स सार्टेड सीमन की तकनीक को पूरे देश के सीमन स्टेशनों में विकसित किया जा रहा है। भारत में कुल 56 सीमन स्टेशन हैं। ये स्टेशन लगभग 70 मीलियन डोज का उत्पादन कर सकते हैं जो कि भारत के पशु संपदा के 25 फीसदी जनसंख्या की भरपाई कर सकता है। इस तकनीक पहले से ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के किसानों द्वारा प्रयोग किया जा रहा है। सेक्स सार्टेड सीमन प्रोजेक्ट के तहत साहीवाल, गंगातीरी, कांकरेज और गिर जैसे प्रजातियों में इनका प्रयोग होगा। क्योंकि यह नस्ले मौसम से जल्दी सामांजस्य बैठा लेती हैं जिसकी वजह से इनमें बीमारियां नहीं होती हैं।
देश में दूध उत्पादन बढ़ाने और नस्ल सुधार के लिए ऋषिकेश में देश की पहली सेक्स सोर्टेड सीमन प्रयोगशाला बनाई गई है। इस प्रयोगशाला में आधुनिक तकनीक की मदद से सिर्फ बछिया ही पैदा होगी। इस सीमन को उत्पादित करने वाला उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है। जुलाई 2018 में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने किया था। राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के तहत इस प्रयोगशाला को 47 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है।
“ऋषिकेश में पहले से डीप फ्रोजन सीमन प्रोडक्शन सेंटर है, जहां पर 30 लाख डोज अलग-अलग प्रजाति (होलस्ट्रीन फीजियन, जर्सी, साहीवाल, गिर, रेड सिंधी समेत कई प्रजाति) के तैयार कर रहे थे। लेकिन मार्च से हमारे पास सेक्स सोर्टेड सीमन भी उपलब्ध है। यह पहला राज्य है, जिसके पास इतनी क्षमता है,” ऐसा बताते हैं, उत्तराखंड पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. एम.एस. नयाल ने गाँव कनेक्शन को बताया।
आयुक्त भूषण त्यागी के मुताबिक इस तकनीक के इस्तेमाल से जब सिर्फ दस प्रतिशत बैल बचेंगे तब उनकी मांग भी बढ़ेगी। अगर हम एक्स क्रोमोसोम का उपयोग गायों के उत्पादन में करते हैं तो वाई क्रोमोसोम का उपयोग हम भविष्य में बैलों के उत्पादन में कर सकते हैं। जनसंख्या को आगे बढ़ाने के लिए 10 प्रतिशत बैल ही पर्याप्त हैं। गुजरात में एक हजार से अधिक बैलों की जरूरत नहीं है। एक बैल के सीमन को 50 से अधिक वर्षों तक संरक्षित रखा जा सकता है, जिससे करीब 1000 गायें पैदा हो सकती हैं।
जानें क्या है x व y क्रोमोसोम
सामान्य सीमन में x व y दोनों ही तरह के क्रोमोजोम को कैरी करने वाले स्पर्म होते हैं। यानी एक ही सीमन सैंपल में कुछ स्पर्म x क्रोमोसोम वाले होते हैं तथा कुछ स्पर्म क्रोमोसोम y वाले होते हैं| ऐसे सीमन से एआई (कृत्रिम गर्भाधान) करने पर यदि x क्रोमोसोम वाला स्पर्म अंडे को फर्टिलाइज करता है तो बछिया पैदा होती है और यदि y क्रोमोसोम वाला क्रोमोसोम अंडे को फर्टिलाइज करता है तो बछड़ा पैदा होता है। सेक्स सोर्टेड सीमन में सिर्फ एक ही तरह के क्रोमोजोम (x या y) को कैरी करने वाले स्पर्म होते हैं। यानी एक सीमन सैंपल में सभी स्पर्म x क्रोमोसोम कैरी करने वाले होते हैं या सभी स्पर्म y क्रोमोसोम कैरी करने वाले होते हैं। x क्रोमोसोम वाले सेक्सड सीमन से AI करने पर बछिया पैदा होती तथा y क्रोमोसोम वाले सेक्सड सीमन से AI करने पर बछड़ा पैदा होता है| इसलिए इस तकनीक के इस्तेमाल से 90 प्रतिशत बछिया ही पैदा होती है।
उत्तर प्रदेश में पायलेट प्रोजेक्ट के रुप में इस सीमन का इस्तेमाल किया गया है। उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने डॉ शिव प्रसाद ने बताया, सीमन की जांच के लिए सरकार ने प्रदेश के तीन जिलों (इटावा, लखीमपुरखीरी, बाराबंकी) में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में गायों में इस सीमन का इस्तेमाल किया था, जिससे अभी तक 714 संतित जन्म ले चुकी है। इनमें से 648 मादा और बाकी नर ने जन्म लिया।
”जहां पहले 10 में से 5 बछड़े पैदा हो रहे थे वहीं इस सीमन के इस्तेमाल से 10 में से 2 बछड़े ही पैदा हो रहे है किसानों को यह सीमन आसानी से मिल सके इसके लिए अप्रैल 2019 में हापुड़ के बाबू्गढ़ फार्म भी बनाया जा रहा है, जिसमें साहीवाल, गिर, थारपारकर और गंगीतीरी नस्ल के सीमन तैयार किए जाऐंगे।” डॉ शिव प्रसाद ने बताया, ”देश में इस समय 30 फीसदी (साढ़े सात करोड़) कृत्रिम गर्भाधान होता है, जिसमें 50-50 फीसदी नर और मादा होते हैं लेकिन इस तकनीक से ये मादा ही होंगी। इस तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान को 30 फीसदी से बढ़ाकर 80 फीसदी तक करने की तैयारी है।”
आवारा जानवरों के लिए राज्यों में बजट भी कम
उत्तर प्रदेश सरकार ने 30 रुपये प्रति पशु प्रतिदिन के हिसाब से और राजस्थान सरकार ने 32 रुपये प्रति पशु के हिसाब से अनुदान देती है परन्तु यह राशि बहुत ही कम है क्योंकि एक गाय या बैल एक दिन में कम से कम 17-20 किलों चारा खायेगा और एक किलो चारे की कीमत कम से कम 5-7 रुपये प्रति किलो है। ऐसे यदि हम एक किलो चारे की कीमत 5 रुपये प्रति किलो मानें तो एक गाय एकदिन में लगभग 85 रुपये का चारा खाएगी। ऐसे में 30 -32 रुपये बहुत कम हैं। ऐसे में सही से चारा न मिल पाने के कारण वो कुपोषण का शिकार होंगी। कई अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर सरकार द्वारा दिए जा रहे कम पैसों में समर्थन दिया है।
गौ-तस्करी के नाम पर हुईं हिंसाएं
मोदी सरकार में बीते तीन सालों में कथित गौरक्षा के नाम पर 44 लोगों की हत्या कर दी गई है। यह दावा ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मारे गए लोगों में से 36 मुस्लिम समुदाय से थे। हालांकि गाय के नाम पर हिंसा की घटनाओं का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि भारतीय सरकार को निगरानी समूहों द्वारा भीड़ हिंसा और कथित रूप से गौ रक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने को रोकना चाहिए और मुकदमा करना चाहिए। रिपोर्ट में कहा है कि मोदी सरकार हिंदुओं द्वारा पूजे जाने वाली गाय की रक्षा के लिए नीतियों का समर्थन करती है।