नई दिल्ली। देशी ऊन की जगह विदेश से आयात सस्ती ऊन की आवक से जहां भेड़ पालन व्यवसाय प्रभावित हो रहा है वहीं भेड़ पालकों को इस व्यवसाय से लाभ दिलाने लिए केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान (सीएसडब्लूआरआई) ने मोटी ऊन में वैल्यू एडिशन कर कई ऊनी उत्पादों को बनाया है, जिससे किसानों को अच्छे दाम सके।
सीएसडब्लूआरआई के वैज्ञानिक डॉ लीलाराम गुज्जर ने गाँव कनेक्शन को बताया, “वर्तमान समय में किसानों को ऊन से जो आय मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पा रही है। ऊन की कटाई का जो कास्ट है वो 15 से 17 रूपए तक पढ़ता है और ऊन से जो आमदनी होती है वो भी 15 से 17 रूपए है। इसलिए हमारे संस्थान का कपड़ा विभाग ऊनी उत्पादों को बना रहा है।”
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भारत विश्व का तीसरा बड़ा भेड़ पालक देश है। यहां 6.5 करोड़ भेड़ पाली जाती है, जिनसे लगभग 4.8 करोड़ किलोग्राम ऊन का उत्पादन होता है। इसमें से लगभग 85 प्रतिशज गलीचा निर्माण, 5 प्रतिशत ऊनी वस्त्र निर्माण के लिए उपयुक्त ऊन है और 10 प्रतिशत भाग मोटी ऊन है। इस मोटी ऊन का उपयोग कर वैल्यू एडिशन ऊनी उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है।
“अभी हमारे संस्थान ने ऊन से बने स्लीपर, तरह-तरह के हैंडबैग और घर को सजाने के लिए सामान बनाए जा रहे हैं। इन उत्पादों को बनाने के लिए किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। हमारे संस्थान जो स्वयं सहायता समूह बनाए गए है वह मेले, स्थानीय बाज़ारों में इन उत्पादों की अच्छे दामों पर बिक्री भी कर रहे हैं।” ऊन से बने उत्पादों के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुज्जर ने बताया।
भेड़ से एक साल में एक साल में तीन बार कटाई की जाती है और एक बार में 300 से 400 ग्राम ऊन का उत्पादन होता है लेकिन भेड़ पालकों को उस ऊन के सही दाम नहीं मिल पाते है ऐसे में ऊन से बने ये उत्पाद किसानों को लाभ दिला सकते है। चारागाह की कमी और ऊन के दाम न मिलने से भेड़ों की संख्या में गिरावट हुई है। 18 वीं पशुगणना जो वर्ष 2007 में हुई उसके मुताबिक भेड़ों की संख्या 1 करोड़ 11 लाख 89 हजार 855 थी। वहीं 19 वीं पशुगणना में यह संख्या 90 लाख 79 हजार 702 पर पहुंच गई। यानि भेड़ो की संख्या में 19 फीसदी की कमी आई है।
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ऊन के उत्पादों के प्रशिक्षण के बारे में डॉ लीलाराम बताते हैं, “महिलाओं और किसानों को एक साल में चार बार प्रशिक्षण दिया जाता है। ऊन से उत्पाद करने तैयार करने के लिए ज्यादा मशीनीकरण की आवश्यकता नहीं होती है। घर में आसानी से तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जाता है।अगर 50 से 60 हज़ार रूपए का इंनवेस्टमेंट करता है तो अच्छी कमाई कर सकते है। बाज़ार किसान को खुद तलाशनी होगी।”