श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश)। देश में दुधारू पशुओ में प्रजनन की समस्याएं, देश के पशुधन विकास में सबसे बड़ी बाधा हैं, जिसके कारण प्रति पशु उत्पादन क्षमता कम हो गई है अगर पशुपालक अपने पशुओं को संतुलित आहार दे तो बीमारी को तो रोका जा सकता है साथ इस बीमारी से डेयरी करोबार में होने वाले करोड़ों का भी नुकसान रोका जा सकता है।
गाय में एक प्रसव प्रतिवर्ष और भैंस में 13-15 माह के अंतराल में होना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। दुधारू पशुओ में बांझपन का अर्थ है-गर्भ धारण न करना। इस बीमारी से ग्रसित मादा प्राकृतिक और कृत्रिम गर्भाधान से भी गर्भधारण नही करती। मादा पशुओं में प्रजनन शक्ति का हृास होना बांझपन कहलाता है।
”पशुओं को जब कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए, डी, ई तत्वों की कमी होती है तो पशुओं में बांझपन की समस्या आती है। अगर पशुओं को यह सब मिलता रहे तो मादा पशु समय से गर्मी में आएगी और गाभिन कराने पर रूकेगी भी।” श्रावस्ती जिले के पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ अमर सिंह बताते हैं।
यह भी पढ़ें- गाय-भैंसों को बांझपन से बचाना है तो ऐसे रखें उनका ख्याल
डेयरी पशुओ को संतुलित आहार देने से दुधारू पशुओ को बांझपन से बचाया जा सकता है। देश में संतुलित आहार न मिलने के कारण लगभग 20-40 प्रतिशत पशु बांझपन से ग्रसित हैं। पशु आहार में प्रोटीन, खनिज लवण और विटामिन की कमी से दुधारू पशुओं के जननांग पूरी तरह से विकसित नही हो पाते हैं। कैल्शियम, फास्फोरस, कॉपर, आयोडीन, खनिज लवण, पशु आहार में विटामिन ‘ए’ तथा ‘ई’ की कमी होने से मादा पशु के अण्डाशय समय पर विकसित नही हो पाते हैं, जिससे यह समस्या आती है।
बांझपन पशुओं में क्यों होती है इसके बारे में डॉ सिंह बताते हैं, ”ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालक सूखी गायों-भैंसों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते है जब वो गभिन होती है तभी उसकी खिलाई पिलाई अच्छी करते है। लेकिन अगर दूध नहीं दे रही है या बछिया है तो उसको संतुलित आहार नहीं देते है। ऐसे में यह समस्या आगे चलकर बांझपन का रूप ले लेती है। इसलिए शुरू से ही पशुओं को संतुलित आहार देना चाहिए।”
”एक कुंतल संतुलित आहार बनाना है तो 20 किलो खल जिससे वसा मिलती है। 20 किलो दालों की चूनी भूसी, प्रोटीन के लिए एक से दो किलो मिनिरल मिक्चर और एक से दो किलो तक नमक मिलाकर पशुओं को खिलाएं। अगर बछिया है तो एक किलो प्रतिदिन खिलाएं और दूध देने वाली गाय है तो करीब 3-4 किलो दें। पशुओं में बांझपन की समस्या नहीं होगी।” संतुलित आहार के बारे में जानकारी देते हुए डॉ अमर सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया।
पशुपालक को बछिया के जन्म के बाद किन-किन बातों का रखना चाहिए इसके बारे में डॉ अमर बताते हैं, ”पशुओं को बांझपन से बचाने के लिए शुरू से ही पर्याप्त मात्रा में दूध दे और 9 से 12 महीने की उम्र तक आते-आते दाना और मिनिरल मिक्चर देना शुरू कर दें। जो गाय-भैंस बच्चा दे चुकी लेकिन दुबारा फिर नहीं समय से गर्म हो रही है तो उनको भी मिनिरल मिक्चर और संतुलित आहार दे। अगर कोई भी गाय-भैंस बच्चा देती है तो दो महीने तक इंतजार करे क्योकि दो महीने के बाद पशु दुबारा गर्मी में आने लगता है अगर नहीं आ रही तो उसका इलाज करा लें।”
यह भी पढ़ें- जानिए पशुओं की प्रजनन संबधी बीमारियों के बारे में, इन तरीकों से कर सकते है उपचार
वीडियो में देखें क्यों होता है मादा पशुओं में बांझपनबांझपन के लक्षण
बछिया अगर 3 तीन साल की हो गई और वो गर्मी में नहीं आ रही है तो वो बांझपन की समस्या से ग्रसित है। पशु गर्मी में तो आता है लेकिन कृत्रिम या प्राकृतिक गर्भाधान कराने पर भी अगर वह रूकती नहीं है तो वो भी बांझपन की समस्या है।
बांझपन के कारण
संक्रामक बीमारियां–
मादा पशुओ के जननांगों में जीवाणुओं और विषाणुओ का संक्रमण होने की स्थिति में पशुओ में गर्भाधारण नही हो पाता या गभिन पशुओ में गर्भपात हो जाता है। ऐसी स्थिति में पशुचिकित्सक से जांच कराना चाहिए और पशुओं को इन बीमारियो से बचाने के लिए इन बातो का ध्यान रखना चाहिए:
- कृत्रिम गर्भाधान अपनाना चाहिए।
- नर पशु की समयानुसार जांच करनी चाहिए व संक्रमित नर पशु को अलग करना चाहिए।
- संक्रमित व स्वस्थ मादा पशुओ को अलग-अलग रखना चाहिए।
- गर्भपात की स्थिति में जेर व अन्य स्त्रावो को जमीन में दबा देना चाहिए।
- संक्रमण से मरे हुए पशु को जमीन में दफन करना चाहिए।
पशु का गर्मी में न आना-
देशी नस्ल की गाय-भैसो की बछिया-पाड़ी, लगभग ढाई से तीन साल की उम्र में गर्मी में आ जानी चाहिए और संकर नस्ल की गायो की बछिया 15-18 माह की उम्र में गर्मी में आ जानी चाहिए। उम्र के साथ-साथ शारीरिक वजन भी महत्वपूर्ण होता है। बछिया एवं पाड़ी को उनकी नस्ल के अनुसार उचित शारीरिक वजन होने के उपरान्त ही गाभिन करवाना चाहिए।
पशु का बार-बार अनियमित रूप से हीट में आना-
गाय व भैसें लगभग 21 दिन के अन्तराल पर गर्मी (मद) में आती है और लगभग एक दिन मद में रहती हैं लेकिन इसके विपरीत यदि पशु कम समय या एक दिन से ज्यादा समय तक गर्मी में रहता है तो ऐसे पशु में बच्चे नही ठहरते। ऐसे पशु की जांच पशुचिकित्सक से करवानी चाहिए।
यह भी पढ़ें- दुधारु पशुओं में बांझपन बन रही बड़ी समस्या
पशुओं में रिपीट ब्रीडिग-
अगर पशु नियमित समय या बार-बार मद (गर्मी) में आते हैं लेकिन गर्भ नही ठहरता तो ऐसे पशु रिपीट ब्रीडर (कुराव) कहलाते हैं। ऐसे पशुओ की जांच पशुचिकित्सक से करवानी चाहिए।
जन्मजात बीमारियां एवं बांझपन-
कभी-कभी मादा पशुओ के जननांगो में कुछ ऐसे दोष होते हैं जो बांझपन का कारण बनते हैं। ये दोष जन्म से ही मादा पशुओ में होते हैं और वंशानुगत भी होते हैं। इस तरह का बांझपन बछियों में कभी-कभी पाया जाता है।