झारखंड: कम बारिश और सूखे की आहट के बीच सबसे बड़े पशु मेले में इतनी निराशा क्यों पसरी है?

हर रविवार उत्तर पश्चिम झारखंड में सैकड़ों किसान और उनके अलग-अलग आकार रंग और नस्लों के मवेशी पलामू के पाथर गाँव में आते हैं। ये मानसून का समय है, ऐसे में मवेशियों का व्यापार तेज होता है। इस साल बैलों को लेने वाले कम हैं क्योंकि कम बारिश खेती-बाड़ी को खासा प्रभावित किया है।

Ashwini K ShuklaAshwini K Shukla   29 July 2022 11:39 AM GMT

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झारखंड: कम बारिश और सूखे की आहट के बीच सबसे बड़े पशु मेले में इतनी निराशा क्यों पसरी है?

पाथर झारखंड के सबसे बड़े पशु बाजारों में से एक है। चारों ओर बस खरीदारों और बैलों के गले में बंधी घंटियों की आवाज आती है। सभी फोटो: अश्वनी कुमार शुक्ला

पाथर (पलामू), झारखंड। राजाजी चौधरी (65 वर्ष) के लिए रविवार का दिन महत्वपूर्ण है। वह गढ़वा जिले के अपने गाँव भिखाही से उत्तर पश्चिम झारखंड के पलामू जिले के एक छोटे से गाँव पाथर तक 12 किलोमीटर चलकर पहुंचे हैं। उन्‍हें उम्मीद है कि वह पाथर गाँव में पशु मेले में अपने साथ लाए गए दो बैलों को बेच देंगे।।

"ये साहीवाल नस्ल के हैं"- अपने बैलों की पीठ पर हाथ फेरते हुए चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया। साहीवाल बैल लाल-भूरे रंग के होते हैं और प्रमुख रूप से उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।

चौधरी जैसे सैकड़ों किसान हर रविवार अपने अलग-अलग आकार, रंग और नस्लों में के मवेश‍ियों के साथ पाथर गाँव जाते हैं जो निकटतम शहर डाल्टनगंज से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। पाथर राज्य के सबसे बड़े पशु बाजारों में से एक है। चारों ओर बस खरीदारों और बैलों के गले में बंधी घंटियों की आवाज आती है।

वैसे मानसून के सीजन में मवेशियों का व्यापार तेज होता है, लेकिन इस साल कम बारिश होने के कारण बैल लेने वालों की संख्या कम है।

मानसून सीजन में अब तक झारखंड में माइनस 50 फीसदी बारिश दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 455.9 मिलीमीटर (मिमी) की सामान्य बारिश के मुकाबले इस साल 1 जून से 26 जुलाई के बीच केवल 228.3 मिमी बारिश हुई है।

नोट: लाल और पीले रंग कम और बड़ी कम वर्षा का संकेत देते हैं। स्रोत: आईएमडी

पलामू जिला जहां पशु मेला आयोजित होता है वहां शून्य से 67 प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई है। राजाजी चौधरी के गढ़वा जिले में माइनस 72 फीसदी बारिश हुई है। दक्षिण-पश्चिम मानसून का आधा मौसम (जून से सितंबर) खत्म हो चुका है। इस वर्ष सूखे की आशंका है।

क्योंकि धान की अच्छी कीमत मिलती है, इसलिए पश्चिमी झारखंड के कई किसान इसकी खेती करते हैं। जून के अंत तक धान की पौध तैयार हो जाती है और जुलाई में रोपाई शुरू हो जाती है। इस खरीफ सीजन में बारिश की कमी सबसे बड़ी बाधा रही। इसकी वजह से सांडों की मांग में भी गिरावट आई है। मवेशियों की बिक्री स्थानीय ग्रामीणों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

किनारे पर अनिश्चितता के बादल

पाथर से करीब सात किलोमीटर दूर बुरहीबीर गांव निवासी 30 वर्षीय विजय ठाकुर कुछ खरीदारों का ध्यान आकर्षित करने की उम्मीद में उत्सुकता से आगे बढ़े। वह अपने देसी (स्थानीय नस्ल) के बैल को 10,000 रुपए में बेचने के लिए लाये थे।

ठाकुर ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं इसे बेचना नहीं चाहता था, लेकिन मुझे पैसों की तत्काल जरूरत है।" किसान ने नया घर बनाने के लिए कर्ज लिया था। उसे चुकाने के लिए वे अपना बैल बेचना चाहते थे। ये तीसरा रविवार था जब ठाकुर मेले में आए थे। इस बार भी वे उम्‍मीद से आए थे।

"अगर मुझे आज ग्राहक नहीं मिला, तो शायद मैं इसे इस मौसम में नहीं बेच पाऊंगा। खेती के लिए पहले ही देर हो चुकी है। इस समय तक धान के पौधे तैयार हो गए होंगे, लेकिन देख‍िए, न तो जमीन तैयार है और न ही उसकी जुताई हुई है।" उन्‍होंने कहा।


ठाकुर की ही तरह गढ़वा जिले के चौधरी को अपने छोटे बैल को 15,000 रुपए और पुराने को 10,000 रुपए में बेचने की उम्मीद की थी। लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, उनकी उम्‍मीद कम होती गई। "अब तक, मैंने एक भी ग्राहक से बात नहीं की है। मुझे नहीं पता कि क्या मैं आज बैल बेच पाऊंगा," उन्होंने चिंतित होकर कहा।

चौधरी ने कहा कि उनके पास 10 एकड़ (4 हेक्टेयर) जमीन है, जिसमें से उन्होंने 10 बीघा जमीन [एक बीघा 0.74 एकड़ के बराबर] में धान की खेती की है। क्षेत्र के अन्य किसानों की तरह, वह खेती के लिए बार‍िश पर निर्भर है, लेकिन राज्य में अब तक बहुत कम बारिश हुई है।

65 साल के किसान ने पूछा, ''कहीं पानी नहीं है, खेती कैसे होगी, खेती नहीं होगी तो बैलों का क्या करेंगे।''

बुरहीबीर गाँव के 40 वर्षीय किसान सूरज पाल ने एक ट्रैक्टर किराए पर लिया था और इसलिए उन्‍होंन अपना बैल बेचने का फैसला किया। पाल के पास 10 बीघा जमीन है, जिसमें से वह 8.5 बीघा में धान की खेती करते हैं और बाकी में मक्का और दलहन की खेती करते हैं।

पाल ने उदास होकर कहा, "मैंने धान की पौध लगाने में करीब 10,000 रुपए खर्च किए, लेकिन अभी तक बारिश नहीं हुई है, इसलिए मुझे नहीं पता कि मैं इस साल धान की खेती कर पाऊंगा या नहीं।"

पशुओं की बिक्री में गिरावट

"बैल की बिक्री का सीधा संबंध बारिश से है। अगर बारिश अच्छी हो तो ही बैलों की बिक्री अच्छी होगी।" रैयत किसान गोपाल प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को बताया।

प्रसाद उस जमीन का मालिक है जहां हर हफ्ते मेला लगता है। वह मेले का आयोजन भी करते हैं। और मवेशियों की खरीद-बिक्री के दौरान आदान-प्रदान की जाने वाली राशि का एक प्रतिशत लेते हैं। उन्होंने कहा, "पिछले हफ्ते 15 मवेशी बेचे गए, जिनमें से केवल आठ बैल थे।"

जहां ट्रैक्टरों आने के बाद पिछले कुछ वर्षों में पशु बाजार की चर्चा कम हो गई तो वहीं छोटे और मध्यम जोत वाले किसान अभी भी अपनी जमीन की जुताई के लिए बैलों पर निर्भर हैं। दो दशकों से अधिक समय से बाजार को करीब से देखने वाले 60 वर्षीय स्थानीय किसान राम नरेश दुबे याद करते हुए कहते हैं, "यह मेला बैलों से भरा हुआ करता था, इसमें इतनी भीड़ होती थी कि चलने के लिए भी कोई जगह नहीं थी। लेकिन इस साल बारिश नहीं होने के वजह से बैलों की जरूरत किसे होगी।"

अब्बास मियां पाथर मेले में एक बैल खरीदने भी गए थे। लातेहार जिले के छिपड़ोहर गांव के 38 वर्षीय (माइनस 63 फीसदी बारिश वाला जिल) बैलों की कीमत जानने के लिए मेले में घूम रहे थे।


अब्‍बास ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मेरे पास जमीन का एक बहुत छोटा टुकड़ा है, इसलिए मैं बैलों का उपयोग करता हूं। घर पर एक बैल है, मैं एक और खरीदने आया हूं।" किसान ने कहा, "मैं 6,000 रुपए तक का भुगतान कर सकता हूं, लेकिन उस कीमत में एक अच्छा सांड नहीं मिल रहा है। " अब्‍बास के पास 5 कत्था (1 कथा 1/27 एकड़ के बराबर) जमीन है।

उनके जैसे छोटे जोत वाले किसानों के लिए बैल खेती का एक बेहतर साधन है। उन्होंने कहा, "ट्रैक्टर बहुत महंगे हैं। इस सीजन में प्रति घंटे का किराया 1,200 रुपए है। एक गरीब किसान यह कीमत कैसे चुका सकता है।"

बिक्री पर बातचीत

गढ़वा जिले के छपरदगा गांव के तोहिद अंसारी के पास बाजार में सबसे महंगा बैल था। एक स्थानीय नस्ल के मांसल, हल्के रंग के बैल ने कई खरीदारों का ध्यान आकर्षित किया था, लेकिन अंसारी ने कहा कि वह अपनी कीमत से पीछे नहीं हटेंगे।

"अंतिम कीमत 20,000 रुपए है। मेरा बैल अभी भी छोटा है, आपको पूरे जिले में ऐसा बैल नहीं मिलेगा," उन्होंने एक संभावित खरीदार नंदू चौधरी से कहा। बाद में जमुने गांव के एक काश्तकार किसान जो पिछले दो महीने से मजबूत बैल की तलाश में थे, उन्‍होंने इस बैल को खरीदने की बात शुरू की।

आधे घंटे से अधिक की कड़ी बातचीत के बाद अंसारी और नंदू ने 16,000 रुपए में सौदा पक्‍का किया। नंदू ने गाँव कनेक्शन को बताया कि वह जुताई, समतलीकरण, कटाई के बाद के काम और यहां तक ​​कि अनाज को मंडी तक ले जाने सहित खेती-किसानी के सभी कामों में बैलों का इस्तेमाल करता हैं।


उन्होंने कहा, "मैं अन्य जिलों में पशु मेलों में गया हूं, मैंने बिहार के गांवों की भी यात्रा की, लेकिन मुझे वह नहीं मिला जिसकी मुझे तलाश थी। लेकिन मैं इस बैल से खुश हूं।"

इस बीच गढ़वा जिले के अपने गांव से 12 किलोमीटर पैदल चलकर आए राजाजी चौधरी अपने पुराने बैल को अपनी जरूरत की आधी कीमत पर बेचने में सफल रहे और अपनी जेब से 6,000 रुपए के देने के बाद साथ धीरे-धीरे मेले से बाहर निकल गये और दूसरे बैल को घर ले गये।

विजय ठाकुर को एक बार फिर अपने बैल के लिए कोई खरीदार नहीं मिला। वह अगले रविवार को फिर लौट सकते हैं।

पिछले साल अच्छी उपज थी तो पाल ने कहा कि उन्होंने लगभग 46 क्विंटल धान बेचकर लगभग 50,000 रुपए का फायदा कमाया था। जब उनसे पूछा गया कि अगर बारिश नहीं हुई तो वह क्या करेंगे, उन्होंने कहा, "हमने जुआ खेला है, या तो हम जीतेंगे या हम हारेंगे।"

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