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कड़कनाथ मुर्गा पालन है मुनाफे का सौदा… खाने वालों को भी इन बीमारियों में होता है फायदा, देखिए पूरी जानकारी

कड़कनाथ मुर्गा पालन का फायदा: इन दिनों कड़कनाथ मुर्गा पालना फायदे का कारोबार कहा जा रहा है। इसकी कई वजह हैं, एक तो ये महंगा बिकता है। इसके रखरखाव में लागत कम है, दूसरा ये खाने वाले को कई बीमारियों में फायदा पहुंचाता है. देखिए वीडियो
#Kadaknath

अगर आप पोल्ट्री करोबार शुरू करना चाहते हैं तो आपके लिए यह जानकारी फायदेमंद हो सकती है। पिछले कुछ समय में ब्रायलर और लेयर फार्मिंग के साथ-साथ किसान कड़कनाथ मुर्गे को पाल रहे हैं। कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला मुर्गा है। दूसरे मुर्गों के मुकाबले ये सिर्फ चार से पांच महीने में तैयार हो जाता है और बाजार में यह 1500-1800 रुपए में बिक जाता है।

पोल्ट्री कारोबार पिछले कुछ समय से मंदी की चपेट में है। सैकड़ों किसानों के मुर्गी फार्म बंद हो गए हैं। लागत के मुकाबले उनकी अंडा और चिकन बेचकर फायदा नहीं मिल रहा है। ऐसे माहौल में भी कड़कनाथ मुर्गा पालने वाले किसान फायदा उठा रहे हैं। अपनी खासियत के चलते दिनों दिन इसकी मांग बढ़ती जा रही है।


स्वाद और सेहमत गुणों के चलते इस मुर्गे की मांग पूरे देश में होने लगी है। इसकी खासियत यह है कि इसका खून और मांस काले रंग का होता है। मध्य प्रदेश का झबुआ जिले की ये प्रजाति अब यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा-पंजाब समेत कई राज्यों में पानी जाने लगी है। झबुआ में इसकी हैजरी (बच्चे) बड़ा उद्योग बन गई है।

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उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के जरवल गांव में रहने वाले गुलाम मोहम्मद के पास 17000 लेयर के दो मार्ग और लेयर की एक बड़ी अलग यूनिट है। लेकिन कुछ समय पहले उन्होंने कड़कनाथ और बतख भी पालनी शुरु कर दी हैं।

कड़कनाथ मुर्गे के साथ किसान गुलाम मोहम्मद। फोटो- अभिषेक वर्मा

कड़कनाथ पालने की वजह पूछने पर गुलाम मोहम्मद बताते हैं, “हम पहले से ब्रायलर और लेयर पाल रहे थे। लेकिन फीड महंगा होने से उसमें मुनाफा कम हो गया था। कई बार नुकसान पर बेचना पड़ रहा था। फिर कड़कनाथ के बारे में सुना। मार्केट पता लगाई तो समझ आया कि इसमें मुनाफा ज्यादा है और पालने में खर्च भी कम आता है, क्योंकि ये खुले भी पाला जा सकता है और हरा चारा खाता है।”

गुलाम ने एक साल पहले करीब 300 चूजे झबुआ से मंगाए थे अब वो खुद अंडों से बच्चे तैयार करते हैं। उनके पास इस वक्त 1000 से ज्यादा मुर्गे हैं। इसके साथ ही वो रोजाना कई दर्जन बच्चे तैयार कर दूसरे किसानों को बेचते हैं।

कड़कनाथ पर लागत और मुनाफा

इन पर आने वाले खर्च के बारे में गुलाम बताते हैं, “इस मुर्गे के खान-पान में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता है। यह हरे चारे में बरसीम, बाजरा चरी बड़े ही चाव से खाते हैं। अगर इनको बाग में शेड बनाकर पाला जाए तो बहुत इन पर कोई खर्च नहीं है।”


गुलाम मोहम्मद जो एक प्रगतिशील किसान हैं वो अपने पशुओं, फसल के खर्च और लाभ का पूरा हिसाब किताब लगाते हैं। कड़कनाथ और दूसरे मुर्गे की तुलना करते हुए वो कहते हैं, “एक किलो का मुर्गा तैयार करने में 85-90 रुपए का खर्च आ रहा है और बाजार में उसका रेट 67 रुपए किलो है यानि किसान को सीधे 20-25 रुपए किसान का घाटा होता है। वहीं कड़कनाथ मुर्गे को अगर बाग में पाल रहे है तो कोई खर्चा नहीं लेकिन अगर बाग नहीं है तो एक किलो तैयार करने में 200 रुपए लगेंगे और बाजार में यह 500 से 900 रुपए किलो में बिक जाता है।’

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वहीं बीमारियों के बारे में गुलाम बताते हैं, “इनमें किसी भी प्रकार की कोई भी बीमारी नहीं होती है। बस शुरू के दिनों में तापमान का ध्यान रखना होता है। ब्रायलर और लेयर में वैक्सीन का भी खर्च आता है जबकि ऐसी कोई वैक्सीन नहीं लगती है।”


लकड़ी का शेड बनाकर इस मुर्गे को बहुत आसानी से पाला जा सकता है। एक मुर्गे के लिए करीब 2 स्क्वायर फीट जगह की जरूरत होती है।

गुलाम बताते हैं, “महंगा होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी खपत कम है इसलिए बिक्री भी कम है जबकि शहरी क्षेत्रों में इसकी बिक्री ज्यादा है।” गुलाम इस प्रजाति के अंडे और चिकन से तो मुनाफा कमा ही रहे है साथ ही इनके चूजे को बेचकर भी कमाई कर रहे है।

कड़कनाथ सेहत के लिए ऐसे है फायदेमंद

पशुपालन विभाग, महाराष्‍ट्र के मुताबि‍क, इसका रखरखाव अन्य मुर्गों के मुकाबले आसान होता है। शोध के अनुसार, इसके मीट में सफेद चिकन के मुकाबले कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है और अमीनो एसिड का स्तर ज्यादा होता है।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॅा. गोविंद कुमार वर्मा बताते हैं, “इसकी खासियत को देखकर यूपी में भी कई किसानों ने इसका पालन शुरू किया है। केंद्र में हर छह महीने पर इसकी ट्रेनिंग किसानों को दी जा रही है। प्रदेश में भी इसके मीट और अंडे की मांग बढ़ी है। इसका स्‍वाद भी बायलर और देशी मुर्गे से अलग होता है। इसका मीट कैंसर, डायबिटीज, हृदय रोगियों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है।”

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कड़कनाथ के एक किलोग्राम के मांस में कॉलेस्ट्राल की मात्रा करीब 184 एमजी होती है, जबकि अन्य मुर्गों में करीब 214 एमजी प्रति किलोग्राम होती है। इसी प्रकार कड़कनाथ के मांस में 25 से 27 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जबकि अन्य मुर्गों में केवल 16 से 17 प्रतिशत ही प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा, कड़कनाथ में लगभग एक प्रतिशत चर्बी होती है, जबकि अन्य मुर्गों में 5 से 6 प्रतिशत चर्बी रहती है।

इन बातों का रखें ध्यान

  • 100 चिकन से इसका पालन शुरू किया जा सकता है।
  • अन्य फार्मों की तरह की इसका फार्म भी गाँव या शहर से बाहर मेन रोड में बनाना चाहिए।
  • बिजली और पानी की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। मुर्गी के शेड में प्रतिदिन कुछ घंटे प्रकाश की आवश्‍यकता भी होती है।
  • फॉर्म में हवा और पर्याप्‍त रोशनी हो।


  • साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  • चूजों और मुर्गियों को अंधेरे में या रात में खाना नहीं देना चाहिए।
    दो पोल्‍ट्री फॉर्म एक-दूसरे के करीब न हों।
  • पानी पीने के बर्तन दो-तीन दिन में जरुर साफ करें।

यहां से ले सकते है ट्रेनिंग

अगर आप कड़कनाथ का व्यवसाय शुरू करना चाहते है तो भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली में प्रशिक्षण ले सकते है। इसके अलावा समय समय कृषि विज्ञान केंद्र में भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा राज्यों के पशुपालन विभाग में भी इसकी पूरी जानकारी ले सकते हैं।

भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली

0581-2303223, 2300204, 2301220, 2310023

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