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कमाल की मशीन पशुओं को पूरे वर्ष मिलेगा हरा चारा, यहां से ले सकते हैं प्रशिक्षण

#green fodder

लखनऊ। पशुपालकों के लिए पशुओं को पूरे वर्ष हरा चारा उपलब्ध करा पाना सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है। इस समस्या हल करने के लिए मथुरा स्थित वेटनरी विश्वविद्यालय ने साइलो पैक मशीन तैयार की है इस मशीन की मदद से पशुपालक अपने पशुओं को वर्ष भर हरा चारा खिला सकेंगे।

“इस मशीन की मदद से हरे चारे की कुट्टी करके उन्हें प्लास्टिक बैग में भर दिया जाता है और इस चारे को पशुपालक दो साल तक संरक्षित कर सकते है। इस मशीन को युवा अपने गाँवों में लगाकर व्यवसायिक रूप भी दे सकते है। साइलेज बनाने के लिए समय-समय किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।” मथुरा स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय वेटरनेरी विश्वविद्यालय के पशु पोषण विभाग की प्रधान वैज्ञानिक डॉ शालिनी ने बताया।

लखनऊ के भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान में आयोजित कृषि कुंभ मेले में इस मशीन का प्रदर्शन किया गया है। इस मशीन की कीमत दो से तीन लाख रूपए की है। बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा हरा चारा उपलब्ध होता है और उस समय चारे की न्यूट्रिशियस वैल्यू भी ज्यादा होती है। इसलिए साइलेज बनाने का काम पशुपालकों को बारिश में कर देना चाहिए।” साइलेज के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ शालिनी में बताया, “जब हरे चारे की उपलब्धता कम होती है और पशु इस साइलेज को खिलाता है तो पशुओं के दूध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। हमारे प्रदेश में चार से पांच महीने ऐसे होते है जब हरे चारे की समस्या सबसे ज्यादा होती है।”


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अच्छे दुग्ध उत्पादन के लिए दुधारु पशुओं के लिए पौष्टिक दाने और चारे के साथ हरा चारा खिलाना बहुत जरुरी है। हरा चारा पशुओं के अंदर पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। एक दुधारू पशु जिस का औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे 25 किलोग्राम की मात्रा में साइलेज खिलाया जा सकता है। भेड़-बकरियों को खिलाई जाने वाली मात्रा 5 किलोग्राम तक रखी जाती है। कृषि कुंभ में आए मेरठ जिले के रोहाता ब्लॅाक के रहने वाले बाबूलाल बताते हैं, “अभी पशुओं के चारा दाना लेना ही मंहगा हो रहा है। अगर सरकार इस पर छूट दे तब तो किसान खरीद भी सकता है।” बाबूलाल ने हाल ही पांच पशुओं की डेयरी शुरू की है। डेयरी को विस्तार देने के लिए वह इस मेले में आए है।

इन फसलों से पशुओं के लिए बना सकते है साइलेज

साइलेज बनाने के लिए ज्वार, मक्का, लोबिया, गिन्नी घास, नेपियर, बरसीम, सिटीरिया आदि से तैयार किया जा सकता है। साइलेज बनाते समय चारे में नमी की मात्रा 55 प्रतिशत तक होनी चाहिए।

इन विधियों से भी कर सकते है संरक्षित

पशुपालक के पास कितने पशु है, कितना हरा चारा उपलब्ध है और पशु को कितने महीने उसे फीड कराना है इसके आधार पर हरे चारे की संरक्षण विधि को अपनाया जाता है। डॉ शालिनी ने बताया, “अगर पशुपालकों के पास कम पशु है तो वह ड्रम, प्लास्टिक साइलो में या पॉलीथीन बैग में जो 50 किलो से लेकर एक कुंतल तक की क्षमता वाले आते है। इसमें चारे को काटकर उसकी कुट्टी करके अच्छी तरह ठूस-ठूस कर अगर भर दें और सील करके रख दे।” उन्होंने आगे बताया, “अगर पशुपालक के पास काफी ज्यादा संख्या में पशु है और चारे की उपलब्धता है तो वो स्थाई संरचना बनाकर कर इसे प्रयोग कर सकते है।”

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यहां से ले सकते है साइलेज बनाने का प्रशिक्षण

मथुरा वेटनरी विश्वविद्यालय की पशु पोषण विभाग की प्रधान वैज्ञानिक डॉ शालिनी ने बताया, “राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रोजेक्ट चल रहा है। इसके लिए हम समय-समय पर किसानों और युवाओं को प्रशिक्षण देते रहते है। विश्वविद्यालय में लाइव प्रदर्शन भी कराते है। पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों के किसान इस विधि से चारे को संरक्षित कर रहे है।”

मशीन के लिए यहां कर सकते हैं सपंर्क-

पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय

0565-2471178 (O)

9451734971

8791881240 


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