लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के औद्योगिक इलाके से सटे तारा का पुरवा गांव के रहने वाले दीपक कुमार रावत (24 साल) इन दिनों काफी परेशान हैं। उनकी परेशानी की वजह उनकी बीमार भैंस है। उनकी भैंस नाले में फैक्ट्री द्वारा छोड़े गए जहरीले पानी के संपर्क में आने के बाद से बीमार है। दीपक अपनी भैंस को दिखाते हुए कहते हैं, ”देखिए इसकी आंख लाल हो गई है। कुछ खा नहीं रही। मुंह से झाग भी निकल रहा है। इसके पेट में बच्चा है, न जाने इतना कष्ट कैसे झेल रही है।”
दीपक एकलौते नहीं हैं जो अपनी भैंस की बीमारी से परेशान हैं। चिनहट इंडस्ट्रीयल एरिया से सटे तारा का पुरवां, दया राम पुरवां, गुरु का पुरवां जैसे कई गांव के लोग अपनी भैंसों के मरने और बीमारी होने से परेशान हैं।
भैंसों के मरने और बीमार होने के पीछे एक नाले का पानी है, जिसमें इसी शुक्रवार (30 अगस्त) को जहरीला केमिकल छोड़ दिया गया था, जिसके संपर्क में आकर करीब 23 भैंस और गाय मर गईं, वहीं कई भैंसें अब भी बीमार हैं।
गांव वालों का आरोप है कि चिनहट इंडस्ट्रीयल एरिया में स्थित इंडियन पेस्टीसाइड लिमिटेड (IPL) नाम की एक कीटनाशन कंपनी ने नाले में जहरीला कैमिकल छोड़ दिया, जिसकी वजह से यह घटना हुई है। फिलहाल प्रशासन की ओर से IPL को सीज कर दिया गया है और यहां काम ठप है।
तारा का पुरवां गांव के रहने वाले अयोध्या प्रसाद यादव (34 साल) की भी दो भैंस नाले के पानी के संपर्क में आकर मर गई हैं। अयोध्या बताते हैं, ”यह नाला केमिकल फैक्ट्री से लगा हुआ है। केमिकल फैक्ट्री के पीछे की तरफ से नाले में पानी छोड़ा जाता है।” वो अंदाजा लगाते हैं, ”शायद वहीं से जहरीला केमिकल छोड़ा गया है, जिससे भैंसें मर गईं।”
अयोध्या प्रसाद बताते हैं, ”यह नाला आगे कई गांव को पार करते हुए गोमती नदी में जाकर गिर जाता है। इसी नाले में हमारी भैंस चरने के बाद नहाया करती थीं। पहले कभी कोई घटन नहीं हुई।”
गांव के रहने वाले मुकेश प्रसाद यादव (26 साल) कहते हैं, ”वो केमिकल इतना जहरीला था कि इलाके में उसकी तेज गंध फैल गई थी। लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। जब भैंसें गिरने लगीं तो समझ आया कि कुछ ऐसा हुआ है।” वो चिंता जाहिर करते हैं कि ”न जाने नाले में क्या-क्या बहाया जा रहा है। यह सब गोमती नदी में जाता है।”
भैंसों के मरने और बीमार होने से गांव के लोग भी काफी दुखी हैं। निर्मला (45 साल) की एक भैंस बीमार है जिसका इलाज चल रहा है। निर्मला बताती हैं, ”जब भैंसों के मरने की जानकारी मिलने लगी तो गांव में बहुत बुरा माहौल था। कोई रो रहा था, तो कोई अपनी भैंसों को तलाश रहा था।” वो बताती हैं, ”कई लड़के जो भैंसों को निकालने के लिए नाले में उतरे थे उनकी भी तबीयत खराब हो गई।”
सचिन (20 साल) ऐसी ही एक युवा हैं जिनकी तबीयत नाले में उतरने से खराब हुई थी। वो बताते हैं, ”मैं नाले से भैंसों को निकालने के लिए उतरा था। कुछ ही देर में मुझे खुजली होने लगी और फिर चक्कर भी आने लगा। मेरे घर वालों ने मुझे अस्पताल में भर्ती कराया तब जाकर मैं सही हुआ हूं।” सचिन की मां कहती हैं, ”भगवान की कृपा से मेरा लड़का बच गया।”
ऐसा नहीं है कि केमिकल का असर सिर्फ तारा का पुरवां गांव तक सीमित है। इसके आगे के कई गांव भी इससे प्रभावित हुए हैं। गुरु का पुरवां गांव के रहने वाले अशोक कुमार यादव (52 साल) की भैंस भी इस कैमिकल के संपर्क में आकर बीमार हो गई थी। अशोक यादव बताते हैं, ”नाले में उतरे कैमिकल के संपर्क आकर मेरी भैंस बीमार हो गई थी। उसने खाना छोड़ दिया था। इलाज करवाने के तीन दिन बाद उसने कुछ खाना शुरू किया है। मैंने अब भैंस को बांध कर रखा है ताकि वो नाले में न जाए और बची रहे।”
आशोक यादव कहते हैं, ”फैक्ट्रियां इतनी खतरनाक हो सकती हैं यह तो अब जाकर पता चला है। न जाने कौन कौन सा केमिकल नाले में बहाते होंगे।” वो चिंता जाहिर करते हैं कि, ”यही नाला सीधे गोमती नदी में जाकर गिरता है। मैं सोच कर हैरान हूं कि इससे नदी को कितना नुकसान हो रहा होगा।”
फिलहाल इस मामले में प्रशासन जांच कर रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने कंपनी के पीछे जाकर सैंपल भी लिया था। सैंपल लेने के बाद रविवार को इस परिसर इकाई में लगी विद्युत वितरण प्रणाली और क्लोरीन सप्लाई प्रणाली को सील कर दिया गया। इससे कंपनी में काम ठप है।
कंपनी के बाहर मिले एक गार्ड ने बताया, कंपनी में कुछ भी नहीं चल रहा। हमें पानी के लिए भी बाहर जाना पड़ रहा है। वो भैंस मरी हैं शायद उसकी वजह से यह एक्शन लिया गया है।