राजस्थान के सबसे अधिक गोवंश की आबादी वाले जिले में इन दिनों पशुपालकों के बीच डर का माहौल है, वो समझ नहीं पा रहे हैं कि वो इस समय क्या करें, जिससे उनके पशुओं को लम्पी स्किन डिजीज से बचाया जा सके।
राजस्थान के बीकानेर जिले के लूणकरणसर तहसील के रोझा गाँव के विजय पाल भी उन्हीं में से एक हैं। 40 वर्षीय विजय पाल की दो बछिया के शरीर में इस समय बड़े-बड़े दाने निकल आए हैं। विजय गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया कि ये बीमारी क्या है, जब गाँव में कई लोगों की गायों में ये बीमारी दिखी तो हमने भी अपनी गाँवों पर ध्यान दिया”
वो आगे कहते हैं, “हमारी दो बछिया के शरीर में ऐसे दाने निकल आए हैं, तेज बुखार भी आ रहा है, उसके पैर सूज आए हैं, एक बछिया तो गाभिन भी है। डर लग रहा है कहीं कुछ हो न जाए।”
विजय पाल का डरना वाजिब भी है क्योंकि उनके गाँव में पिछले 15 दिनों में लगभग 4 गायों की मौत हो गई है, अब ये बीमारी तेजी से फैल रही है।
उत्तर प्रदेश के बाद राजस्थान पशुओं की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। राजस्थान में 5.68 करोड़ पशु हैं। इसमें पहले स्थान पर बीकानेर, दूसरे स्थान पर जोधपुर और तीसरे स्थान पर बाड़मेर जिला आता है।
यहां की एक बड़ी आबादी का कमाई का जरिया पशुपालन और खेती है। विजय पाल बताते हैं, “इस बीमारी की वजह से पशु दूध देना एकदम कम कर देते हैं, अब पशु दूध ही नहीं देगा तो बाकी खर्च कैसे चलेंगे। यहां सभी इसलिए पशु पालते हैं।
लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी होती है, जो गाय-भैंसों में होती है। लम्पी स्किन डिज़ीज़ में शरीर पर गांठें बनने लगती हैं, खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास। धीरे-धीरे ये गांठे बड़ी होने लगती हैं और घाव बन जाता है। पशुओं को तेज बुखार आ जाता है और दुधारु पशु दूध देना कम कर देते हैं, मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है, कई बार तो पशुओं की मौत भी हो जाती है। एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों से आसानी से फैलता है। साथ ही ये दूषित पानी, लार और चारे के माध्यम से भी फैलता है।
भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी। इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है।
गंगानगर जिले के रायसिंहनगर तहसील के 17पीएस गाँव में भी ऐसी ही परेशानी है, यहां के यशपाल सिंह की पास एक गाय और एक बछिया है, गाय तो ठीक है, लेकिन बछिया संक्रमण से बच नहीं पायी है।
40 वर्षीय यशपाल सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “हमारे गाँव शायद ही कोई घर बचा होगा, जिसके एक दो पशु को ये बीमारी न हो रखी हो। मेरी दो साल की बछिया की हालत खराब है। हमारे पड़ोस में तो एक लोग के दोनों पशु मर गए, पहले गाय मरी और फिर बछिया मर गई, बछिया गाभिन भी थी।”
लम्पी स्किन डिजीज के संक्रमण में आने के बाद पशु दूध देना कम कर देते हैं, ऐसे में बहुत से परिवार जिनकी जीविका दूध उत्पादन से चल रही थी, उनके सामने परेशानी खड़ी कर दी है। यशपाल कहते हैं, “लोगों के अंदर इस बीमारी को लेकर बहुत डर है, अब तक 5 पशु मर गए हैं। लोगों का मानना है कि अगर कोई टीका लगवाया तो इससे और भी ज्यादा बीमारी बढ़ जाएगी, इसलिए सब देसी इलाज ही कर रहे हैं।”
बीकानेर और गंगानगर की तरह ही कुछ सालों में यह बीमारी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, केरल, असम, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों में पशुओं में देखी गई है। भारत में सबसे पहले ये बीमारी साल 2019 में पश्चिम बंगाल में देखी गई थी। इस वायरस का अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है।
बीते कुछ दिनों से पशुपालन विभाग के अधिकारी पंचायतों में जाकर पशुपालकों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। राजस्थान पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ एनएम सिंह बताते हैं, “दस जिलों में लम्पी स्किन डिजीज रिपोर्ट किया गया है, पंचायत स्तर पर पशुपालकों को जागरूक किया जा रहा है कि कैसे अपने पशुओं को इस बीमारी से बचा सकते हैं। क्योंकि पशुपालकों के लिए ये जानना सबसे ज्यादा जरूरी होता है कि यह बीमारी कैसे फैलती है।”
पशुपालन मंत्री श्री लालचन्द कटारिया ने सोमवार को पंत कृषि भवन में विभागीय उच्चाधिकारियों के साथ पश्चिमी राजस्थान में मवेशियों में फैल रही लम्पी स्किन डिजीज की स्थिति की समीक्षा की। pic.twitter.com/xiW0cDw2TT
— Government of Rajasthan (@RajGovOfficial) July 19, 2022
वो आगे कहते हैं, “बीमार पशु से पहले स्वस्थ पशु को अलग करें, क्योंकि अगर बीमार पशु के बाद स्वस्थ पशु के पास जाएंगे तो संक्रमण भी साथ में जाएगा। सबसे पहले अप्रैल महीने में इस बीमारी को रिपोर्ट किया गया था।”
20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोधन (गाय-बैल) की आबादी 18.25 करोड़ है, जबकि भैंसों की आबादी 10.98 करोड़ है। जो कि दुनिया में पहले नंबर पर है। देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी है, ऐसी बीमारी से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यह बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैल गई, साल 2015 में तुर्की और ग्रीस और 2016 में रूस जैसे देश में इसने तबाही मचाई। जुलाई 2019 में इसे बांग्लादेश में देखा गया, जहां से ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार, लम्पी स्किन डिज़ीज़ साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुकी है, साल 2019 में भारत और चीन, जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान, भूटान, अक्टूबर 2020 वियतनाम में और नंवबर 2020 में हांगकांग में यह बीमारी पहली बार सामने आई।
लम्पी स्किन डिजीज को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने नोटीफाएबल डिजीज घोषित किया है, इसके अनुसार अगर किसी भी देश को इस रोग के बारे में पता चलता है तो विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (ओआईई) को जल्द सूचित करें।
राजस्थान के साथ ही गुजरात में भी पशुओं में यह बीमारी फैल रही है। पशुपालन विभाग, गुजरात के अनुसार अभी तक यहां पर एक हजार से ज्यादा पशुओं की मौत हो गई है, जबकि 40 हजार से ज्यादा इस बीमारी से संक्रमित हैं, लगभग 2.93 लाख पशुओं का टीकाकरण किया गया है।
पशुपालन विभाग, गुजरात के उपनिदेशक डॉ हर्षद नटवरलाल मोढ़ बताते हैं, “अभी तक इस बीमारी को 15 जिलों में पाया गया है, पशुपालन विभाग ने टोल फ्री नंबर ‘1962’ भी जारी किया है। पशुपालकों को पंचायत स्तर पर जागरूक भी किया जा रहा है।”
પશુઓમાં જોવા મળેલ #Lampi સ્કિન ડિસિઝ સંદર્ભે માનનીય મુખ્યમંત્રી શ્રી @Bhupendrapbjp જીના નેતૃત્વમાં રાજ્ય સરકાર સતર્ક
૧૫૨ પશુચિકિત્સા અધિકારીઓ અને ૪૩૮ પશુધન નિરીક્ષકો દ્વારા સધન સર્વે, સારવાર અને રસીકરણની કામગીરી યુદ્ધના ધોરણે… pic.twitter.com/7ngEeUIM8k
— Raghavji Patel (@RaghavjiPatel) July 25, 2022
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के पशु रोग अनुसंधान और निदान केंद्र के संयुक्त निदेशक डॉ केपी सिंह इस बीमारी के बारे में बताते हैं, “यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स (Capripox) से फैलती है, अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।”
लम्पी स्किन डिजीज से बचने के उपाय के बारे में वो कहते हैं, “अभी तक इस बीमारी का टीका नहीं बना है, लेकिन फिर भी ये बीमारी बकरियों में होने वाली गोट पॉक्स की तरह ही है, इसलिए अभी गाय-भैंस को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा रहा है, जिसका अच्छा रिजल्ट भी आ रहा है। इसके साथ ही दूसरे पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार और लक्षण के हिसाब से इलाज कराएं।”
“आईवीआरआई में इस बीमारी से बचने का टीका बनाया जा रहा है, आने वाले एक साल में इसका टीका आ सकता है, “उन्होंने आगे बताया।
संक्रमण से अपने पशुओं को बचाने के उपाय
रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए, अगर पशुशाला में या नजदीक में किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए।
रोग के लक्षण दिखाने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए, मेला, मंडी और प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए।
पशुशाला में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए, मुख्यत: मच्छर, मक्खी, पिस्सू और चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए। रोगी पशुओं की जांच और इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए।
अगर अपने पशुशाला पर या आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए। एक पशुशाला के श्रमिक को दुसरे पशुशाला में नहीं जाना चाहिए, इसके साथ ही पशुपालकों को भी अपने शरीर की साफ़–सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए।
संक्रमित पशुओं की देखभाल करने वाले श्रमिक, स्वस्थ पशुओं से दूरी बनाकर रहें या फिर नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर ही दूसरे स्वस्थ पशुओं की देखभाल करें।
पशुशाला की साफ–सफाई का उचित प्रबंध होना चाहिए, फर्श और दीवारों को अच्छे से साफ करके एक दीवारों की साफ-सफाई के लिए फिनायल (2 प्रतिशत) या आयोडीनयुक्त कीटनाशक घोल (1:33) का उपयोग करना चाहिए। बर्तन और अन्य उपयोगी सामान को रसायन से कीटाणु रहित करना चाहिए।
इसके लिए बर्तन साफ करने वाला डिटरजेंट पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइड, (2–3 प्रतिशत) या कुआटर्नरी अमोनियम साल्ट (0.5 प्रतिशत) का इस्तेमाल करना चाहिए।
यदि कोई पशु लम्बे समय तक त्वचा रोग से ग्रस्त होने के बाद मर जाता है, तो उसे दूर ले जाकर गड्डे में दबा देना चाहिए।
जो सांड इस रोग से ठीक हो गए हों, उनकी खून और वीर्य की जांच प्रयोगशाला में करवानी चाहिए। यदि नतीजे ठीक आते हैं, उसके बाद ही उनके वीर्य का उपयोग करना चाहिए।