अगर आप कम समय में ज्यादा मुनाफा पाना चाहते हैं, तो मछलियों की ऐसी किस्में चुने जो जल्दी बढ़ती हों ताकि मत्स्य उत्पादन कम समय में ज्यादा कारगर हो सके। इनमें से सिल्वर कॉर्प व ग्रास कॉर्प की किस्में ऐसी हैं, जो कम समय में ज़्यादा पैदावार देती हैं।
बाराबंकी जिले के देवां ब्लॉक के गंगवारा गाँव के मोहम्मद उस्मान (45 वर्ष) मिश्रित मछली पालन कर रहे हैं, इससे उनको काफी फायदा हो रहा है। मोहम्मद उस्मान बताते हैं, “इसमें हम तालाब में एक साथ कई मछलियां पालते हैं, इसमें ये फायदा होता है लगातार मछलियां तैयार होती रहती हैं और ये कम समय में बढ़ भी जाती हैं। मैं चार एकड़ में मछली पालन करता हूं, जिसमें पौने दो लाख मछलियां उत्पादित होती हैं।”
सरकारी योजनाओं का भी उठाएं लाभ
जिस व्यक्ति के पास अपना निजी तालाब, अपनी भूमि या पट्टे का तालाब हो वह उत्तर प्रदेश में किसी भी जिले में मत्स्य-पालन के लिए दी जाने वाली सरकारी सुविधाएं प्राप्त कर सकता है उसे बस सम्बंधित भूमि की खसरा खतौनी लेकर जनपदीय कार्यालय तक जाना होता है। यदि तालाब पट्टे पर लिया हो तो पट्टा निर्गमन प्रमाण-पत्र के साथ ही जनपदीय कार्यालय से सम्पर्क करें। विभाग द्वारा क्षेत्रीय मत्स्य विकास अधिकारी अभियन्ता द्वारा भूमि (तालाब) का सर्वेक्षण कर प्रोजेक्ट तैयार किया जाती है।
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मत्स्य पालन जितना ज़रुरी है उतना ही अहम है मछलियों को सही दाम पर बेचना। प्रदेश में ऐसी कई मंडियां हैं जहां किसान सीधे जाकर मछलियों को उचित दर पर बेच सकता है। बेहतर बिक्री और मंडी भाव के लिए लखनऊ स्थित दुबग्गा मंडी या सीतापुर मछली मंडी में अच्छा भाव पा सकते हैं। मत्स्य पालकों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश सरकार ने टोल-फ्री मत्स्य किसान कॉल सेन्टर नंबर 1800-180-5661 जारी किया है। इस नंबर पर सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच फ़ोन करके जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
मिश्रित मछली पालन से बढ़ेगा उत्पादन
मिश्रित मछली पालन की विधि से एक साल में पांच से आठ टन मछली प्रति हेक्टेयर का उत्पादन आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें भारतीय मेजर कॉर्प, कतला, रोहू, मिग्रल तथा विदेशी कॉर्प-ग्रास कॉर्प, सिल्वर कॉर्प, कॉमन कार्प को निश्चित अनुपात में संचित कर तालाब में रखा जाता है और अगर मिश्रित पालन में अच्छी देख-रेख और तालाब की सफाई की जाए तो मत्स्य पालन में वृद्घि भी की जा सकती है।
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