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भैंस सही समय पर बच्चा दे तो इन बातों का रखें ध्यान

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लखनऊ। भैंस पालन पशुपालकों के लिए तभी फायदेमंद हो सकता है जब भैंस सही समय पर बच्चा देती है लेकिन आजकल भैंसों का ठीक समय पर गाभिन न होना एक आम समस्या बन गया है। हर पशुपालक की यह इच्छा रहती है कि डेढ साल में भैंस बच्चा दे दे , जिससे उससे लगातार दूध मिलता रहे लेकिन पशुपालक इस समस्या से परेशान रहते हैं कि उनकी भैंस दो वर्ष में केवल एक बच्चा देती है।

हिसार स्थित केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॅा. आर के शर्मा बताते हैं, ” भैंस हर साल बच्चा दे सकती है जो ब्याने के बाद 60 दिन में अंदर गाभिन हो जाए। अगर ब्याने के 100 दिन बाद भैंस गाभिन होती है तो 300 दिन गर्भकाल को जोड़कर अगला बच्चा 400 दिन के अंतर पर होता है। अगर 200 दिन बाद गाभिन होती है तो बच्चा 500 दिन के अंतर पर होता है और अगर 300 दिन के बाद गाभिन होती है तो बच्चा 600 दिन के अंतर पर होता है।”

भैंसों में ब्यांत का अंतर होने के कारणों के बारे में डॅा. शर्मा बताते हैं, “इसके तीन कारण है पहला ब्याने के बाद भैंस का गर्म में नहीं आना या गर्मी के लक्षणों का इंतना हल्का होना कि पशुपालकों को इसका पता ही नहीं लगता है कि भैंस गर्मी में है इसे चुप गाभिन होना भी कहते है। दूसरा गाभिन कराने पर भैंस का गर्भपात हो जाना और तीसरा बच्चा फसने या रुकने के कारण बच्चेदानी में इंफकेशन से होता है।”


एक अनुमान के अनुसार यदि भैंस के ब्यांत का अंतर एक दिन बढ़ जाता है तो पशुपालक को रोजाना लगभग 100 रूपए का नुकसान होता है। ब्यांत अंतराल 13-14 महीने रहने पर भैंस अपने जीवनकाल में अधिक बच्चे देगी और अधिकतर समय दूध उत्पादन में भी रहेगी ।

मादा पशु की जनन क्षमता इसी से परखी जाती है कि उसके दो ब्यांत के बीच कितना अंतर है। दो ब्यांत के बीच का अंतराल दो प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है। पहला प्रसव से गाभिन होने तक का समय तथा दूसरा गाभिन होने से लेकर बच्चा देने तक का समय जो कि निश्चित रहता है। इस दूसरे अंतराल को गर्भकाल कहते हैं। भैंस में यह लगभग 310 दिन होता है। यदि भैंस बच्चा देने के 90 दिन के अंदर गाभिन हो जाये तभी 310 दिन गर्भकाल को जोड़कर, अगला बच्चा उससे 400 दिन के अंतराल पर प्राप्त किया जा सकता है।

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इन बातों का रखें ध्यान

रिपीट ब्रीडिंग(बार-बार फिरना)

  • भैंसों की एक प्रमुख समस्या इसका बार-बार गर्भाधान कराने पर भी गाभिन न हो पाना है। आमतौर पर ऐसी भैंस हर 21-22 दिन बाद गर्मी में आती है और गाभिन कराने पर रूकती नहीं है। भैंस के बार-बार फिरने के कई कारण हो सकते हैं। गाभिन न होने वाली भैंस में निम्न सुझाव काफी उपयोगी सिद्ध हुए हैं
  • ऐसी भैंस की एक बार पशु चिकित्सक से जांच करा लें कि कोई बीमारी या शारीरिक कमी तो नही है। खासतौर पर जननांगों की सघन जांच बहुत जरूरी है।
  • इसके कारण का पता चलने पर उसका इलाज किया जा सकता है।
  • भैंस में गर्मी के लक्षणों को सुनिश्चित करें। कई बार भैंस किसी दूसरे कारण से बोलती या रंभाती है और पशुपालक इसे गर्मी का लक्षण समझ कर गाभिन करा देते हैं। असमय गाभिन कराने पर भैंस गाभिन नहीं हो सकती।
  • भैंस को गर्मी के लक्षणों के दौरान 12 घंटे के अंतराल पर दो बार अच्छे सांड़ से या उसका कृत्रिम गर्भाधान करायें। सुबह गर्मी में आई भैंस को शाम को और अगले दिन सुबह को तथा शाम को गर्मी में आई भैंस को अगले दिन सुबह और शाम को गाभिन करायें। गर्मी (मद) में आई भैंस के योनिद्वार से निकलने वाले पतले व चमकीले तार की अच्छी तरह से जाँच पड़ताल करें। यह शीशे/पानी की तरह साफ होनी चाहिए। यदि इसमें सफेदी दिखाई देती हो तो पशु चिकित्सक से जाँच करवा लें।
  • भैंस को रोजाना 40-50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण दें ।
  • गर्मियों के दिनों में भैंस को छायादार पेड़ के नीचे अथवा खुले छायादार एवं हवादार बाड़े में बांधे।
  • भैंस को कम से कम तीन बार ठण्डे पानी से नहलायें और ठण्डा पानी पिलायें। भैंस को नदी व तालाब में छोड़ दें।

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शांत मदकाल

  • भैंसों में गर्मी के लक्षण दिखाई न देने का मुख्य कारण शांत मदकाल होना माना जाता है। इसमें भैंस तो मद में आती है परन्तु गर्मी के लक्षणों की तीव्रता कम होने के कारण पशुपालक या तो लक्षणों को पहचान नहीं पाते या इन पर ध्यान नही देते।
  • भैंस में गर्मी के लक्षणों की पहचान करने के लिए पशुपालकों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
  • हर भैंस के पास जाकर अच्छी तरह से उसके व्यवहार को देखना चाहिए।
  • भैंस मे गर्मी के लक्षणों की तीव्रता रात में अधिक होती है। इसलिए पशुपालकों को रात में साने से पहले (9-10 बजे) और सबुह (5-6 बजे) भैंस के पास एक चक्कर
  • जरूर लगा लें।
  • भैंस का रंभाना और योनि मार्ग से चमकीला पारदर्शी स्राव जो एक रस्सी की तरह लटका रहता है, गर्मी का स्पष्ट लक्षण माना जाता है। यह स्राव अक्सर भैंस के बैठने के बाद योनिमार्ग से निकलता है जो पूंछ और उसके आसपास चिपक जाता है ।
  • गर्मी के लक्षणों का अवलोकन दिन में तीन-चार बार करना चाहिए और पशु चिकित्सक से जांच करवानी चाहिए।
  • पशु चिकित्सक मद की सही पहचान कर सकते हैं और इस बात का भी पता कर सकते हैं कि क्या इस भैंस में शांत मदकाल की कोई सम्भावना है या नहीं।
  • गर्भाधान के बाद भैंस को कम से कम दो हफ्ते गर्मी से बचाकर रखें। उसे ठण्डे स्थान पर बांधें और खूब नहलाएं।
  • भैंस को पर्याप्त मात्रा में हरा चारा तथा दाने में खनिज लवण मिश्रण दें। गर्भाधान के लगभग 20-22 दिन बाद भैंस में गर्मी के लक्षणों की जांच अवश्य करें, ताकि भैंस यदि ठहरी न हो तो उसे दोबारा गाभिन करा सके।
  • गर्भाधान के दो महीने बाद गर्भ जांच जरूर करवाएं। नहीं तो कई बार पशुपालक अपनी भैंस को गाभिन समझते है व उसकी जनन सम्बन्धी खबर नहीं रखते । महीनों इंतजार करने पर भी जब भैंस नहीं ब्याती तब जांच करवाने पर पता चलता है कि भैंस तो गाभिन ही नहीं है। इस कारण पैसा व समय दोनों की बर्बादी होती है।

इस यंत्र से आसानी से पता चल सकेगा गाय या भैंस का मदकाल


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