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पशुओं को प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए ये हैं पांच उपाय

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इंसानों की ही तरह अगर जानवरों को भी आपातकालीन स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा दी जाए तो कई बार बीमारियों को गंभीर रूप धारण करने से रोका जा सकता है। पशुओं में प्राथमिक चिकित्सा के ऐसे ही कुछ उपाए हैं –

खून बहना

खून को रोकने के लिए कटी हुई नस को कसकर दबा देना चाहिए ताकि खून का बहना रुक जाए। कटे हुए स्थान को कसकर बांध दें। कई बार कटे हुए स्थान पर बांध पाना मुश्किल होता है ऐसी स्थिति में कपड़े को मोटा तहकर के फिटकरी के घोल में भिगोकर कटे हुए स्थान पर जोर से दबाकर रखना चाहिए। इसके साथ-साथ बर्फ या ठड़े पानी को भी लगातार डालकर खून का बहना रोका जा सकता है। अगर नस कटी हो तो चिकित्सक को जरुर दिखाना चाहिए।

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हड्डी टूटना

कई बार गड्ढों में पड़कर या ऊंचाई से गिरकर पशु के पैर की हड्डी टूट जाती है। पशुओं में फै्रक्चर या हड्डी टूटना दो तरीके से होता है। पहली स्थिति में हड्डी टूटने के बाद चमड़े के अंदर रह जाती है जबकि दूसरी स्थिति में बाहर आ जाती है। हड्डी के बाहर आने में ज्यादा खतरा रहता है। टूटी हुई हड्डी को हिलाने-डुलाने से बचाने के लिए बांस की खपच्चियों से बांध दें। अगर बांस नहीं है तो पेड़ की डाली का भी प्रयोग कर सकते हैं।

घाव होना

पशु को चोट लगने या दुर्घटनाग्रस्त होने पर शरीर पर घाव हो जाते हैं। पशुओं में घाव दो प्रकार के होते हैं, एक जिसमें चमड़ी फटी न हो और दूसरी जिसमें चमड़ी फट गई हो। जब चमड़ी फटी हुई नहीं रहती तो चोट लगने पर उस जगह पर सूजन आ जाती है या फिर खून जम जाता है। दोनों ही हालात में बर्फ या ठंड़े पानी से चोट की जगह सिकाई करने पर फोड़ा नहीं बन पाता। अगर चोट पुरानी हो गई है तो गर्म पानी से सिकाई करना लाभदायक होता है। खुली हुई चोट में एंटीसेप्टिक क्रीम लगाना चाहिए और अगर खून बह रहा हो तो टिंचर बैन्जोइन भी लगा सकते हैं।

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बेहोश होने पर

सिर में चोट लगने, पानी में डूबने, धुंए में दम घुटने, करंट लगने, आदि से पशु कभी-कभी बहोश हो जाते हैं। इस स्थिति में पशुपालक सिर में चोट लगने पर ठंडे पानी की पट्टियां रखते हैं। करंट लगने पर पैर व छाती पर मालिश करना व पशु को गर्म रखना चाहिए। अगर पशु कुछ समय के बाद पानी पीने की स्थिति में हो तो उसे नमक एवं गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए।

आंख में कुछ गिरने पर

आंख में कुछ गिरने या कीचड़ आने पर उसे रुई या कपड़े की मदद से हल्के हाथों से निकाल देना चाहिए और ताज़े पानी से उसको धो देना चाहिए। अगर संभव हो तो सुहागा के घोल से आंख की धुलाई कर देनी चाहिए।

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स्त्रोत–   भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान

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