नींद में खर्राटे लेना इंसानों में एक आम समस्या बनता जा रहा है, लेकिन कभी-कभी किसी पशु को विशिष्ट बीमारी होने पर वो भी खर्राटे लेते है। गाय, भैंस, कुत्ता, बिल्ली समेत यह बीमारी सभी पशुओं में होती है।
पशुओं में इस बीमारी के बारे में बरेली स्थित भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान के पशुचिकित्सक डॉ. अभिजीत पावडे बताते हैं, “खर्राटे लेने की बीमारी को स्नोरिंग डिसीज कहा जाता है। यह बीमारी ज्यादातर पग कुत्तों में पाई जाती है। अन्य पशुओं में भी यह बीमारी होती है। लेकिन इसका कोई बुरा प्रभाव पशुओं पर नहीं पड़ता है। पशु अगर अलग या गलत तरीके से सो रहा है या उसको सांस लेने में कोई दिक्कत होती है तो खर्राटे की समयस्या पनपनी है। अगर लंबे समय से यह बीमारी किसी पशु में होती है तो वह किसी नज़दीकी पशुचिकित्सक को दिखा सकता है।”
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सोते समय सांस के साथ तेज आवाज और वाइब्रेशन को ही खर्राटे बोलते हैं। पशुओं के नाक और मुंह में होने वाले रोगों से भी खर्राटे की बीमारी पनपती है। “कई बार पशुओं में दूषित पानी पीने से भी खर्राटे लेने की समस्या पनपती है। दूषित पानी में लार्वा द्वारा कीटाणु पशु की नाक की चमड़ी में प्रवेश करते हैं और वहां तेजी से पनपते हैं। यह नाक में बहुत ज्यादा तादाद में अंडे देने और इन अंडों के विशिष्ट रचना की वजह से उस जगह इस रोग की शुरुआत होती हैं, ” डॉ. केशव ने बताया।
अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ. केशव आगे बताते हैं, “अंडे देने वाली उस जगह की धमनियां फूल जाती हैं व नाक में बारबार चुभने से वहां पेशियां बढ़ जाती हैं। उस जगह पीप भी तैयार होता है। इस पीप के जमाव के कारण जितनी हवा सांस लेने हेतु चाहिए उतनी हवा फेफड़ों में जाती नहीं है और पशुओं को खर्राटे आने लगते हैं।”
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इस बीमारी के बचाव के बारे में डॉ. केशव बताते हैं, “पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए यह आवश्यक है कि सर्दी हो या गर्मी बाड़े की साफ-सफाई रोज होनी चाहिए। इसके अलावा पशुओं को साफ और ताजा पानी देना चाहिए। अगर टंकी का पानी दे रहे हैं तो समय-समय पर टंकी की सफाई करते रहना चाहिए ताकि टंकी में काई (शैवाल) न बढ़े। इसके अलावा अगर गाय-भैंस या किसी भी पशु की नाक से कोई चिपचिपा पदार्थ बह रहा हो तो उसकी जांच जरूर करा लें।”