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पशुओं के लिए उत्तम हरा चारा है एजोला, जानिए इसे उगाने की पूरी विधि

एजोला एक अति पोषक छोटा जलीय फर्न (पौधा) है, जो स्थिर पानी में ऊपर तैरता हुआ होता है। एजोला को घर में हौदी बनाकर, तालाबों, झीलों, गड्ढों, और धान के खेतों में कही भी उगाया जा सकता है।
#हरा चारा

पशुओं के लिए सबसे जरूरी होता है पोषक चारा, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य तो सही रहता ही है साथ ही दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा भी बढ़ जाती है। ऐसा ही एक चारा है एजोला जिसे पशुपालक उगा कर अपने पशुओं की सेहत बना सकते हैं। साथ ही सुखाकर खेत में प्रयोग करने से मिट्टी में जीवांश की भी मात्रा भी बढ़ेगी।

कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया के वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव बताते हैं, “ये एक तरह का फ़र्न होता है, इसे छोटी से जगह में भी उगा सकते हैं, ये पानी के ऊपर तैरता रहता है। अगर आपके पास छोटा सा जलाशय है तो उसमें उसमें भी उगा सकते हैं, नहीं तो छोटा सा गड्ढा बनाकर भी उगा सकते हैं।”

वो आगे बताते हैं, “यही नहीं किसान इसे सुखाकर खेत में बढ़िया जैविक खाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं। इससे मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ती है, इसलिए ये बढ़िया जैविक खाद के रूप में भी काम करता है।”

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एजोला एक अति पोषक छोटा जलीय फर्न (पौधा) है, जो स्थिर पानी में ऊपर तैरता हुआ होता है। एजोला को घर में हौदी बनाकर, तालाबों, झीलों, गड्ढों, और धान के खेतों में कही भी उगाया जा सकता है। कई किसान इसको टबों और ड्रमों में भी उगा रहे है। यह पौधा पानी में विकसित होकर मोटी हरी चटाई की तरह दिखने लगती है। सभी प्रकार के पशुओं के साथ-साथ एजोला मछलियों के पोषण के लिए भी बहुत उपयोगी होता है।

एजोला में सभी प्रकार के मिनिरल जैसे कैल्शियम, आयरन फास्फोरस, जिंक, कोबाल्ट, मैग्नीजियम इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में विटामिन, प्रोटीन, अमीनों एसिड्स और खनिज होते है। इसको उगाने में किसानों का कोई खर्चा भी नहीं आता है और उसका लाभ भी पशुपालकों को मिलता है। इसकों पशुओं को खिलाने से दूध उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि होती है। साथ ही वसा की मात्रा भी 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

ऐसे उगाएँ एजोला

उगाने के लिए पांच मीटर लम्बा एक मीटर चौड़ा और आठ से दस इंच गहरा पक्का सीमेंट का टैंक बनवा लें। टैंक की लम्बाई व चौंड़ाई आवश्यकतानुसार घटा-बढ़ा भी सकते हैं। अगर टैंक नहीं बना सकते, तो ज़मीन को बराबर करके उस पर ईंटों को बिछाकर टैंकनुमा गड्ढा बना लें, गड्ढे में 150 ग्राम मोटी पॉलीथिन को गड्ढे में चारो तरफ लगाकर ईंटों आदि से अच्छी तरह दबा दें। गड्ढा/टैंक किसी छायादार जगह पर ही बनाएं।

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गड्ढे/टैंक में लगभग 40 किलोग्राम खेत की साफ-सुथरी छनी हुई भुरभुरी मिट्टी को डाल दें। 20 लीटर पानी में दो दिन पुराने गोबर को चार-पांच किलोग्राम का घोल बनाकर एजोला के बेड पर डाल दें। गड्ढे/टैंक में सात से दस सेंटीमीटर पानी भर दें (एजोला के अच्छे उत्पादन के लिए गड्ढे/टैंक में इतना पानी हमेशा रखें)।

एक से डेढ़ किलोग्राम मदर एजोला कल्चर को पानी में डाल दें। (यह गड्ढे/टैंक में एक बार डालना होता है उसके बाद यह धीरे-धीरे बढऩे लगता है। ) दस से बारह दिन में एजोला पानी के ऊपर फैलकर मोटी हरी चटाई सा दिखने लगता है। बारह दिन के बाद एक किलोग्राम एजोला प्रतिदिन प्लास्टिक की छन्नी से निकाला जा सकता है।

सप्ताह में एक बार गोबर पानी का घोल बनाकर गड्ढे/टैंक में जरुर डालते रहें। पशुओं को खिलाने से पहले एजोला को पानी से निकालने के बाद अच्छी तरह साफ कर लें, जिससे गोबर की गंध न आए।

प्रतिदिन खिलाएं एजोला

एजोला को पशुओं के रोज़ के चारे में 1:1 (बराबर मात्रा) में मिलाकर दूध देने वाले पशुओं को प्रतिदिन खिलाएं। पाया गया है कि इससे मिलने वाले पोषण से दूध के उत्पादन में 10-15 प्रतिशत वृद्घि होती है इसके साथ 20 से 25 प्रतिशत रोज के चारे में बचत भी होती है।

एजोला पोल्ट्री बर्ड्स को भी खिलाया जा सकता है। इससे उनकी वृद्घि जल्दी होती है, अन्य साधारण चारा खाने वाली मुर्गियों की तुलना में उनका वजन 10 से 12 प्रतिशत ज्यादा होता है।

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