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मछलियों में होने वाली यह बीमारियां मछली पालकों का करा सकती है घाटा

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लखनऊ। अगर तालाब में सफाई और चूना की व्यवस्था सही तरीके से होती रहे तो मछलियों में बीमारी की संभावना कम ही रहती है लेकिन कई बार मछली पालक लापरवाही के चलते समय पर सफाई और चूना की व्यवस्था नहीं करते है, जिससे मछलियों को बीमारियां हो जाती है।

मछलियों में होने वाली बीमारियां और उनके उपचार

सफेद चकत्तों की बीमारी: इस बीमारी में मछलियों के शरीर पर सफेद चकत्ते पड़ जाते हैं। इसके उपचार के लिए कुनीन की दवाई का प्रयोग किया जाता है।

काले चकत्तों की बीमारी: मछली के शरीर पर काले-काने चकत्ते पड़ जाते हैं। 2.7 भाग प्रति 1000000 भाग जल के पिकरिक एसिड के घोल में बीमारी मछलियों को एक घंटा नहलायें।

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फफूंद: अगर मछलियों के शरीर पर कोई चोट या रगड़ लग जाती है तो उस पर रुई की तरह फफूंद लग जाती है जिससे मछलियां सुस्त होकर पानी की सतह पर आ जाती हैं। बीमार मछली को 5 से 10 मिनट तक नमक कर घोल, नीला थोथा का घोल और पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से नहलायें।


आंखों की बीमारी: इस बीमारी में मछलियों की आंखे खराब हो जाती है। बीमार मछलियों की आंखों में 1 से 2 प्रतिशत सिल्वर नाइट्रेट के घोल से धोकर मछली को तालाब में छोड़ दें।

लार्निया: इस बीमारी से यह कीट मछली के शरीर से चिपक जाती है और मछली के शरीर पर घाव बना देता है। तालाब में पोटैशियम परमैगनेट का प्रयोग करने से यह बीमारी समाप्त हो जाती है।

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गिलरॉट: इस बीमारी में मछलियों के गिल/गलफड़े सड़ जाते हैं। बीमार मछलियों को तालाब से बाहर निकाल दें। मछलियों का भोजन बंद कर दें। तालाब में ताजा पानी भरवायें। बीमार मछलियों को एटीब्राइन घोन में नहलाना चाहिए।

फिनराट: इस बीमारी में मछलियों के पंख गल जाते हैं। बीमार मछलियों को नीला थोथा के घोल में एक- दो मिनट तक नहलायें।

ड्रॉप्सी: इस बीमारी में मछली के किसी भी अंग में पानी सा भर जाता है। ऐसी बीमार मछलियों को तालाब से बाहर निकाल देना चाहिए।

आर्गुलस: इस बीमारी में मछली के शरीर पर चपटी जूं हो जाती है। 02 प्रतिशत माइसौल के घोल में 10 से 15 सेकेंड तक मछली को नहलाने से जूं समाप्त हो जाती है। 

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