जमशेदपुर (झारखंड)। सूकर पालन से हर महीने की आमदनी 90 हजार से तीन लाख रुपए तक… सुनकर आश्चर्य लग रहा होगा, लेकिन झारखंड के एक आदिवासी किसान जेरोम सोरेंग हर महीने इतना ही कमाते हैं। सूकर पालन के लिए मशहूर ये अब तक अलग-अलग राज्यों के 2500 से ज्यादा आदिवासी किसानों को सूकर पालन के लिए प्रशिक्षित कर चुके हैं। जेरोम सोरेंग को देखकर जमशेदपुर में 400 से ज्यादा सूकर बाड़े बनाकर किसान सूकर पालन से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
सूकर पालन के क्षेत्र में कई अवार्डों से सम्मानित जेरोम सोरेंग (77 वर्ष) साधारण व्यक्तित्व के धनी एक रिटायर्ड मनोवैज्ञानिक प्रोफेसर हैं। इन्होंने 15 साल पहले सात सूकर को 3500 रुपए में खरीदकर सूकर पालन की शुरुआत की थी तब इन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि ये सूकर पालन इनके लिए महीने का लाखों रुपए की आमदनी का जरिया बनेगा और ये हर दिन 14 लोगों को मजदूरी देकर रोजगार मुहैया करा पाएंगे। सूकर के मलमूत्र से ये जैविक खाद बनाते हैं जिसका उपयोग अपनी फसलों में करते हैं।
“यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कोई भी कम पैसे में शुरू कर सकता है। मैं इसकी तुलना गौ पालन से करता हूँ। अगर एक अच्छी गाय खरीदेंगे तो कम से कम 40-60 हजार रुपए में मिलेगी, पर एक सूकर खरीदने में मात्र तीन हजार रुपए की जरूरत पड़ती है।”
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इनका फॉर्म हाउस देखने झारखंड के आलावा बंगाल, बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के किसान आते हैं। सूकर को बेचने के लिए इन्हें कभी बाजार का रुख नहीं करना पड़ा। इलेक्ट्रानिक मशीन से सही नापतौल, साफ़-सफाई और जैविक फसल खिलाने की अच्छी गुणवत्ता की वजह से इनके सूकर की एडवांस बुकिंग रहती है।
जेरोम सोरेंग मुस्कुराते हुए बड़ी की सहजता के साथ बताते हैं, “यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसे कोई भी कम पैसे में शुरू कर सकता है। मैं इसकी तुलना गौ पालन से करता हूँ। अगर एक अच्छी गाय खरीदेंगे तो कम से कम 40-60 हजार रुपए में मिलेगी, पर एक सूकर खरीदने में मात्र तीन हजार रुपए की जरूरत पड़ती है।”
ीइनका ‘ग्रीन ड्रीम फॉर्म’ जमशेदपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर गौड़ागौड़ा गाँव में तीन एकड़ जमीन में बना है। इनके सूकर बाड़े में अलग-अलग प्रजाति के 350 सूकर हैं। सूकर पालन के साथ ही इसी जमीन में जेरोम सोरेंग इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग भी करते हैं। जो किसान ये मानते हैं कि सूकर पालन के साथ कोई और पालन नहीं कर सकते उनके लिए जेरोम सोरेंग उदाहरण बने हुए हैं क्योंकि ये सूकर पालन के साथ-साथ मुर्गी पालन, इमू पालन (शुतुरमुर्ग की एक प्रजाति), गाय पालन, बत्तख पालन कर रहे हैं। बस इनके बाड़े की खासियत इतनी है कि ये सुबह-शाम बाड़े की साफ़-सफाई के बाद धुलाई करते हैं। गंदगी न रहने की वहज से बदबू नहीं आती, जिसकी वजह से हर प्रजाति अपने-अपने बाड़े में आराम से रहते हैं।
सूकर खरीदने के बाद इसके पालन में महीने में लगभग कितना खर्च आता है इस सवाल के जबाब में जेरोम ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं हर सुबह आसपास के कुछ होटलों में खाली डिब्बों को रख आता हूँ, होटलों का बचा हुआ खाना हमारे सूकर खाते हैं। बाजार की बची हुई हरी सब्जियां और ये बचा खाना इनके शरीर में हर तथ्य की भरपाई करता है। कुछ जमीन में मैं जैविक तरीके से खेती करता हूं, जो भी उपज होती है पूरी उपज इन्हें खिला देता हूँ।” जहां सूकर रहते हैं वहां इन्होंने इनके लोटने के लिए एक हिस्से में पानी भर दिया है क्योंकि सूकर पानी का जानवर है और इसे पानी में लोटना बहुत अच्छा लगता है।
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पूर्वी सिंहभूमि जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक भूषण प्रसाद सिंह ने बताया, “किसान एक दूसरे को देखादेखी सूकर आधारित समन्वित कृषि प्रणाली अपना रहे हैं। दूसरी फसलों की अपेक्षा सूकर पालन ज्यादा उपयोगी है और स्वरोजगार का एक बड़ा फायदा है। जिले में 400 से ज्यादा सूकर पालक किसान है जो सूकर पालन और समन्वित कृषि प्रणाली को अपना रहे हैं।” उन्होंने आगे बताया, “क्षेत्र के हिसाब से सूकर की नस्ल का पालन करें, झारखंड में झासुख नाम की नस्ल का बहुत किसान इस्तेमाल कर चुके हैं।
किसान जेरोम सोरेंग को राज्य से लेकर दिल्ली तक कई सम्मान मिल चुके हैं। इस उम्र में अपनी मेहनत और लगन की वजह ये कई स्टेटों में अपनी ख़ास जगह बना चुके हैं।”
कुछ ऐसा है यहां रहने वाले सूकरों का बाड़ा
तीन एकड़ की जमीन में इनके रहने का एक छोटा सा कमरा बना है और एक मजदूर परिवार के रहने के लिए घर बना हुआ है। दो बड़े तालाब और एक पुराना कुआं है जिसमें ये मछली पालन करते हैं। बाकी की जमीन में सूकरों को खाने के जैविक खेती करते हैं। 24 कट्ठे में सूकर पालन का बाड़ा बना है। इस बाड़े में कई कमरे बने हैं इसमें अलग-अलग प्रजाति के सूकर रहते हैं। तो कई में बत्तख, गाय और बकरी रहती हैं। हर बाड़े के कमरे में पानी की एक निकास नाली बनी है जो एक जगह बाहर तालाब में गिरती है। तालाब के उस पानी में इन सभी का मलमूत्र जाता है जिससे ये पानी ट्यूबेल के द्वारा ये अपने खेतों में ले जाते हैं जो खाद का काम करता है। बाड़े में जैविक खाद बनाने के सीमेंटेड गड्ढे बने हैं जिसमें अल्टरनेट जैविक खाद बनकर तैयार होती रहती है।
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जेरोम इन सूकरों की अलग-अलग नस्लों के नर और मादा के साथ शोध भी करते रहते हैं। किसी बाड़े में दो अलग-अलग नस्ल के नर और मादा रखते हैं उससे जो बच्चे होते हैं उसकी एक अलग प्रजाति हो जाती है। बाकी के बाड़ों में तीन मादा और एक स्वस्थ्य नर रहता है। इलेक्ट्रानिक मशीन लगी हैं जहाँ इनकी तौल होती है।
सूकर पालन में किसान इन बातों का रखें ध्यान
1- क्षेत्र के हिसाब से सूकर की प्रजाति का चयन करें।
2- सूकर पालन में इसका बाड़ा बनाना बहुत जरूरी है। बाड़े में इनके मलमूत्र के निकासी की जगह जरुर बनाएं.
3- नियमित तौर पर बाड़े की सुबह-शाम सफाई और धुलाई हो जिससे गंदगी न रहे।
4- जब भी सूकर पालन करें तो एक बच्चा कमसेकम 10 किलो का जरुर हो। तीन चार बच्चों या एक सूकर से इसके पालन की शुरुआत कम पैसे से कर सकते हैं।
5- जब तक सूकर तीस किलो का न हो जाए तबतक दिन में दो बार अपनी सहूलियत के हिसाब से इन्हें खाना दें।
6- बाड़ा में पानी जरुर भरा रहे जहाँ ये लोट सकें। हर दिन इनको नहलवाएं।
7- अगर होटल का बचा हुआ खाना, बाजार की बची हुई सब्जियां और खुद की फसल से इन्हें कुछ नहीं खिलाते तब एक सूकर को 250 ग्राम से डेढ़ किलो तक मकाई का दर्रा, धान का फूस, गेंहू का चोकर, सरसों की खली की मात्रा खिलाएं।
8- सूकर प्याज, करेला और नीबू छोड़कर सब चीजें खाता हैं।
9- हर बाड़े में रूम नम्बर डालें जिससे जानवरों की सही से देखरेख हो सके।
10- कभी भी बिना तौल से इसे न बेचें। तौलकर बेचने से सही भाव मिलेगा।