अपने ही ‘बेटों’ से डरी मलिहाबादी दशहरी

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अपने ही ‘बेटों’ से डरी मलिहाबादी दशहरीgaon connection, गाँव कनेक्शन

गांव कनेक्शन नेटवर्क

लखनऊ। महिलाबाद फल पट्टी में अधिकांश आम के पेड़ बौर से लद गए हैं। मानसून का असर है कि उत्तर प्रदेश समेत पूरे भारत में आम की अच्छी पैदावार होने के आसार हैं। लेकिन इसी खबर ने महिलाबाद के दशहरी बाग मालिकों की नींद उड़ा रखी है।

आम कारोबारियों को उनके बाग में लगे पेड़ों के बच्चों से ही डर सता रहा है। कारोबारी इस वर्ष अच्छी पैदावार होने की उम्मीद जता रहे हैं लेकिन दशहरी के उत्पादकों को घाटे का डर सता रहा है। मलिहाबादी दशहरी की राह में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार व गुजरात में पैदा होने वाली दशहरी दीवार बन कर खड़ी हुई है। इन प्रदेशों में दशहरी वक्त से पहले बाजार में आ जाएगी। ऐसे में निर्यात पर एकाधिकार जमाये 'मलिहाबादी' को अपनी ही नई पौध से टक्कर मिल रही है। प्रदेश में बाहरी दशहरी के पहले आने से दशहरी को अपनी मिल्कियत समझने वाले मलहिबाद के बाग मालिकों, कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

लखनऊ के मलिहाबाद तहसील क्षेत्र के काकोरी के दशहरी गांव में करीब दो सौ वर्ष पूर्व निकली मलिहाबाद दशहरी पूरे मलिहाबाद क्षेत्र में बिखरी है। इस क्षेत्र से चंद रुपए में निकली दशहरी की कलम (नर्सरी) महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात में बड़े बाग में विकसित हो चुकी है। इन राज्यों की दशहरी मलिहाबादी दशहरी से पहले ही बाजार में आ जाती है और मलिहाबादी दशहरी से सस्ती भी पड़ती है। यही कारण है कि इन राज्यों में लखनऊ से जाने वाली दशहरी को उसकी असल कीमत नहीं मिल पाती। जानकारों की मानें तो देश के विभिन्न हिस्सों में इसके अनुकूल जलवायु होने के कारण आने वाले दिनों में इसका उत्पादन और बढ़ेगा जो लखनऊ की मैंगो बेल्ट पर असर डालेगा।

लखनऊ जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में मलिहाबाद के मुजासा गांव के नर्सरी संचालक मोह्ममद रियाज (30 वर्ष) ने कहा, ''दादा बनाते हैं, बेटा संभालता है तब पोता राज करता है। मेरे दादा ने वर्षों पहले दशहरी की कलम बेची। लेकिन ये कहावत हमारे लिए अब उल्टी साबित हो रही है। पुश्तों के मलिहाबादी दशहरी की बेची गई पौध अब दूसरे राज्यों में बागों का रूप ले चुकी है। इन राज्यों के बागवान बेहतर उत्पादन के साथ अब खुद दशहरी की पौध बेच रहे हैं। स्थिति यह हो गई कि अब बाग काट कर उस पर धान और दूसरी फसल उगानी पड़ रही है।"

इसी गांव के किसान और नर्सरी संचालक राम किशोर (40 वर्ष) बताते हैं, इस वर्ष भी जुलाई और अगस्त में हजारों की संख्या में दशहरी की कलम दूसरे राज्यों में जाने की उम्मीद है। दक्षिण भारत के राज्यों की दशहरी पहले बाजार में आ जाती है। उत्तर भारत में चौतरफा दशहरी की पैदावार होने से मलिहाबादी दशहरी को उचित भाव नहीं मिल पाता है। अब यह घाटे का सौदा हो गया है। शहरीकरण के चलते क्षेत्र में नए बाग नहीं लग रहे हैं।"

माल के मसीढ़ा, नबीपनाह, भक्खा खेड़ा और मलिहाबाद क्षेत्र के मुजासा, महमूद नगर समेत मलिहाबाद तहसील क्षेत्र में करीब तीन हजार नर्सरियां हैं। इसमें करीब एक चौथाई पंजीकृत हैं। आम की कलम के अलावा अमरूद और फूलों की पौध भी बेची जाती है। आवेश नर्सरी के शफी अहमद खां (70 वर्ष) नर्सरी के पौधे को दिखाते हुए कहते हैं, “इलाके से दशहरी समेत आम की अन्य किस्मों की करीब 10 से 20 हजार कलम हर साल दूसरे राज्यों में जाती है। आकार और कलम की अवधि के हिसाब से यह 20 से 70 रुपए तक बिकती है, नर्सरी आज रोजगार तो दे रही हैं लेकिन कल को ये समस्या जरूर बनेंगी।"

हाजी कलीमुल्ला खां अब्दुल्ला नर्सरी संचालक व पदमश्री से सम्मानित (76 वर्ष) लंबी सांस भरते हुए बताते हैं, “इसके लिए

बागवान और नर्सरी संचालक जिम्मेदार हैं। इन राज्यों की दशहरी बाजार में पहले आती है। अगर दशहरी बाहर नहीं जाती तो मलिहाबाद के उत्पादों को बहुत अच्छी कीमत मिलती, पर सही मायनों में देखें तो यह नुकसानदायक नहीं है। चीज वही अच्छी होती है जो गरीब और अमीर सभी खा सकें। मेरा मानना है कि दशहरी का बाहर जाना बेहतर है।"

बाग मालिक भले ही यूपी के बाहर दूसरे राज्यों में पेड़ों पर बौर देखकर परेशान हो लेकिन बागवानी विभाग से जुड़े अधिकारी काफी खुशी हैं। डॉ. शैलेंद्र राजन निदेशक केंद्रीय उपोष्ण एंव बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा ने कहा, ''दशहरी का देशभर में बिखरना बेहतर है। इससे दूसरे राज्यों के लोग इसके स्वाद से वाकिफ हो रहे हैं। मलिहाबादी दशहरी का स्वाद अनूठा है। सीजन आने पर इन राज्यों में मलिहाबादी दशहरी की मांग और बढ़ेगी।"

लखनऊ के साथ ही उन्नाव, हरदोई, कानपुर, बाराबंकी और सीतापुर में भी दशहरी का अच्छा उत्पादन होता है। आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र में अनुकूल जलवायु होने के कारण अप्रैल व मई में ही दशहरी बाजार में आकर छा जाती है। बाजार में ये दशहरी ऊंचे भाव में बिकती है। पिछले वर्ष अप्रैल में लखनऊ के फ ल बाजार में बाहर की दशहरी 100 रुपए किलो तक बिकी चुकी है, जबकि आकार में बड़ी व स्वाद में औरों से बेहतर होने के बाद भी मलिहाबाद की दशहरी को वाजिब दाम नहीं मिलता। 

बेजोड़ है मलिहाबादी दशहरी

उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में आम की पैदावारी होती है। भारत में पाई जाने वाले आम की दो किस्म दशहरी और अल्फांसो (हापुस) विदेशों में बेहद पसंद की जाती है। वैसे तो दोनों आम का अनूठा स्वाद है, पर मलिहाबादी दशहरी जैसा स्वाद किसी किस्म के आम में नहीं मिलता। यही वजह है कि एक बार इसका स्वाद जिसकी जुबान पर चढ़ गया, वो जिंदगी भर इसका दीवाना हो गया। 18 वीं सदी में यह आम लखनऊ के मलिहाबाद तहसील के काकोरी के दशहरी गांव में नवाबों के बागानों में दिखाई दिया था। इस गांव की मिट्टी में निकले मदर दशहरी पेड़ से पैदा दशहरी आम की खुशबू आसपास फैली। आकार, रंग और मिठास इसे औरों से जुदा करती है। आकार में लंबी और चपटी मलिहाबादी दशहरी का स्वाद अन्य स्थानों पर पैदा होने वाली दशहरी में नहीं मिलता।

निर्यात में यूपी फि सड्डी

विदेशों में निर्यात की दृष्टि से प्रदेश के आम की हिस्सेदारी काफी कम है। प्रदेश के दो मैंगो पैक हाउस लखनऊ और सहारनपुर से ही विदेशों को दशहरी, चौसा और अन्य किस्म के आम का निर्यात होता है। पिछले 11 वर्ष में लखनऊ से 214.25 मीट्रिक टन दशहरी (नवाब ब्रांड) खाड़ी व अमेरिका, आस्ट्रेलिया को निर्यात की गई। वहीं सहारनपुर पैक हाउस से 481.48 मीट्रिक टन आम का निर्यात किया गया। इसमें सबसे ज्यादा सहारनपुरी चौसा का निर्यात किया गया।

इस बार होगा अच्छा उत्पादन

आम की बौर को देखकर पदमश्री हाजी कलीमुल्ला खां पैदावार बहुत अच्छी होने की उम्मीद जता रहे हैं। उनका कहना है कि 76 वर्ष की उम्र में ऐसी बौर पहली बार देखी है। फूल बहुत छोटे आए हैं। फरवरी में आम के लिए तापमान सबसे अच्छा रहा। पैदावार अच्छी होने से गरीब और अमीर सभी छक कर आम खाएंगे। इस वक्त बौर में भुनगा पड़ना शुरू हो गया है। उन्होंने बागवानों को सलाह देते हुए कहा कि भुनगा कीटनाशक की आधी डोज का छिड़काव करें। ताकि फ सल को बचाया जा सके।

 

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