अपराध रोकने के लिए ‘क्राइम मैपिंग’ आज से

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अपराध रोकने के लिए ‘क्राइम मैपिंग’ आज सेGaon Connection

लखनऊ। अपराध पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस का नया प्रयास। प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर होने वाले अपराधों की मैपिंग की करके पुलिस उसी के हिसाब से रणनीति बनाएगी।

प्रदेश को आठ जोन में बांट कर इनमें से पांच में क्राइम की मैपिंग शुक्रवार से शुरू हो रही है। आगरा पुलिस द्वारा शुरू किए गए इस को पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा हे।

किस इलाके में किस तरह की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। क्या वो किसी निश्चित जगह पर हो रही हैं, और क्या उनकी प्रवृत्ति एक जैसी है? पुलिस यह सब पता लगाने के लिए पूरे प्रदेश का डाटाबेस तैयार करवा रही है। 

“डाटा होगा तो आसानी से पता चल सकेगा कि किस इस इलाके में कैसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। फिर जिस पुलिसकर्मी की उस इलाके में ड्यूटी लगाई जाएगी उसे पता होगा कि उसका काम क्या है। फिलहाल हर इलाके में मुंशी सिपाहियों की अपनी मर्जी से कहीं भी ड्यूटी लगा देता है। आगरा में ‘क्राइम मैंपिंग़’ का हमें फायदा मिला और चोरियां रोकने में काफी हद तक सफल हुए हैं।” आशुतोष पांडेय, आईजी पीएसी पूर्वी बताते हैं।

अप्रैल माह के आखिर तक तीन साल की वारदातों का आंकड़ा जुटाकर एक साफ्टवेयर में डाला जाएगा। फिर देखा जाएगा इस क्षेत्र में अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कितने पुलिसकर्मी और कैसी व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।

प्रदेश में सबसे ज्यादा वाहनों की चोरियां आगरा के हरी पर्वत थाना इलाके में होती थीं। इस पर लगाम लागने के लिए पुलिस ने मैंपिग शुरू की, जिससे मिले परिणाम से इलाके में अपराधियों पर लगाम लगी है। 

“जब पता चला कि संजय पैलेस में सबसे ज्यादा वारदातें होती हैं, तो पुलिस और प्रशासन ने मिलकर रणनीति बनाई।

अपराधियों पर कसेगी नकेल

लखनऊ। यदि सब कुछ ठीक रहा तो अप्रैल माह के अंत में पुलिस विभाग यह पता कर सकती है कि कब और किस समय कौन सा अपराध होता है और उसे रोकने के लिये कितनी की संख्या में पुलिस बल तैनात करना होगा। अप्रैल माह के अंत तक पांच जोन में तीन वर्ष का डाटा एकत्र कर उसकी विस्तृत जानकारी साफ्टवेयर में लोड किया जायेगा ताकि पुलिस विभाग के अधिकारी, सिपाही सभी की जहां तैनाती हो उसको अपनी जिम्मेदारी पता रहे।

आगरा में मिली सफलता के बाद इस योजना को पूरे प्रदेश में लागू किया जा रहा है। प्रदेश के आठ में से पांच जोन लखनऊ, आगरा, कानपुर, मेरठ और बरेली काम डाटा एकत्र करने का काम शुरू कर दिया गया है जबकि गोरखपुर, वाराणसी और इलाहाबाद जोन में अगले माह से काम शुरू होगा। 

आगरा में तैनाती के दौरान इस व्यवस्था से सफलता हासिल कर चुके आईजी पीएसी पूर्वी आशुतोष पांडेय बताते हैं, “क्राइम मैंपिग के तहत तीन साल से हुई वारदातों का डाटा एकत्र किया जा रहा है। इसमें कौन सी घटना कब और कहां, किस समय में हुई है इसका ध्यान रखा जा रहा है। डाटा एकत्र होने के बाद यह पता किया जा सकता है कि किस क्षेत्र में कौन सी घटना सबसे अधिक होती है। अगर इसकी जानकारी होगी तो बीट इंचार्ज उसी के मुताबिक काम करेगा।”

डाटा एकत्र करने के लिए संबंधित कंप्यूटर की जानकारी रखने वाले संबंधित थाने के एक सिपाही, क्राइम ब्रांच की टीम, डीसीआरबी की टीम शामिल होगी। ये लोग डाटा पुलिस अधीक्षक या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय में कार्यरत पेशकार के पास कम्प्यूटर में लोड करेंगे। यह भी देखा जाएगा किस स्थान पर ज्यादा घटनाएं हो रही हैं और क्यों?

आशुतोष पांडेय आगे बताते हैं, “इस तरह का डाटा लोड होने के बाद जब वारदात वाले स्थानों को चिन्हित कर आम जनता के बीच इस साफ्टवेयर को जारी कर दिया जायेगा तो जनता भी जागरूक होगी। आम लोग स्वयं सतर्क रहकर संदिग्धों की सूचना भी पुलिस को दे सकेंगे।”

14 मिनट ही एक स्थान पर रहेगी डायल 100 की गाड़ी

आईजी आशुतोष पांडेय ने बताया कि डायल 100 की गाड़ियां अपने एक स्थान पर 14 मिनट ही रहेगी। उन्होंने बताया कि अमेरिका के कैम्ब्रिज में रिसर्च के दौरान यह जानकारी आई कि न्यूनतम और अधिकतम एक स्थान पर 14 मिनट की वाहन खड़ी रहती है तो वह प्रभावी होता है।

आगरा में हुआ था योजना का ट्रायल

आगरा जोन के आईजी रहते हुए आशुतोष पांडेय ने इसकी शुरूआत की थी। वो बताते हैं, “आगरा में सबसे ज्यादा वाहन चोरी होती थी। डाटा एनालिसिल से पता चला आगरा के हरिपर्वत थाना क्षेत्र में मौजूद संजय पैलेस से ज्यादा वाहन चोरी होते हैं। प्रतिदिन दो से तीन की संख्या में वाहन चोरी होते थे। फिर वहां रणनीति बनाकर सिपाहियों की तैनाती गई थी। सिपाहियों को पता था उन्हें सबसे ज्यादा किस पर फोकस रखना है। रणनीति काम कर गई थी। और वारदातें काफी हद तक कम हो गई थीं।”

रिपोर्टर - गणेश जी वर्मा

 

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