असुरक्षित गर्भपात : परदे के पीछे छिपा बड़ा खतरा
गाँव कनेक्शन 24 Nov 2015 5:30 AM GMT
बिना बताए दो दिन तक गायब रहने के बाद अनिता आज काम पर आई थी, बड़ा गुस्सा आ रहा था। इतना सारा काम हो करने को तब अचानक छुट्टी। लेकिन सारा गुस्सा काफूर हो गया जब अनिता ने छुट्टी की वजह बताई, ''दीदी दवाई खाए थे, वो न महीना नहीं हुआ था दो महीने से।"
मतलब, पिछले छह महीने में ये दूसरी बार था जब अनिता ने अपना गर्भपात करवाया था। सुनते ही मेरा पहला सवाल था, दवाई डॉक्टर से पूछ कर खाई थी। जवाब मिला, ''तिरलोकपुरी में जो दवाई वाला है, वही देता है ई दवाई।" तिरलोकपुरी या त्रिलोकपुरी, महानगर दिल्ली में बसा एक गाँव जो कहने को तो बड़े शहर का हिस्सा है लेकिन कई मामलों में देश के सुदूर गाँवों से भी पिछड़ेपन की प्रतियोगिता करता नज़र आता है।
इसी गाँव में रहती है अनिता (28 वर्ष), अपने ऑटो चालक पति और तीन बच्चों के साथ। अनिता और बच्चे नहीं चाहती लेकिन परिवार नियोजन के तरीके भी नहीं अपना सकती। अगर सर्जरी करवाएगी तो बच्चों को कौन देखेगा, काम पर कैसे जाएगी। इस सवाल के जवाब में कि ऑपरेशन न सही और भी तो तरीके हैं, अनिता का चेहरा लगभग सूख सा गया। नहीं दीदी, वो तो खराब होता है। मेरी पड़ोसन की भाभी ने कॉपर टी लगवायी थी लेकिन उससे उसकी तबियत और खराब रहने लगी।
अब चौंकने की बारी मेरी थी, इक्कीसवीं सदी में जब हम आधुनिकता का इतना दावा कर रहे हैं उस वक्त आधुनिक गर्भ निरोधकों का इतना बड़ा हव्वा।
ये सच है कि अनिता और उसका पति दोनों ही बच्चा नहीं चाहते हैं लेकिन परिवार नियोजन के आधुनिक उपायों से खुद को दूर रखना चाहते हैं। जहां वो आईयूडी से डरती है वहीं उसके पति को कंडोम के इस्तेमाल से मर्दानगी में कमी नज़र आती है। इसलिए लगातार बार-बार गर्भपात उन्हें अनचाहे गर्भ से छुटकारे का एक ही तरीका नज़र आता है। ये तो बात हुई शहरी गाँव में रहने वाली अनिता की। अब चलते हैं बिहार के पिछड़े कोसी इलाके के एक गाँव में रहने वाली चन्दन की ओर। चन्दन पांच बेटों की माँ है और सबसे छोटा बेटा पांच साल का है। ऐसा नहीं है कि चन्दन उसके बाद गर्भवती नहीं हुई है, लगभग हर पांचवें छठे महीने उसके पैर भारी हो जाते हैं और फिर इससे छुटकारा पाने का तरीका या तो बाबाजी वाली 'जड़ी' होती है या फिर 'दाई'।
125 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में जहां हम दो, हमारे दो या फिर एक दंपत्ति, एक संतति का नारा बढ़ती जनसंख्या पर काबू करने के लिए जोर-शोर से बुलंद किया जा रहा है, असुरक्षित गर्भपात एक बड़ी समस्या के तौर पर उभर रहा है। अगर अंतरराष्ट्रीय अखबार टाइम में 2013 में छपे एक रिपोर्ट को आधार माना जाए तो हम पाएंगे कि भारत में हर दो घंटे में एक औरत असुरक्षित गर्भपात की वजह से मौत का शिकार बनती है। ये संख्या अनुमानत: मातृत्व मौत की कुल 13 फीसदी है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में लगभग 620,472 गर्भपात हुए हैं और ज़ाहिर है इसमें चन्दन और अनिता जैसे मामले शामिल नहीं हैं। यहां जब बात असुरक्षित गर्भपात की करते हैं तो ज़रूरी हो जाता है कि एक नज़र उन आंकड़ों पर डाला जाए जो भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था का पैमाना तय करती हैं अगर वर्ल्ड बैंक की वेबसाइट को चेक करें तो वहां भारत मे स्वास्थ्य व्यवस्था पर 2011, 2012 और 2013 मे किया गया कुल खर्च यहां के सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ़ 1.1-1.2 फीसदी ही नज़र आता है। 2011 मे दिल्ली के चार गाँवों पर किए सर्वे के अनुसार लगभग 50 फीसदी महिलाएं परिवार नियोजन के बारे में जानती ही नहीं, 19 फीसदी को तरीके पता थे लेकिन सिर्फ तीन फीसदी ने इन तरीकों का इस्तेमाल किया हुआ था यही बात पुरुषों पर भी लागू होती है। अधिकांश पुरुष निरोध के इस्तेमाल से कतराते हैं।
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