असुविधाओं से जूझ रहा संगीतकारों का गाँव

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असुविधाओं से जूझ रहा संगीतकारों का गाँवgaoconnection

हरिहरपुर (आजमगढ़)। कभी शास्त्रीय संगीत के सुरों से गूंजने वाले हरिहरपुर घराने के लोग आज ऑरक्रेस्टा और जागरण कर अपना गुजारा कर रहे हैं लेकिन अभी भी यहां के लोग अपने दिन की शुरुआत शास्त्रीय संगीत की राग-रागनियों के साथ करते हैं। 

आजमगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 14 किमी दूर पल्हानी तहसील के गाँव हरिहरपुर के लोग सुबह शास्त्रीय संगीत का रियाज करते हैं। सुबह चार बजे से ही हर घर से गायन-वादन के स्वर आने लगते हैं।देश को पंडित छन्नू लाल मिश्रा (पद्म भूषण), स्वर्गीय पंडित समता प्रसाद, पं शारदा महाराज, पंडित गणेश प्रसाद मिश्र, पंडित पन्नालाल मिश्रा, भोलानाथ मिश्रा, अंबिका प्रसाद मिश्रा जैसे कलाकारों को देने वाले हरिहरपुर घराने के कलाकारों को आज बेहतर शिक्षा सुविधाओं की कमी के चलते अपनी विरासत को आगे ले जाने में कठिनाई हो रही है। हरिहरपुर घराने में पांच साल के बच्चे से लेकर पचास साल के बुजुर्ग कलाकार हैं। यहां पर तबला, ढोलक, हरमोनियम, पखावज, सितार जैसे वाद्य यंत्रों के जानकारों के साथ ही खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के भी गायक हैं।

ऐसे पड़ा हरिहरपुर घराने का नाम 

हरिहरपुर घराने के पीछे की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। गाँव के उदय शंकर मिश्रा (35 वर्ष) जो खुद भी शास्त्रीय गायक के साथ ही सूफी भजन भी गाते हैं, बताते हैं, “आजमगढ़ की स्थापना यहां के जमींदार आजम खां ने की थी, जो खुद भी बहुत बड़े संगीतज्ञ के साथ ही संगीत प्रेमी भी थे। कहते हैं कि एक बार उन्होंने प्रतियोगिता रखी की जो उन्हें शास्त्रीय संगीत में मात देगा, उसे अपना आधा राजपाट दे देंगे। देशभर से कई बड़े दिग्गज आए लेकिन उन्हें न हरा पाए। तब उनके पास ग्वालियर घराने के हरि नामदास और श्रीनामदास नाम के दो भाई आए जिन्होंने उन्हें आखिर में उन्हें मात दे दी। तब आजम खां ने कहा कि आधा राज्य ले लो लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद उन्हें 989 बीघा का एक गाँव दे दिया। बड़े भाई के नाम पर गाँव का नाम हरिहरपुर पड़ गया। उन्हीं दोनों भाइयों के वंशज आज उनकी कला को आगे ले जा रहे हैं। 

नाम कमाने वाले लोगों ने तोड़ा गाँव से नाता

आज हरिहरपुर घराने के जो भी बड़े नाम हैं, उन सभी ने गाँव छोड़ दिया है। ऐसे ही हैं ठुमरी गायक पंडित भोलानाथ मिश्रा जो इस समय दिल्ली ऑल इंडिया रेडियो में काम करते हैं। पंडित भोलानाथ मिश्रा बताते हैं, “लोग कहते हैं कि हम लोगों ने गाँव छोड़ दिया है लेकिन गाँव में रहकर क्या करते। दिल्ली में नौकरी करता हूं, गाँव में रहकर कमाई नहीं हो सकती है।”

घराने के रमाशंकर मिश्रा को लगता है कि गाँव का कुछ विकास होगा। वह कहते हैं, ‘सरकार ने हमारे गाँव को एक करोड़ रुपए दिए हैं, इससे गाँव का बहुत विकास हो सकता है। गाँव में अस्पताल, स्कूल सब खुल सकता है। लोग अब गाँव को छोड़कर जा रहे हैं, शायद इसी से लोगों का जाना कम हो जाए। गाँव में एक संगीत हाल भी बना है। आजमगढ़ के तत्कालीन जिलाधिकारी सुभाष चन्द्र शर्मा ने इसका निर्माण कराया था लेकिन देख-रेख के अभाव में वो भी पूरी तरह से टूट रहा है। 

हरिहरपुर गाँव बनेगा पर्यटन स्थल

हरिहरपुर गाँव को पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रदेश सरकार ने गाँव को एक करोड़ रुपए दिए हैं, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लखनऊ में आयोजित आज़मगढ़ महोत्सव में महानिदेशक पर्यटन नवनीत सहगल ने बताया कि आजमगढ़ के गाँव हरिहरपुर के लोक गायन की दुनियाभर में लोग मुरीद हैं। इसे पर्यटन से जोड़ने का काम शुरू है। हरिहरपुर को टूरिस्ट प्लेस बनाने के लिए एक करोड़ रुपए मिल चुके हैं। ये दोनों स्थल वाराणसी के पास होने के कारण काफी अहम हैं। काशी में आने वाले विदेशी पर्यटकों की वजह से आजमगढ़ की कला सात समन्दर पार भी आसानी से धूम मचाने में कामयाब होगी।

सरकारी सुविधाएं हम तक नहीं पहुंचती

इस गाँव में मिश्रा जाति के लगभग चालीस घर हैं और सभी घरों को मिलाकर करीब 200 कलाकार हैं। कोई सितार में उस्ताद है तो कोई तबला, तो कोई हारमोनियम बजाने में। हरिहरपुर घराने में पांच साल के बच्चे से लेकर पचास साल के बुजुर्ग तक सभी कलाकार हैं। यहां पर तबला, ढोलक, हरमोनियम, पखावज, सितार जैसे वाद्य यंत्रों के जानकारों के साथ ही खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के भी गायक हैं। ‘कई संस्थाएं आई, कई बड़े-बड़े लोग आए लेकिन हमें क्या दिया नहीं पता, जो भी आता है, हमारे फायदे की बात करता है फिर खुद का फायदा करा कर चला जाता है।’ 48 वर्षीय रतनलाल मिश्र बोलते-बोलते भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, “कितने ही टीवी अखबार वाले आते हैं, सब खबर बनाकर चले जाते हैं, हमें क्या मिलता है। आज मेरे पास रहने को छत नहीं है, अपने भाई के लड़कों को सिखाकर उनके घर में रहता हूं। सरकार से जो भी सुविधाएं आती हैं मुझ तक नहीं पहुंचती बीच में ही लोग खा जाते हैं।” इस परिवार में कभी तबला बजाने में माहिर रतनलाल मिश्रा (48) एक अब हाथ से तबला बजाते हैं। साल 2008 एक एक्सीडेंट में उनका एक पैर कट गया था और एक हाथ भी किसी काम का नहीं बचा था।

जागरण करके होता है परिवार का गुजारा

उदय शंकर मिश्रा के भतीजे दीपांकर मिश्रा अब जागरण ग्रुप और ऑरक्रेस्टा चलाते हैं। दीपांकर कहते हैं, “हमारे घराने का नाम है लेकिन घराने के नाम पर तो घर नहीं चल नहीं सकता इसलिए अपना जागरण ग्रुप बना लिया है।” जागरण ग्रुप चलाने वाले दीपांकर अपने दोनों बच्चों मारूति और गोपाल को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। पांच साल का मारूती अभी से ही तबला बजाना सीख रहा है। दीपांकर बताते हैं, “हम लोगों के पास जो कला है, अपने बच्चों को भी दे रहे हैं।”

 

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