बारिश से किसानों के चेहरे खिले

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बारिश से किसानों के चेहरे खिलेgaonconnection

लखनऊ। लगातार दो साल से सूखे की मार झेल रहे किसानों को पिछले दो-तीन दिनों से लगातार हो रही बारिश से काफी राहत मिल गई है। बारिश से खेतों में पर्याप्त नमी आ गई है, जिससे ख़रीफ के लिए किसानों ने तैयारी शुरु कर दी है। 

लखनऊ जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूर सरोजनी नगर ब्लॉक के पिपरसंड गाँव के किसान रमेश सिंह (50 वर्ष) बारिश होने से काफी खुश हो गए हैं। रमेश सिंह बताते हैं, “पहले से ही सुनने में आ रहा था कि इस बार ज्यादा बारिश होने वाली है, मैंने पहले ही तैयारी शुरु कर दी थी। महीने के आखिर तक नर्सरी भी तैयार हो जाएगी।”

ख़रीफ की फसलों के साथ ही बागवानी और सब्जियों की खेती के लिए भी ये बारिश फायदेमंद है। किसान इसी में नई बागवानी भी लगा सकते हैं। 

इस बार ज्यादा गर्मी होने के कारण किसानों के खेत सूखे पड़े थे, खेत की मिट्टी इतनी ज्यादा कठोर हो गई थी कि जुताई भी नहीं हो पा रही थी। बारिश से खेतों में पर्याप्त नमी आ गई है, जिससे खेत आसानी से जोते जा सकते हैं। बारिश का इंतजार कर रहे किसानों को राहत मिली है। 

किसानों को सलाह देते हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजीत कुमार कहते हैं, “जिन क्षेत्रों में पर्याप्त बारिश हो गई है, वहां के किसानों को चाहिए की एक बार खेत की जुताई कर ले, जिससे धान के लिए खेत तैयार हो जाएंगे और खेत में नमी भी बनी रहेगी।”

वो आगे बताते हैं, “मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार इस बार अच्छी बारिश होगी, इसलिए किसानों को चाहिए कि ज्वार, बाजरा और अरहर की फसल की बुवाई खेत की जुताई के बाद कर दें। आगे जुलाई में और ज्यादा बारिश होगी, जिससे खेत में लगातार नमी बनी रहेगी, जो धान लगाने के लिए तो ठीक रहेगा, लेकिन ज्वार, बाजरा और अरहर के लिए नहीं।

सरोजनी नगर ब्लॉक के ही हिन्दूखेड़ा गाँव के किसान राम संजीवन वर्मा (45 वर्ष) ने बारिश के बाद खेत जुताई करनी शुरु कर दी है। वो कहते हैं, “गर्मी से खेत की मिट्टी इतनी ज्यादा कड़ी हो गई थी कि हल ही नहीं चलाया जा रहा था, जिनके पास अपने निजी इंजन है वही खेत भरकर जुताई कर रहे थे, हम लोग तो बारिश का इंतजार कर रहे थे।”

प्रदेश के जिन क्षेत्रों में बारिश हो गई है, वहां पानी ने पलेवा का काम किया है। खेतों की जुताई कर किसान अरहर, धान, ज्वार, बाजरा जैसी ख़रीफ की फसलों की बुवाई कर सकता है। बारिश न होने से पिछली बार किसानों ने ट्यूबवेल के भरोसे ही धान की खेती की थी। लेकिन इस बार अच्छा मानसून आने से किसान भूगर्भीय जल का कम प्रयोग करेंगे, जिससे पानी के स्तर को भी कुछ हद तक राहत ज़रूर मिलेगी।

 

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