यूपी के गाँवों की लड़कियों के मन में पल रहा ओलंपिक का सपना

Manish MishraManish Mishra   4 Oct 2016 8:20 PM GMT

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यूपी के गाँवों की लड़कियों के मन में पल रहा ओलंपिक का सपनागोंडा में रेस में भाग लेती लड़कियों

गोंडा। पीएसी ग्राउंड में आकांक्षा ने भले ही नंगे पैर अपनी दौड़ पूरी की, लेकिन उसकी नज़र ओलंपिक पर है। गाँव में जब उसने दौड़ना शुरु किया तो उसे देखकर दूसरी लड़कियों ने भी उसका साथ पकड़ लिया।

उत्तर प्रदेश के पिछड़े जिले गोंडा में आकांक्षा जैसी सैकड़ों ग्रामीण लड़कियों की आंखों में ओलंपिक में खेलने का सपना पल रहा है। जिले की सभी 1024 ग्राम पंचायतों में एक साथ आयोजित हुईं खेल प्रतियोगिताओं के बाद इन ग्रामीण लड़कियों में एक जुनून पैदा हो गया है।

"जब हम दौड़ने के लिए नहीं उठ पाते तो अम्मा उठाती हैं। जब हम दौड़ के वापस जाते हैं अम्मा कुछ हेल्दी खाने को देती हैं। डीएम सर ने यह प्रगति अभियान शुरू किया है तो गाँव के हर बच्चे जागरुक हो रहे हैं। पूरे गोंडा के बच्चे इसी खेल में लग गए।" बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा आकांक्षा सिंह (17 वर्ष) ने बताया।

आकांक्षा सिंह अपने पिता के साथ

जब हम दौड़ने के लिए नहीं उठ पाते तो अम्मा उठाती हैं। जब हम दौड़ के वापस जाते हैं अम्मा कुछ हेल्दी खाने को देती हैं।
आकांक्षा सिंह (17 वर्ष)

दरअसल, गोंडा के जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन की अनोखी पहल के बाद जिले की सभी ग्राम पंचायतों में खेल प्रतियोगिताएं कराई गईं। इसमें खास यह रहा कि गाँव की लड़कियों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन उनके भाइयों ने कराया।

जिले के सभी ग्राम प्रधानों ने इसमें बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। हर तरह के खेल हुए, खो-खो, कबड्डी, बॉलीवाल और दौड़ आदि में सभी ने खूब भाग लिया।

अगर खेल मैदान नहीं मिला तो किसी ने अपने खेत ही जुतवा दिए। करीब 20 दिन चले इन आयोजनों पर नज़र रखने के लिए जिला प्रशासन ने पूरी मुस्तैदी से काम किया।

करीब 35 लाख जनसंख्या वाले गोंडा जिले में कुल 1.2 लाख लड़के लड़कियों ने हिस्सा लिया। ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत और ब्लॉक स्तर पर खेलने के बाद छह लड़के और छह लड़कियां जिलास्तर पर खेलने के लिए चयनित हुईँ।

खेत-खलिहानों से खेल कर निकले ये गाँव के खिलाड़ी बेझिझक पीएसी ग्राउंड में फाइनल रेस जीतने के आतुर दिखे। रेफरी की सीटी की आवाज सुनते ही सफेद चूने की लाइन पर एक कतार में सभी लड़कियां खड़ी हो गईं, और अगली सीटी बजने पर सभी दौड़ पड़ीं।

बेटी को प्रतियोगिता में हिस्सा दिलाने लाए आकांक्षा के पिता रामशंकर सिंह कहते हैं, "मुझे अपनी बेटी की सोच को आगे बढ़ाना है। मैं चाहता हूं कि 2020 में जो ओलंपिक होना है जापान में, उसमें मेरी बेटी हिस्सा ले। मुझे बेटी को यहां देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। जैसा हमारे जिले में शुरू हुआ है वैसा हर जिले में शुरू हो।"

players

मुझे अपनी बेटी की सोच को आगे बढ़ाना है। मैं चाहता हूं कि 2020 में जो ओलंपिक होना है जापान में, उसमें मेरी बेटी हिस्सा ले।
रामशंकर सिंह, प्रतियोगी के पिता

वहीं, जिलास्तर पर फाइनल में दूसरे नंबर पर रहीं तरबगंज तहसील के साखीपुर गाँव की रहने वाली पूजा यादव (17 वर्ष) को उनके पिता जी साथ लेकर आए थे। पूजा यादव की रोल मॉडल जिले की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी स्तुति सिंह हैं। "एक बार हमारी मैम ने बताया कि स्तुति सिंह नंदिनीनगर की है और नेशनल खेल चुकी है। हमें भी इंटरनेशनल खेलना है। मेरे माँ और पिता जी ने पूरा सहयोग किया है। पिताजी कहते हैं कि तुम अगर मेहनत कर रही हो तो जो कुछ भी हो सकेगा खर्चा करेंगे और आगे बढ़ाएंगे। अगर डीएम साहब आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हम आगे जाएंगे। हम खेलेंगे और जितनी मेहनत हो सकेगी उतनी करेंगे।"

पूजा यादव अपने पिता के साथ

इन आयोजनों से गाँवों में समरसता आई है, लोगों ने बैरभाव भुला कर प्रतिभाग किया।
आशुतोष निरंजन, जिलाधिकारी

हर गाँव पंचायत में टेंट लगे और लोगों ने अपना बैर भाव भुला कर खेलों का मजा लिया। इन खेलों का सफल आयोजन कराने वाले जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन ने बताया, "इन आयोजनों से गाँवों में समरसता आई है, लोगों ने बैरभाव भुला कर प्रतिभाग किया।" वह एक पंचायत के बारे में बताते हैं, "एक जो प्रत्याशी प्रधानी के चुनाव में हार गया था, उसका बेटा ग्राम पंचायत स्तर पर जीत कर ब्लॉक स्तर पर पहुंचा। चूंकि पंचायत स्तर पर जीते खिलाड़ियों को ब्लॉक स्तर पर लेकर जाना प्रधानों की जिम्मेदारी थी। इसलिए ग्राम प्रधान अपने प्रतिद्वंदी के बेटे को लेकर ब्लॉक लेवर पर खिलाने गया। जब वह लड़का ब्लॉक स्तर पर जीता तो खुशी में ग्राम प्रधान के सीने से चिपट गया। तो इस तरह से नफरत की दीवारें भी टूटी हैं।"

फाइनल की रेस खत्म होने के बाद अपनी बहन आकांक्षा के साथ मैदान में खड़े उसके भाई आशीष सिंह कहते हैं, "मैंने ही इसका रजिस्ट्रेशन कराया था, मेरी पूरी कोशिश है कि मेरी बहन एथलीट बने। मेरा छोटा भाई भी बहन को प्रैक्टिस करवाता था। मैं चाहता हूं कि गाँवों से रूढ़िवादी परंपरा खत्म हो। मैं तो यहां तक चाहता हूं कि यह जितना हो सके अपनी मर्जी से जिए और अगर अपनी मर्जी से शादी भी करना चाहेगी तो मैं कराऊंगा।"

जिलास्तर पर चौथे स्थान पर रहने वाली अकांक्षा सिंह कहती हैं, "हम जब गाँव में दौड़ना शुरू किए तो उसके बाद बहुत सी लड़कियां दौड़ना शुरू कीं। हमारे साथ कई लड़कियां दौड़ने जाती हैं।"

"हर ग्राम पंचायत में एक खेल का मैदान हो गया है। लड़के और लड़कियों ने खूब भागीदारी की है। गाँवों में खेलकूद का माहौल बना है। हर पंचायत स्तर पर रेफरी थे। प्रधानों ने सपोर्ट किया है।" गोंडा के रूपैडीह ब्लॉक के कमरावा गाँव में तैनात अनुदेशक के रूप में कार्यरत सत्येन्द्र कुमार ने कहा।

    

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