अमिताभ ने भारत की पहली ऐसी आईटी कम्पनी खोली है जिसे आदिवासी ही चलाते हैं। ये जनसहयोग से बनी कम्पनी है, इसका नाम विलेज क्वेस्ट है।
भोपाल (मध्यप्रदेश)। मुकेश तोमर के लिए जाने माने कॉलेज से वकालत की पढ़ाई करना किसी सपने से कम नहीं था। मुकेश भोपाल के एक आदिवासी समुदाय का लड़का है, इनके पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। उसके लिए राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय भोपाल (एनएलआईयू) में दाखिला के लिए पर्याप्त पैसा नहीं था, पर ब्रिटेन से लौटे अमिताभ सोनी के प्रयासों से आज मुकेश वहां से बीएएलएलबी पहले साल की पढ़ाई कर रहा है।
बाहरवीं की परीक्षा 88 प्रतिशत से पास करने वाले मुकेश (20 वर्ष) का कहना है, “गांव के लोगों में क्षमताएं तो बहुत होती हैं, पर हमे मौके नहीं मिल पाते। हम लोग मेहनत करने से पीछे नहीं हटते हैं, हमारी मेहनत, हमारे सीनियर्स और अमिताभ सर का सहयोग मिला जिसकी वजह से आज मैं अपनी मनपसंद पढ़ाई कर रहा हूँ।”
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मुकेश की तरह इस पंचायत के 18 परिवार के बच्चों का अमिताभ सोनी ने अपने सहयोगी साथियों की मदद से अच्छे स्कूलों में दाखिला कराया है। अमिताभ ने भारत की पहली ऐसी आईटी कम्पनी खोली है जिसे आदिवासी ही चलाते हैं। ये जनसहयोग से बनी कम्पनी है, इसका नाम विलेज क्वेस्ट है। इसकी शुरुआत गांव में इसलिए की गयी जिससे गांव और शहर के बीच का गैप खत्म किया जा सके। यहां के बच्चे गांव में आने वाले हर किसी से अभिवादन में जयहिंद कहते हैं।
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अमिताभ सोनी का बचपन भोपाल और इंदौर में बीता है। ब्रिटिश सरकार के सोशल वेलफेयर बोर्ड लंदन में 10 साल काम करने के बाद जब इनका मन वहां नहीं लगा तो ये तीन साल पहले भारत लौट आए। भोपाल की एक पंचायत भानपुर केकड़िया में अमिताभ आदिवासियों को स्वावलम्बी बनाने में जुटे हुए हैं। ये पंचायत मध्यप्रदेश के भोपाल शहर से 25 किलोमीटर दूर है। अमिताभ चाहते थे इस गांव का युवा रोजागर के लिए शहरों को पलायन न करें, इसके लिए इन्होने हर सम्भव प्रयास इस पंचायत के लिए किए हैं।
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“कॉलेज के समय भी मैं आदिवासियों के लिए थोड़ा बहुत काम करता था। मैं जानत था ये सीधे-सच्चे ईमानदार और मेहनती लोग होते हैं। इन्हें अगर कोई रास्ता दिखाने वाला मिल जाए तो ये बहुत आगे बढ़ सकते हैं, इसलिए मैंने भोपाल की सबसे बड़ी आदिवासी पंचायत में काम करना शुरू किया।” ये कहना है अमिताभ सोनी (42 वर्ष) का। अमिताभ ने दो साल पहले अभेद्य नाम की एक गैर सरकारी संस्था खोली, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि आदिवासियों की जिन्दगी कैसे बेहतर हो सके, इन्हें समाज की मुख्य धारा से कैसे जोड़ा जाए, यहां के बच्चों को कैसे बेहतर शिक्षा मिल सके।
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अभेद्य संस्था में काम कर रहीं स्मृति शर्मा का कहना है, “जब हमने काम शुरू किया था तब यहां ग्राम सभाएं नहीं होती थीं, पंचायत में समितियों का निर्माण नहीं हुआ था, लोग खान-पान और साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते थे, बच्चे मन हुआ तो स्कूल गये नहीं तो नहीं गये।”
उनका कहना है, “जबसे यहां काम करना शुरू किया है, तबसे सभी समितियां बन गयी हैं, ग्राम सभा और समितियों की बैठक लगातार होती है। पंचायत का काम पंचायत स्तर पर ही हो रहा है। आईटी कम्पनी में प्रोग्रामिंग और डेटा इंट्री का काम अभी चल रहा है, डेटा इंट्री का जो काम करवाते हैं वो बदले में पैसे भी देते हैं।”
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अमिताभ ब्रिटेन तो जरूर गये थे पर उनका मन वहां नहीं लगा इसलिए अपने शहर वापस आ गये। आदिवासियों के लिए ही काम क्यों किया इस सवाल के जबाब में ये कहते हैं, “बाकी समुदाय के लोग अपने लिए कुछ न कुछ कर सकते हैं पर आदिवासियों के लिए खुद के लिए कुछ करना मुश्किल था, इसलिए इनके साथ काम करने की शुरुआत की। शुरुआत में यहाँ के बच्चों को बाहर के शिक्षकों की मदद से पढ़ाने की शुरुआत की।” वो आगे बताते हैं, “ये हमसे ज्यादा अनुभवी हैं, हम हर दिन इनसे सीखते हैं। ये सिर्फ विज्ञान और तकनीक से पीछें हैं, जिस पर हम ख़ास ध्यान दे रहे हैं। यहां की आठ लड़कियां अभी पंजाब कार्फ बाल खेलने जा रही हैं।”
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भारत की पहली आदिवासी आईटी कम्पनी जिसे आदिवासी चलाते हैं
इस गाँव में अमिताभ ने पहली आदिवासी कम्पनी खोली जिसे यहां के पांच आदिवासी युवा चलाते हैं। इस कम्पनी के सीईओ कन्हैया निंगवाल (23 वर्ष) बताते हैं, “मैंने बीई की पढ़ाई की है, कहीं बाहर नौकरी मिलती या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी। मैंने अपने गांव में हमेशा सभी को मेहनत मजदूरी करते देखा है, इसी से हमारी रोजी रोटी चलती है। अब मुझे अपने गांव की इस कम्पनी में काम करके खुशी मिल रही है कि मैं अपने लोगों के लिए काम कर पा रहा हूँ।”
वो आगे बताते हैं, “यहां बच्चों को माइक्रोसाफ्ट ऑफिस, पेंटिंग, टाइपिंग जैसी कई चीजें सिखायी जाती हैं। हम अलग-अलग लोगों के छोटे-मोटे काम जैसे डेटा इंट्री का भी काम करते हैं जिससे हमारा खर्चा चल सके।”
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यहाँ के सरकारी विद्यालयों में कान्वेंट जैसी सुविधाएं
इस पंचायत में बनी समितिया अब पंचायत के हर काम में अपनी सहभागिता दिखाती है। स्कूल में साफ़-सफाई, मिड डे मील, सौ प्रतिशत उपस्थिति, अच्छी शिक्षा जैसे कामों में ध्यान दिया, जिससे बच्चों की उपस्थिति बढ़ गयी। कुछ सहयोगियों की मदद से अमिताभ ने इस स्कूल में बच्चों के लिए फर्नीचर, बैग, जूते, स्वेटर, काॅपी- किताबें जैसी सुविधाएं मुहैया कराईं। इन्हें कम्प्यूटर लैब भी करने को मिलती है। अमिताभ का कहना है, “हम अपने दोस्तों और सहयोगी संस्थाओं से जितना सम्भव होता है यहां के लोगों की मदद करते हैं।”
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ऐसे चलता है अमिताभ का खर्चा
अमिताभ का कहना है, “यहां काम करना मेरा शौक है, गांव और शहर के बीच का गैप हमे खत्म करना है। हमारे कुछ मित्र और संस्थाएं हमें हमारे काम को करने में मदद करती हैं, जिससे कम इस पंचायत में हर दिन 40 मिनट की दूरी अपनी गाड़ी से तय करके आते हैं।