नैनो यूरिया लॉन्च करते हुए इफको ने कहा कि भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश है। इफको के एमडी ने इस उत्पाद किसानों के लिए सौगात बताया। बताया गया ये आधा लीटर (500मिली) का ये डिब्बा वही काम करेगा जो 45 किलो वाली यूरिया की बोरी करती थी।
किसी भी पौधे या फसल की बढ़ोतरी के लिए नाइट्रोजन की जरुरत होती है। मौजूदा खेती में यूरिया, नाइट्रोजन का सबसे बड़ा स्त्रोत है। लेकिन जितनी यूरिया का खेतों में प्रयोग किया जाता है उसका मुश्किल से 30 से 40 फीसदी भाग पौधों के काम आता है बाकी हवा, मिट्टी में बेकार चला जाता है। जो हवा में जाता है वो पर्यावरण के लिए हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों का कारण बनता है और जो मिट्टी में जाता है उससे मिट्टी अम्लीय होती और धरती के अंदर (भूमिगत) पानी दूषित होता है। लेकिन दावा किया गया है कि नैनो यूरिया इन सब खामियों को काफी दूर कर सकता है।
इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने 31 मई को जिस नैनो यूरिया तरल को किसानों को समर्पित किया, वो जिस प्रयोगशाला में बनाई गई है और जो उसे बनाने वाला है वो एक किसान का बेटा है। इफको की नैनो यूरिया तरल के पीछे डॉ. रमेश रालिया का शोध और मेहनत है।
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After trial and tested across, nano Nitrogen has been translated to farmers as #NanoUrea #IFFCONanoUrea. @IFFCO_NBRC https://t.co/C7cmy5d581
— Dr. Ramesh Raliya (@rameshraliya) May 31, 2021
डॉ. रमेश रालिया इफको की गुजरात के गांधीनगर के कलोल में स्थित रिसर्च सेंटर “नैनो जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र” के रिसर्च एंड डेवलपमेंट हेड और सेंटर के जनरल मैनेजर हैं।
मूलरुप से राजस्थान में जोधपुर जिले के गांव खारिया खंगार से रहने वाले डॉ. रालिया के मुताबिक उनके माता-पिता गांव में ही रहते और खेती करते हैं। किसान के बेटे डॉ रमेश रालिया के नाम नैनो टेक्नॉलोजी में फिलहाल 15 पेटेंट हैं। इफको का नैनो यूरिया तरल उसमें से एक है।
गांव कनेक्शन ने डॉ रमेश रलिया ने नैनो यूरिया तरल को लेकर लंबी बात की। जिसमें उन्होंने इस उत्पाद के किसानों, देश और पर्यावरण के लिए संदर्भ में फायदे गिनाए।
“साधारण यूरिया जो हम प्रयोग करते हैं पौधे केवल उसका 30-40 फीसदी ही उपयोग ले पाते हैं। यूरिया का बहुत बड़ा भाग हवा या जमीन में चला जाता है। जबकि नैनो यूरिया का 80 फीसदी उपयोग पौधे कर पाते हैं। ये इसका सबसे बड़ा फर्क है।” डॉ. रालिया बताते हैं।
नैनो यूरिया और साधारण यरिया के रासायनिक फर्क को वो साधारण शब्दों में बताते हैं, ” साधारण यूरिया को पौधा आयन (Lon) के रुप में लेता है नैनो यूरिया को पार्टिकल के रुप में होता है। पार्टिकल आयनों का एक समूह होता है। आयन रिएक्टिवेट (रयासन प्रतिक्रिया की अवस्था- जिसके रासायनिक गुण अन्य पदार्थों से मिलने परिवर्तित हो जाएं) की स्थिति होती है, जबकि पार्टिकल (कण) एक स्टैबल (स्थिर) अवस्था होती है। स्थिर रुप में होने के चलते कण पौधे के अंदर पहुंचकर नाइट्रोजन छोड़ते हैं, जिससे नाइट्रोजन को पौधा बहुत अच्छे तरीके ग्रहण कर पाते हैं।”
साधारण यूरिया सफेद दानों के रुप में होती है। जिनका फसल छिड़काव किया जाता है। ये दानें हाइड्रोलाइज (गलते) होते हैं फिर पौधे उसे आयन के रुप में ग्रहण करते हैं। जबकि नैनो यूरिया तरल के कण (नैनोपार्टिकल) एक मीटर के एक अरबवें हिस्सा के बराबर होते हैं जिससे वो पौधे में सीधे प्रवेश कर जाते हैं।
डॉ. रालिया बताते हैं कि विदेशों में कृषि क्षेत्र में बहुत सारे नैनो प्रोडक्ट लॉन्च हुए हैं लेकिन तरल यूरिया के रुप में ये दुनिया का पहला है।
दुनिया में ‛नैनो टेक्नोलॉजी’के जाने माने साइंटिस्ट्स में शुमार डॉ रालिया नैनो यूरिया और इफको के साथ अपने सफर के बारे में वो बताते हैं,
“मेरे पास कुल 15 पेंटेट हैं, जिसने नैनो यूरिया तरल एक है। मैं साल 2015 से इसके लिए प्रयास कर रहा था। 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी को खत भी मिला था। जिसके बाद इफको से वार्ता शुरु हुई और 2019 में मैं इफको के साथ जुड़ गया।”
वो आगे बताते हैं, ” गुजरात में इसके लिए विशेष नैनों रिसर्च सेंटर बनाया गया है, जिसका मैं शोध और विकास प्रमुख हूं। नवंबर 2019 में इस उत्पाद का भारत में देशव्यापी प्ररिक्षण शुरु किया गया था।”
इफको के मुताबिक 2 साल से ज्यादा इसका खेतों में परीक्षण किया गया है।
वो बताते हैं, “देश के 30 एग्रो क्लाइमेटिक जोन के 11000 किसानों के खेतों में 94 फसलों में इसका 2 साल तक ट्रायल चला है। भारतीय कृषि अनुंसधान परिषद (ICAR) के 20 से ज्यादा संस्थानों और कृषि विश्वविद्यायों में इसका परीक्षण हुआ है।”
इफको ने लॉन्च किया विश्व का पहला नैनो यूरिया, आधा लीटर की बोतल करेगी 1 बोरी का काम, जानिए 10 बड़ी बातें @IFFCO_PR @drusawasthi @nstomar @AgriGoI @PMOIndia #IFFCONanoUrea https://t.co/I8PhaBZHIS
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जलवायु परिवर्तन,बढ़ते प्रदूषण और खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए इस उत्पाद पर लोगों की निगाहे टिकी हैं।
डॉ. रालिया कहते हैं, “पर्यावरण के संदर्भ में बात करें तो यूरिया का बहुत बड़ा भाग नाइट्रस ऑक्साइड के रुप में ग्रीन हाउस गैस के रुप में जाता है। वो नैनो यूरिया के रुप में हम बचा सकते हैं। यूरिया के प्रयोग से हमारी मिट्टी में पीएच संतुलन बिगड़ जाता है। आमोनिया के चलते जमीन अम्लीय (Acidic) हो जाती है, इससे जो आवश्यक पोषत तत्व पौधे को चाहिए वो ग्राहण नहीं कर पाता है। जबकि नैनो यूरिया का मिट्टी के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता है।”
माता-पिता दोनों किसान
अमेरिका की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक रह चुके डॉ. रालिया अमेरिका के ग्रीन कार्डधारक हैं, वहां उनकी खुद की कंपनी (एंटरप्रेन्योर) और स्टार्ट्अप है। लेकिन उनका मन भारत में बसता है। रालिया के माता की मां भंवरी देवी और बाऊजी पारसराम दोनों किसान हैं। गाँव में आज भी पारम्परिक विरासत के रूप में खेती करते-सहेजते हैं।
गांव कनेक्शन ने साल 2018 में उनके कार्य और जीवन को लेकर विस्तृत लेख प्रकाशित किया था, उस वक्त वो अमेरिका में रह रहे थे। रॉलिया ने बताया था, “मां 5वीं तक पढ़ी हैं। बाऊजी इंटर पढ़ने के बाद राजस्थान रोडवेज में कुछ महीनों तक नौकरी पर रहे। बाद में दादी जी के कहने पर खेड़ी-बाड़ी से जुड़ गए। आज मां-बाऊजी दोनों कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं। मां चाहती हैं कि उनकी तरह ही खेतों में काम करने वाले सभी कृषक कंप्यूटर सीखें, जिससे वो देश दुनिया से सीधे जुड़ सकें।”
रालिया आगे बताते हैं, “मन में यही सपना रहता था कि किसान और खेतों में जान झोंकने वाले लोगों के जीवनस्तर में सुधार कैसे लाया जाए। सही मायनों में मेरा कृषि वैज्ञानिक होना तब कारगर साबित हो पाएगा, जब मेरे ज्ञान का फायदा किसानों तक पहुंचेगा और उनके जीवनस्तर में उत्थान आए।”
15 पेटेंट और सैकड़ों शोधपत्रों वाले डॉ. रालिया को पहली बार साइकिल तब मिली थी जब वो बीएससी कर रहे थे।
अपने बचपन और अभावों की बात करते हुए उन्होंने बताया था, “साल 2001 में कक्षा 10वीं तक घर से करीब पांच किलोमीटर दूर गाँव के सरकारी माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने पैदल जाया करता। फिर साल 2003 में विज्ञान विषय से 12वीं गाँव रतकुडिया के सरकारी स्कूल से पास की। साइकल भी पहली बार कॉलेज में आने पर बीएससी फर्स्ट ईयर के दौरान मिली। पहली बार कंप्यूटर भी बीएससी सेकंड ईयर में प्रयोग किया। यह सब आज इसलिए बता रहा हूं कि इस धरती पर जीवन को सार्थक बनाने की सभी जरूरी सुविधाएं आप के पास पहले से मौजूद हों, जरूरी नहीं है।”
साल 2013 उनके जीवन में बदलाव लेकर आया
साल 2009 में जोधपुर स्थित आईसीएआर के केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधआन संस्थान (काजरी) में विश्व बैंक द्वारा कृषि नैनो टेक्नोलाजी के पहले प्रोजेक्ट में रिसर्च एसोसिएट के रूप में उनका चयन हुआ था। पीएचडी के दौरान ही उन्हें अमेरिका से बुलावा आ गया था।
डॉ. रलिया बताते हैं,”पीएचडी के दौरान वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, अमेरिका से वहां के डिपार्टमेंट हेड ने मेरी काजरी की लैब विजिट की, हमारा रिसर्च वर्क देखा। उनके साथ खाना खाते वक़्त रिसर्च की बातें हुईं। जब उन्हें गेस्ट हाउस तक छोड़ने गया तो उन्होंने कहा कि यदि तुम वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ज्वाइन करना चाहो तो मैं तुम्हें पोजीशन ऑफर कर सकता हूं। लेकिन मैंने पीएचडी पूरी करने एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल की परीक्षा देकर जाने का निर्णय लिया, जिसे वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ने स्वीकार कर लिया।”
अमेरिका में काम करते हुए उन्होंने 60 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधियों के साथ नैनो तकनीक पर काम किया। फिलहाल वो भारत में हैं और नैनो तरल यूरिया के जरिए खेती में नई क्रांति का जरिया बने हैं।
किसानों को ये नैनो यूरिया तरल 15 जून के बाद उपलब्ध होगी। वो आगे बताते हैं, “एक लीटर पानी में 2 मिलीलीटर नैनो यूरिया तरल मिलाकर पौधे के जीवन में सिर्फ दो बार छिड़काव करना है।”