बेटी की बीमारी ने बना दिया भिखारी, फिर इस तरह बदली ज़िंदगी

Neetu SinghNeetu Singh   3 March 2018 5:47 PM GMT

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बेटी की बीमारी ने बना दिया भिखारी, फिर इस तरह बदली ज़िंदगीये ख़बर आप को प्रेरित करेगी..

कभी खुद का बिजनेस करने वाले रोहित सक्सेना को बेटी के ईलाज ने कर्जदार बना दिया। इन्होंने बेटी के इलाज में सब कुछ गंवा दिया और अपनी बेटी को भी नहीं बचा सके। लखनऊ काम की तलाश में आए, जब काम नहीं मिला तो मजबूरी में भीख मांगने लगे। शरद पटेल के प्रयासों से ये पिछले दो वर्षों से सर्दियों में रैन बसेरा और गर्मियों के मौसम में पियाऊ का काम कर रहे हैं।

“नवम्बर की एक शाम उसने मुझसे खाना मंगाया खाने के कुछ देर बाद उसके सीने में दर्द हुआ और वो हमे छोड़कर चली गयी।” ये बताते हुए रोहित (42 वर्ष) की आवाज़ लड़खड़ा रही थी चेहरे पर उदासी थी, उन्होंने बताया “जब वो चार साल की थी तबसे स्कूल जा रही थी, उसे हार्ट की बीमारी थी ये बात हमें बहुत देर से पता चली। बहुत इलाज कराया, लाखों रुपए का कर्जा हो गया, कपड़े की दुकान बंद हो गयी, घर गिरवी पर रख दिया वो भी चला गया।”

रोहित बताते हैं, “रातें भले ही फुठपाथ पर काटनी पड़ती हो लेकिन अब काम करके शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है। हालात भले ही न सुधरे हों लेकिन भीख मांगने से तो छुटकारा मिल गया है। हमें भी सम्मान से जीने की आदत है लेकिन क्या करें किस्मत जो न कराए वो कम है।”

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रोहित सक्सेना

रोहित सक्सेना उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं। बेटी की इलाज में जब इन्होंने सब कुछ गंवा दिया तो जिले में रहकर ही की तलाश करने लगे बहुत ढूंढने के बाद भी काम नहीं मिला जिससे परिवार का खर्चा चला सकें। जिनसे कर्ज लिया था वो भी तकादा करने लगे। जिसे इन्होंने अपना मकान बेचकर चुकाया।रोहित, “हमारी जिन्दगी में सब कुछ अच्छा चल रहा था, बेटी की इलाज में हम कर्जदार बने और सब कुछ हमने गंवा दिया। काम न मिलने की वजह से खर्चा चलाना मुश्किल होने लगा। पारवारिक कलह बढ़ने लगी।”

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बहुत प्रयासों के बाद इन्हें मुंशी की नौकरी सीतापुर जिले में पांच हजार रुपए में मिली। बढ़ती मंहगाई में इतनी कमाई से खर्च चलाना मुश्किल था, दूसरे शहर जाकर अच्छी कमाई करूंगा धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा ये सोचकर रोहित लखनऊ आ गये। जब कई दिन काम नहीं मिला तो मन्दिर पर बैठकर खाना खाने लगे।रोहित उन दिनों के बारे में बताते हैं, “हमेशा मेहनत की है तब खाया है, आज जब हम फुटपाथ पर सोते हैं तो पुलिस की लाठियां खानी पड़ती है। मन्दिर में सर झुकाकर खाना खा कर घंटों एकांत बैठकर यही सोचते थे कि आज हालातों ने मुझे कहां खड़ा कर दिया है।”

ये वो छत है जहां इनकी रातें कटती हैं

‘भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान’ को चलाने वाले शरद पटेल ने इन भिखारियों के साथ तीन साल वक़्त गुजारा है। इनके द्वारा तीन हजार भिखारियों के साथ एक शोध में निकल कर आया है कि लखनऊ में 38 फीसदी भिखारी सड़क पर रात काटते हैं। इनमें से 31 फीसदी भिखारियों के पास झोपड़ी है और 18 फीसद कच्चे मकान तथा आठ फीसदी के पास पक्के घर हैं। राजधानी में जो लोग भीख मांग रहे हैं उनमे 88 फीसदी भिखारी उत्तर प्रदेश के हैं, जबकि 11 फीसदी भिखारी अन्य राज्यों से हैं।

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रोहित आज काम भले ही कर रहे हों पर इतना ज्यादा नहीं कमाते हैं कि ये एक किराये का कमरा ले सकें। आज भी इनकी रातें फुठपाथ पर ही गुजरती हैं। रोहित बताते हैं, “रातें भले ही फुठपाथ पर काटनी पड़ती हो लेकिन अब काम करके शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है। हालात भले ही न सुधरे हों लेकिन भीख मांगने से तो छुटकारा मिल गया है। हमें भी सम्मान से जीने की आदत है लेकिन क्या करें किस्मत जो न कराए वो कम है।” रोहित ने लखनऊ के भिखारियों के साथ समय गुजारा है इन्हें उनकी तकलीफें पता हैं आज ये खुद ‘भिक्षावृत्ति मुक्ति अभियान’ से जुड़ गये हैं।

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