क्या गाँवों को नज़रअंदाज़ करना एफएमसीजी कंपनियों को महंगा पड़ रहा है ?

अमित सिंहअमित सिंह   10 July 2016 5:30 AM GMT

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क्या गाँवों को नज़रअंदाज़ करना एफएमसीजी कंपनियों को महंगा पड़ रहा है ?gaonconnection

लखनऊ। बीते एक दशक में सिर्फ़ देश की दशा, दिशा और अर्थव्यवस्था का ही परिदृश्य नहीं बदला है, हमारे गाँव भी बदल रहे हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के बीते कुछ दिनों पहले आए एक सर्वेक्षण में दावा किया गया था कि हिंदुस्तान के गाँवों की हालत पहले से बेहतर हुई है। गाँवों के लोग अब उन चीजों का इस्तेमाल करने लगे हैं, जो अभी तक सिर्फ शहरों के लोग किया करते थे। अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की सुबह भी नीम के दातुन की बजाय ब्रांडेड पेस्ट और ब्रश से होती है। वो भी ब्रांडेड साबुन से नहाते हैं, अच्छी कंपनियों के डियोड्रेंट और परफ्यूम लगाते हैं। नारियल और सरसों के तेल की जगह अब खुश्बूदार तेल ने ले ली है।

क्या कहते हैं ऐड गुरु?

ऐड गुरु दीलिप चेरियन कहते हैं, ''किसी भी एफ़एमसीजी कंपनी के लिए ये मुमकिन नहीं है कि वो गाँवों को नज़रअंदाज़ कर सकें। मुनाफ़ा कमाने के लिए गाँवों में भी बड़े बाज़ार तलाशने की ज़रूरत है। किसी भी कंपनी के लिए शहरी बाज़ारों में दाखिल होना असान है लेकिन गाँवों के बाज़ारों में उपस्थिति दर्ज़ कराना बड़ी मुश्किल चीज़ है।''

शहरों की तरह गाँवों में भी ग्राहक बढ़ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में खर्च करने का तरीका शहरों जैसा हो रहा है। शायद यही वजह है कि देश की हर बड़ी एफएमसीजी कंपनी अब गाँव के लोगों को ध्यान में रखकर अपने प्रोडक्ट और विज्ञापन डिज़ाइन करा रही है। जिन कंपनियों ने गाँवों को ध्यान में रखकर अपने प्रोडक्ट डिज़ाइन नहीं किए हैं उनके मुनाफ़े में तेज़ी से गिरावट आई है।

मुंबई यूनिवर्सिटी की पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर और देश की बड़ी मीडिया रिसर्चर अनुष्का कुलकर्णी कहती हैं, ''पतंजलि और देश की बाकी देसी कंपनियों का मुनाफ़ा इसलिए बढ़ा है क्योंकि रूरल इंडिया में इनकी पहुंच बहुत अच्छी है। गाँवों की एक ख़ास बात ये भी है कि जिस उत्पाद ने एक बार लोगों के बीच अपनी पहचान स्थापित कर ली फिर उसकी बिक्री तेज़ी से बढ़ती है।''

गाँवों से मुंह मोड़ना महंगा पड़ा

स्विडन की रेटिंग एजेंसी क्रेडिट सुइस की मानें तो आने वाले वक्त में पतंजलि जैसी आर्युवैदिक कंपनियां भी देश की दिग्गज एफएमसीजी कंपनियों मसलन डाबर, मेरिको, गोदरेद, हिंदुस्तान यूनिलीवर को मुनाफ़े के मामले में मात दे सकती हैं, क्योंकि पतंजलि और बाक़ी देसी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों के उत्पादों की पब्लिसीटी टेलीविज़न पर ना हो कर आम लोगों की बातचीत से होती है। एक बार इनकी ब्रैंड वैल्यू स्थापित होने के बाद इनकी बिक्री लगातार बनी रहती है। इसके अलावा ये देसी कंपनियां उन उत्पादों को बनाती हैं जिन्हें बाक़ी बड़ी एफएमसीजी कंपनियां ना तो बनाती हैं और ना ही उनकी बिक्री करती हैं।

महज़ दस महीनों में ही यानि जनवरी तक पतंजलि ने 3,267 करोड़ रुपये की बिक्री की। इस बिक्री का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण इलाकों से भी आता है। क्रेडिट सुइस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पतंजलि की सालाना आय 5 हज़ार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुकी है जो कि देश की बाक़ी बड़ी एफ़एमसीजी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों से थोड़ा ही कम है। 

ऐड गुरु दीलिप चेरियन के मुताबिक़, ''पतंजलि और देसी उत्पाद बनाने वाली बाक़ी कंपनियों के लिए मुनाफ़े वाली स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रहने वाली है। उनका मुनाफ़ा भी घटेगा। किसी भी कंपनी का मुनाफ़ा उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अभी पतंजलि के उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर ज्यादा सवाल नहीं हुए हैं लेकिन अगर उत्पाद में कोई दिक्कत आई तो इनका मुनाफ़ा तेज़ी से गिरेगा।'' 

5 सालों में कितना बदला एफएमसीजी बाज़ार

साबुन, तेल, शैंपू और कॉस्मैटिक उत्पाद बनाने वाली कंपनियों की नज़र हमेशा से शहरी बाज़ारों की ओर रही है, लेकिन अब उन्हें भी ग्रामीण बाज़ारों की अहमियत समझ में आने लगी है। इसलिए अब ज्यादातर बड़ी एफएमसीजी कंपनियां गाँवों को ज़हन में रखकर अपने उत्पाद पेश कर रही हैं, क्योंकि उनकी टक्कर देश में बड़े स्तर पर देसी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों से ही जिनपर देसी होने का लेबल लगा है।

ऐड गुरु दिलीप चेरियन के मुताबिक़,''शहरों में बिक्री के मौक़े तलाशना आसान है लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये मुमकिन नहीं होता है। पहली वजह तो ये है कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग नए उत्पादों के बारे में ज्यादा जागरुक नहीं होते दूसरी वजह है किसी भी उत्पाद पर अचानक विश्वास ना करना। अब तक किसी भी उत्पाद की बिक्री के लिए ब्रांड एम्बैसेडर का होना काफ़ी था लेकिन आगे से ऐसा नहीं होगा गाँव हो या शहर लोग उत्पाद तभी खरीदेंगे जब उन्हें उनपर विश्वास होगा।'' 

गाँवों के लिए बेहतर बिज़नेस मॉडल की ज़रूरत

मुंबई यूनिवर्सिटी की पत्रकारिता विभाग में प्रोफ़ेसर और देश की बड़ी मीडिया रिसर्चर अनुष्का कुलकर्णी के मुताबिक़,''एफएमसीजी कंपनियों को अपनी रणनीति बदली होगी। गाँवों को ध्यान में रखकर विज्ञापन और उत्पाद बनाने होंगे। शहरों के लोग अपने ब्रांड और उत्पादों को लेकर जल्द समझौता नहीं करते हैं लेकिन गाँवों में ऐसा नहीं है इसलिए एफएमसीजी कंपनियों के लिए गाँव के बाज़ारों में ज्यादा मौक़े हैं।''

बिक्री और मुनाफ़े के लिए कीमतें भी अहम

विज्ञापन जगत के जानकारों की मानें तो उत्पाद की कीमतें भी काफ़ी हद तक बिक्री और मुनाफ़े पर असर डालती हैं,''पतंजलि और देसी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों कि बिक्री इसलिए भी हो रही है क्योंकि उनके उत्पादों की कीमतें भी कम हैं। बाक़ी एफ़एमसीजी कंपनियों को भी अपने उत्पादों की कीमतें घटानी होंगी।'' 

 

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