लखनऊ। लखनऊ बाइकरनी ग्रुप ने एक सप्ताह चलने वाले दान उत्सव सप्ताह के आख़िरी दिन झुग्गी-झोपड़ियों और कुष्ठ आश्रम में जाकर तोहफे देकर खुशियाँ बाटीं। इन फीमेल्स बाइकर्स ने एक सप्ताह से ज्यादा अपने आस-पास जरूरत की चीजें एकत्रित करके इन बस्ती के बच्चों को खिलौने और इनके परिवार को जरूरत का सामान देकर दान उत्सव के उद्देश्य को पूरा किया।
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लखनऊ आशियाना में रहने वाली फीमेल बाइकरनी देविना मैनी (26 वर्ष) ने बताया, “बाइक चलाना तो हमारा एक शौक है, पर हम समय-समय पर इस तरह के होने वाले खास उत्सवों में में हम अपने इस शौक को और अच्छे से पूरा कर पाते हैं। दान उत्सव सप्ताह में 15 दिन पहले ही अपने मुहल्ले में एक डिब्बा रख दिया जिसमे लोगों से गुजारिश की थी, आप अपने घर की गैर जरूरी चीजें इसमे डालें।” वो आगे बताती हैं, “आसपास के लोगों की सहयोग से काफी सारा सामान इकट्ठा कर लिया और जरूरतमंद लोगों तक हमारी टीम ने ये सामान पहुंचाया ये हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात रही, हम अपने शौक को जब इस तरह पूरा करते हैं तो एक अलग तरह की खुशी मिलती हैं।” देविना मैनी की तरह इस ग्रुप की हर बाइकर्स ने अपने-अपने स्तर पर सामान इकट्ठा किया और एक साथ बस्ती और कुष्ठ आश्रम में बाँटने का काम किया।
हर वर्ष महात्मा गाँधी की जयंती से एक सप्ताह तक दान उत्सव (ज्वाय आफ़ गिविंग वीक) का सप्ताह पूरे भारत में मनाया जाता है। वैसे तो दान देने की परंपरा हमारे देश में प्राचीन काल से है, लेकिन इसे एक उत्सव की शक्ल 2009 में दी गयी। दान उत्सव के वालंटियर राहुल अग्रवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया कि वेंकट, आरती और राजन नाम के इन तीन लोगों ने इस दान उत्सव की शुरुवात सबसे पहले की थी, जिसके बाद आज पूरे भारत में लगभग 150 शहरों में दो अक्टूबर से आठ अक्टूबर तक इसे बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
इस एक सप्ताह दान उत्सव का कोई भी हिस्सा बन सकता है। जितना जिसकी सुविधा हो अपनी सहूलियत से दान देकर जरूरतमंद लोगों के साथ वक़्त बिताकर उनके साथ खुशियाँ बाँट सकता हैं। उत्तरप्रदेश बाइकरनी ग्रुप की प्रमुख वर्तिका जैन ने बताया, “हमारे ग्रुप में लगभग 10 फीमेल बाइकर्स है जिन्हें ‘बाइकरनी लखनऊ चैप्टर’ में एक मंच पर लाने की कोशिश की है, जब भी इस तरह के कोई खास उत्सव होते हैं, हमारी कोशिश रहती है ये ग्रुप उस गतिविधि का हिस्सा बने।” वो आगे बताती हैं, “इससे दो तरह के सन्देश जाते हैं एक तो आप जरूरतमंद लोगों के बीच जाकर उन्हें जरूरत का सामान देकर खुशियाँ बांटते हो, दूसरा जब ये फीमेल बाइकर्स खुद गाड़ी चलाकर जाते हैं तो एक सन्देश जाता है कि लड़कियां भी बुलेट चला लेती हैं और एक सामाजिक मिशन को अपने शौक के द्वारा खुशियाँ बाँट रही हैं।”
‘ज्वाय आफ़ गिविंग वीक’ के आख़िरी दिन आठ अक्टूबर को इस बाइकरनी ग्रुप ने लखनऊ की झुग्गी-झोपड़ी बस्ती और कुष्ठ आश्रम में जाकर जो भी सामन एकत्रित किया था, उसे उनमे बांटकर उन्हें खुशियां दी। इस सप्ताह का उद्देश्य इनके इस प्रयास से सार्थक हुआ।
बच्चे खिलौने पाकर हुए खुश
इन बच्चों को कभी कोई पूंछने नहीं जाता है। आज जब इस ग्रुप ने इन्हें खिलौने दिए तो इनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अलीगंज में रहने वाली बाइकर्स कृतिका सिंह (33 वर्ष) ने बताया, “हमारे घर में गैर जरूरी बहुत से सामान और खिलौने पड़े रहते हैं, इस दान उत्सव पर ही क्यों जब भी आपको मौका मिले आप जरूरतमंदों के बच्चों को बांटों आपको अलग तरह की खुशी मिलेगी। अगर आपका गैरजरूरी सामान किसी के चेहरे पर खुशियाँ लायें इससे बड़ा कोई दान नहीं हो सकता।” कृतिका ने आसपड़ोस से और अपने ग्रुप में पैसे जोड़कर इन बच्चों को कई तरह के खिलौने, और खाने का सामान दिया। ये बच्चे खिलौने पाकर बहुत खुश हुए।
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छोटे से प्रयास से बांटी खुशी
इस ग्रुप ने अलग से कोई मेहनत नहीं की थी। इन्होने अपने आसपास, और जो जहाँ काम करता है उन आफिस के बाहर, स्कूल में एक कागज का गत्ता रखा था। घूम-घूमकर सभी को इसमे अपनी गैर जरूरी चीजों को डालने के लिए बोला था। बाइकर्स रितम्भरा मिश्रा (25 वर्ष) बताती है, “मै बच्चों को कोचिंग पढ़ाती हूँ, वहन पर ये बाक्स एक बाक्स रखा था और एक मन्दिर के पास, आने जाने वाले लोगों से कहा था कि आप इसमे अपनी मर्जी से जो चाहें दान कर सकते हैं, इसे हम जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाएंगे।” रितम्भरा की तरह ही सभी बाइकर्स ने अपने-अपने स्तर पर जितना सम्भव हो पाया प्रयास किया। इनके छोटे से प्रयास से कई चेहरों पर खुशी आयी, दान उत्सव सप्ताह मनाने का मकसद ऐसे ही पूरा किया जा सकता है।
महिलाओं को दिए सेनेटरी पैड, बताए फायदे
गरीब बस्ती की महिलाएं और लड़कियों को सेनेटरी पैड इस्तेमाल करने के फायदे नहीं पता होते हैं जिसकी वजह से वो गन्दा कपड़ा इस्तेमाल करती हैं और उन्हें कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। बाइकर्स आयशा अमीन ने कहा, “सेनेटरी पैड इन्हें देना ही हमारा मकसद नहीं था, ये इसके इस्तेमाल के फायदे भी जाने जिससे आने वाले समय में ये खुद इस्तेमाल कर सकें और कई तरह की बीमारियों से बच सकें। मैंने अपने कालेज में एक डिब्बा रखा था, हर शाम वापस लेकर घर जाती थी, अपने कालेज फ्रेंड से कहा था जो भी सम्भव हो इसमे डालें और लोगों के साथ अपनी खुशियाँ बांटे।” वो आगे बताती हैं, “हमे बहुत अच्छा सामान इकट्ठा करने में सहयोग मिला जिससे हम इन बच्चों के बीच और आश्रम में लोगों तक जरूरी सामान पहुंचा सके।”
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