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जिसके लिए इटली और फ्रांस भी कर रहे हैं माथापच्ची, भारत के इस गाँव ने वो कर दिखाया

Global warming

लखनऊ। ग्लोबल वार्मिंग इस समय दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। पेरिस जलवायु समझौते पर पूरी दुनिया में मतभेद चल रहे हैं। इटली, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश जहां ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करने के लिए तमाम योजनाएं बना रहे हैं । कई देशों की सरकारों से लेकर तमाम गैर सरकारी संगठन और भी न जाने कितने सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर आम लोग तक हर कोई पर्यावरण की चिंता में सेमिनार, संगोष्ठियां आयोजित कर रहे हैं, उसे बचाने की मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं लेकिन फिर भी नतीजा कुछ नहीं निकल रहा।

इस सबके बीच केरल के वायनाड जिले में मीनांगड़ी नाम का एक छोटा सा गांव भारत में पहला कार्बन निरपेक्ष (कार्बन न्यूट्रल) गांव बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और ऐसा कहा जा रहा है कि 2020 तक यह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। हालांकि केरल के इस गाँव की मुहिम से ओजोन की परत का क्षय होने से नहीं रोका जा सकता है लेकिन पर्यावरण को बचाने की दिशा में यह प्रयास सराहनीय ज़रूर है।

क्या है कार्बन न्यूट्रैलिटी

कार्बन न्यूट्रैलिटी का मतलब है, कार्बन का शून्य उत्सर्जन, जिससे जलवायु सही दिशा में परिवर्तित होती है। कार्बन न्यूट्रैलिटी की अवधारणा में कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष (CO2e) के संदर्भ में ग्रीनहाउस गैसों (CHG) – मीथेन (CH4)), नाइट्रोसोक्साइड (N2O), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), ट्रीफ्लोरोकार्बन (PFC) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (SF6 ) को शामिल किया गया हैं ।

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मीनांगड़ी की कहानी

उत्तरी केरल के पश्चिमी घाट में एक खूबसूरत पारिस्थितिकी तंत्र में स्थित मीनांगड़ी पंचायत ने 2020 तक कार्बन निरपेक्ष बनने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत की। साल 2016 में 5 जून यानि विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर गाँव में प्रयास शुरू किए थे। पिछले एक साल में गाँव की पंचायत और यहां के लोगों ने पूरी लगन और मेहनत से इस काम में देश की एक बड़ी समस्या को दूर करने की दिशा में काफी सफलता हासिल कर ली है।

जब इस योजना की शुरुआत हुई थी कन्नूर जीवविज्ञान विभाग के प्रतिनिधियों ने मीनांगड़ी पहुंचकर वहां की मिट्टी और पौधों आदि में कार्बन के स्तर का मूल्यांकन किया था। इसके बाद केरल कृषि विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों ने यहां 20 दिनों तक यहां की पंचायत को कार्बन लेवल के हिसाब से किस तरह इस परियोजना पर काम करना यह सिखया। कार्बन न्यूट्रल प्रोजेक्ट का शुरुआती काम था, अट्टाकोली जैवा पर्क यानि जैविक खेती की शुरुआत करना।

हानिकारक कीटनाशकों और सब्जियों व फलों के आयात के मौजूदा रुझान को बदलने की कोशिश में जैविक खेती की पहल पर 47 लाख रुपये खर्च किए गए। जैविक खेती प्रोत्साहित करने का लक्ष्य सिर्फ केमिकल रहित खाद्य सामग्री की पैदावार ही नहीं था बल्कि इसका उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन में क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाना भी था।

मिली सबकी मदद

जंगलों के पुनर्जीवीकरण के ज़रिए कार्बन लेवल को कम करने के लिए पंचायत ने गाँव के देवासम बोर्ड के मंदिर, मनरेगा टीम व सामाजिक वानिकी विभाग की मदद से ‘पुण्यवनम (पवित्र जंगल) परियोजना’ की शुरुआत की। इसके तहत, मंदिर के करीब लगभग 38 एकड़ जमीन का सीमांकन किया गया और कई किस्म के पौधे लगाए गए। पिछले एक साल में पंचायत ने मनरेगा के कार्यकर्ताओं की मदद और विभिन्न नर्सरी के माध्यम से 3 लाख पौधे वितरित किए हैं। खास बात यह है कि जिन लोगों को ये पौधे वितरित किए गए हैं मनरेगा कार्यकर्ता उनके घरों में जाकर उन्हें इन पौधों को लगाने और ध्यान रखने के तरीके बता रहे हैं। हाल ही में आए राज्य सरकार के बजट में मीनांगड़ी के को-ऑपरेटिव सर्विस बैंक के लिए 10 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिन्हें ये बैंक किसानों और क्षेत्र के बाकी लोगों को बांटेगी जिससे उन्हें पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने में मदद मिले।

वर्ल्ड बैंक से भी मिला फंड

इसके अलावा वर्ल्ड बैंक से भी पंचायत को फंड मिला है जिससे यहां वेस्ट मैनेजमेंट यानि कचरा प्रबंधन के लिए भी काम कर किया जा रहा है। यहां वेस्ट मै नेजमेंट प्लान बिल्कुल त्रिवेंद्रम की तरह है। इसके अलावा, व्यक्तिगत रूप से भी लोग पॉट कंपोस्ट और अन्य प्राकृतिक अपशिष्ट प्रबंधन विधियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। गाँव को पूरी तरह से कार्बन निरपेक्ष बनाने के लिए जल परियोजना पर भी ध्यान दिया जा रहा है। पानी का संचय करने के लिए पंचायत क्षेत्र में लगभग 456 तालाब व्यक्तिगत रूप से खोदे गए हैं। इन तालाबों से भूजल का स्तर बढ़ाने में मदद मिल रही है साथ ही क्षेत्र के कुओं को भी यहां से पानी दिया जा रहा है। इन 456 तालाबों में 423 तालाबों में मछली पालन भी किया जा रहा है।

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फ्री बांटी जा रही हैं साइकिल

मीनांगड़ी गाँव को कार्बन निरपेक्ष बनाने के लिए 80 लाख रुपये खर्च करके विद्युत शवदाह गृह बनाया गया है जिससे अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ियों के इस्तेमाल में काफी कमी आई है। यहां प्लास्टिक की थैलों को बंद करके हैंडलूम के थैलों का इस्तेमाल किया जा रहा है। स्कूल जाने वाले बच्चों को फ्री में साइकिल बांटी जा रही हैं और बाकी लोगों से भी इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे प्रदूषण रहित वाहनों का इस्तेमाल करें।

थीं कई मुश्किलें

हालांकि मीनांगड़ी के लोग अपने गाँव को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए पूरी लगन से प्रयास कर रहे हैं लेकिन यह इतना आसान भी नहीं था। वेबसाइट बेटर इंडिया के मुताबिक, सबसे ज़्यादा मुश्किल था यहां के लोगों को इन वैज्ञानिक तरीकों के बारे में बताना और उनका इस्तेमाल करने के लिए तैयार करना। कई लोगों का ऐसा मानना था कि यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से समृद्ध है इसलिए यहां कार्बन का स्तर शून्य ही होगा। इसलिए पंचायत के प्रतिनिधियों द्वारा लोगों को कार्बन निरपेक्ष परियोजना में शामिल करने के लिए कई सेमिनार, सभाओं और बैठकों का आयोजन किया गया और तस्वीरो व वीडियो के माध्यम से उन्हें इसके बारे में समझाया गया।

मिले हैं अवॉर्ड भी

मीनांगड़ी की पंचायत ने अपनी इस मुहिम से विश्व के कई देशों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ग्रीन केरल एक्सप्रेस रियलिटी शो में मीनांगड़ी पंचायत शीर्ष पांच पंचायतों में से एक थी। इसे पिछले तीन वर्षों से मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ पंचायत’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है।

(यह लेख मूल रूप से बेसिल पाउलोस के एक शोध का हिस्सा है जो उन्होंने ‘हीलिंग हाउस’ नामक डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए किया है। नई दिल्ली के रहने वाले बेलिस पाउलोस और जोएल पाउलेस मिलकर यह डॉक्यूमेंट्री बना रहे हैं।)

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