गेहूं की नई किस्म विकसित करने वाले किसान नरेंद्र सिंह मेहरा को भारत सरकार की तरफ से मान्यात मिल गई है, गेहूं की किस्म ‘नरेंद्र 09’ की कई खासियते हैं। इसका ट्रायल उत्तराखंड से लेकर राजस्थान तक किया गया, हर जगह अच्छे परिणाम मिले हैं।
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी ब्लॉक में गाँव मल्लादेवला के रहने वाले नरेंद्र सिंह मेहरा की पहचान एक सफल किसान के रूप में है। भूगोल से पोस्ट ग्रेजुएट और टूरिज्म में पीजी डिप्लोमा करने वाले नरेंद्र सिंह खेती में नए नए प्रयोग करते रहते हैं।
नरेंद्र सिंह मेहरा ‘नरेंद्र 09’ गेहूं किस्म की खासियतें बताते हैं, “इसमें दूसरे गेहूं के मुकाबले कल्ले अच्छे निकलते हैं, इससे इसमें बीज कम लगते हैं, जैसे कि दूसरे गेहूं अगर 40 किलो लग रहे हैं तो इसमें 35 किलो ही बीज लगता है। दूसरी बात इसके पौधे काफी मजबूत होते हैं तेज हवा और बारिश में गिरते नहीं और तीसरी बात इसकी बालियों में दाने बहुत अच्छे आते हैं, दूसरी किस्मों में जहां बालियों में 50-55 दाने होते हैं, इसमें 70 -80 तक दाने पहुंच जाते हैं।”
नरेंद्र सिंह मेहरा गेहूं की किस्म ‘नरेंद्र 09’ विकसित करने की पीछे की कहानी बताते हैं, “कुछ साल पहले हमारा जो क्षेत्र गोलापार यहां के किसान अनाज की खेती से हटकर सिर्फ टमाटर की खेती करने लगे थे, मान के चलिए सब टमाटर के पीछे लग गए थे, अनाज उगाना तो लोगों ने छोड़ ही दिया था। यह 2001 के बाद की बात है, तब मुझे लगा कि अनाज की अपनी जगह और अगर सब्जियों की खेती कर भी रहे हैं तो साथ में अनाज की खेती तो करनी चाहिए।”
वो आगे कहते हैं, “उस समय मैंने आरआर-21 किस्म का गेहूं लगाया था, एक दिन ऐसे ही घूम रहा था तो उस समय गेहूं की बालियां निकल गईं थी, दो तीन पौधे दिखे जो देखने में अलग थे और उनकी बालियां भी अलग थीं। तब मुझे लगा कि इसे अलग करना चाहिए, मैंने वहां पर निशान लगा दिया और जब फसल तैयार हुई तो उन्हें काटकर एक कांच की शीशी में रख लिया। फिर उसे छोटी सी क्यारी में बो दिया फिर अगले साल उसे और बढ़ा दिया, इस तरीके से एक समय ऐसा आया कि मेरे पास 80 किलो बीज इकट्ठा हो गए।”
80 किलो बीज इकट्ठा करने के बाद नरेंद्र सिंह ने इसे दूसरे किसानों को भी बोने को दिया है। नरेंद्र सिंह कहते हैं, “एक पौधा मैंने जड़ से उखाड़कर रख लिया था, एक बार किसानों का एक कार्यक्रम चल रहा था, जहां पर उन्होंने कुछ अधिकारियों के साथ किसानों को भी बुला रखा था। वहां पर मुझे भी बुलाया गया था तो मैंने कहा कि मैं अपना एक पौधा भी लाना चाहता हूं, वहीं से ज्यादा लोगों ने उसके बारे में जाना और अखबार में भी इसके बारे में छापा था, ये साल 2013 की बात है। मैं हर साल इसे बोता रहा और तब मुझे किसानों ने राय दी की इसका पेटेंट कराना चाहिए, मैं इसे लेकर पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय भी गया, वहां पर कहा गया कि इसे दो जगह पर बोया जाएगा, एक विश्वविद्यालय और एक किसान के खेत में।”
साल 2017 में नरेंद्र सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र ज्योलिकोट के माध्यम से पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण को भेजा, वहां नवंबर 2017 में इसे दर्ज करा दिया गया। आगे की प्रक्रिया के लिए कहा गया कि इसे पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के साथ ही, कृषि अनुसंधान केंद्र, मझेड़ा (नैनीताल) और कृषि विज्ञान केंद्र, ग्वालदम (चमोली) में इसका ट्रायल किया जाएगा। हर जगह पर इसका अच्छा रिजल्ट आया, तराई, पहाड़ी हर जगह पर इसके अच्छे परिणाम आए।
इसे हरियाणा, यूपी के साथ ही राजस्थान में भी बोया गया, हर जगह पर इससे अच्छी उपज मिली। पहाड़ों पर खेती के बारे में नरेंद्र सिंह ने बताया, “हमने सोचा कि हम जहां रहते हैं वो भाभरी एरिया है, भाभरी एरिया मतलब पर्वती और मैदानी क्षेत्र का जो बीच का हिस्सा होता है। यहां तो इसकी उपज तो अच्छी थी, यहां पर सिंचाई का देखा कि दूसरी किस्मों में 6 सिंचाई तक लगती है, इसमें 4 सिंचाई ही लगती है। जब हमने इसे पहाड़ों पर बोया तो देखा कि वहां पर वर्षा आधारित भी अच्छा उत्पादन देती है, अगर कोई किसान पहाड़ों पर बोता है वहां पर सर्दियों में अगर दो-तीन बारिश हो गई तो तब भी अच्छी फसल हो जाती है।”
इसकी सबसे अच्छी बात है कि यह राजस्थान में भी हो जाती है और उत्तराखंड के ग्वालदम जहां पर बर्फ गिरती है, वहां पर भी इसकी उपज मिल जाती है। हालांकि की बर्फ वाले इलाके में इसकी खेती का समय बढ़ जाता है।
नरेंद्र सिंह मेहरा हाल के कुछ वर्षों से जैविक खेती को बढ़ावा देने के मिशन में भी जुटे हैं। उनका मानना है कि जैविक खेती आने वाले समय के लिए एक बहुत बड़ी आवश्यकता होगी, देश की जनता को शुद्ध अनाज देना है तो जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा। खेतों में रसायनों के अधिक प्रयोग से भोजन की थाली जहरीली हो चुकी है। इससे इंसान कई बीमारियों की चपेट में आ रहा है, लिहाजा जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने की बहुत जरूरत है।