सस्ती तकनीक से किसान किस तरह कमाएं मुनाफा, सिखा रहे हैं ये दो इंजीनियर दोस्त

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सस्ती तकनीक से किसान किस तरह कमाएं मुनाफा, सिखा रहे हैं ये दो इंजीनियर दोस्तकिसानों को प्रशिक्षण देते इंजीनियर पवन शर्मा

लखनऊ। आगरा में एक छोटे से गाँव महगौली के रहने वाले पवन शर्मा बचपन से ही अपने पापा से किसानों को खेती के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में सुनते रहते थे। उनके पापा पहले किसान ही थे और गाँव में खेती करते थे लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उन्हें इतना मुनाफा नहीं मिल पाता था कि वे अच्छे से अपना घर चला सकें। इसलिए उन्होंने खेती करना छोड़ दिया और दिल्ली की एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में नौकरी करने लगे।

पापा से किसानी के क़िस्से सुनकर बड़े हुए पवन हमेशा से ही खेती-किसानी की दुनिया में वापस जाना चाहते थे और जब उन्होंने नॉदर्न इंडिया इंजीनियर कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ले ली उसके बाद उन्होंने सोचना शुरू किया कि अब अपने इंजनीरियंग कौशल का इस्तेमाल कृषि के क्षेत्र में करना चाहिए।

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किस्मत ने उनका साथ दिया और 2013 में वह आयुष अग्रवाल से मिले। आयुष भी एक इंजीनियर हैं जिन्होंने आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। पवन और आयुष एक ही अनाथालय में पढ़ाते थे, इस दौरान ही दोनों की मुलाकात हुई। जयपुर के रहने वाले आयूष भी किसानों के हितैषी थे और राजस्थान में बारिश की कमी से किसानों को होने वाली समस्याओं को लेकर परेशान रहते थे। आयूष और पवन के विचार एक ही जैसे थे इसलिए जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई और दोनों ने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया कि खेती के स्थायी तरीकों से किस तरह किसानों का मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।

और बना लिया कौशल ग्राम

कठिन शोध और स्टार्टअप के दो असफल प्रयासों के बाद आखिरकार अक्टूबर 2015 में दोनों दोस्तों ने मिलकर किसानों की मदद के लिए प्रोजेक्ट मॉडल तैयार किया और इसे नाम दिया कौशल ग्राम। अब प्रोजेक्ट कौशल ग्राम में किसानों को कृषि की नई तकनीकें सिखाई जा रही हैं। इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों के जरिए किसानों को खेती के व्यावसायिक मॉडल, आर्थिक सुधार की ट्रेनिंग भी दी जा रही है।

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21 गाँवों में कर रहे हैं काम

ये दोनों दोस्त मिलकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के 21 गाँवों में अपने प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और लगभग 3000 लोगों को इनके प्रोजेक्ट से फायदा मिल रहा है। यही नहीं आयूष और पवन ने बच्चों के लिए भी एक अभियान 'अ डे ऑफ जॉय' की शुरुआत की है। आयूष और पवन के लिए ये सफर आसान नहीं था। उनकी टीम से सिर्फ यही दो लोग थे और इनके पास कोई आर्थिक मदद भी नहीं थी। दोनों नौकरी भी करते थे इसलिए इनके पास सिर्फ छुट्टी का दिन ही होता था कि ये किसानों के हित के लिए काम कर सकें।

वीडियो के जरिए सिखा रहे खेती के तरीके

पवन बताते हैं कि मैं नैसकॉम फाउंडेशन में प्रोजेक्ट कंसल्टेंट हूं और आयूष पॉलिसी बाज़ार में डेटा साइंटिस्ट के तौर पर काम करता है। हम दोनों ने ही तय किया है कि हमारी सैलरी का कुछ हिस्सा हम इस काम के लिए रखेंगे और सप्ताह की छुट्टी के दिन इस प्रोजेक्ट पर काम करेंगे। लेकिन कम से कम समय में हज़ारों परेशान किसानों को हम मदद कैसे पहुंचा पाएंगे हमारे सामने ये प्रश्न खड़ा हुआ और तब हमने सोचा कि हम ऐसे सफल किसान जो तकनीक और किसानी के नए तरीकों का इस्तेमाल करते हैं व दूसरों के लिए मिसाल साबित हो सकते हैं उनका वीडियो बनाएंगे और गाँवों में जाकर प्रोजेक्टर पर दूसरे किसानों को दिखाएंगे जिससे वे आसानी से इन तरीकों को सीख सकें।

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हमने ऐसा इसलिए सोचा क्योंकि ज़्यादातर किसान उसी चीज़ पर भरोसा करते हैं जिसे वो खुद देखते हैं। कई किसान हमसे ये सवाल भी करते हैं कि हम इंजीनियर हैं किसान नहीं तो उन्हें कैसे सिखाएंगे, ऐसे में उन्हें ये दिखाना कि दूसरे किसान किस तरह इन तकनीकों का इस्तेमाल करके सफल हो रहे हैं, कई बार उन्हें समझाने में मददगार साबित होता है।

और बनाईं खेती की सस्ती तकनीकें

पवन और आयुष को यह भी पता चला कि ज़्यादातर किसानों के पास छोटे खेत होते हैं और वे आर्थिक रूप से इतने मज़बूत नहीं होते कि महंगी तकनीकों का इस्तेमाल कर सकें। इसलिए इन्होंने ऐसे छोटे किसानों के लिए सस्ती तकनीक बनाने का निश्चय किया और एक नया प्रोजेक्ट बनाया 'रूट टू रूट' (Route to root) यानि 'जड़ों तक पहुंचने का रास्ता'। इस प्रोजेक्ट के तहत इन दोनों इंजीनियरों ने इन तकनीकों को बनाया …

बायोगैस सिस्टम

इन इंजीनियर दोस्तों ने सिर्फ 5,000 रुपये की कीमत वाला पोर्टेबल बायोगैस प्लांट बनाया। यह किसानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ। इससे एक दिन में इतनी बायोगैस मिल जाती है कि 20 से 30 मिनट तक जलाई जा सके। इस बायोगैस संयत्र में गोबर सूक्ष्मजीवों के घोल में बदल जाता है और सिंचाई के दौरान पानी में मिलाकर सीधे खेतों में पहुंच जाता है जिससे फसल को जैविक खाद भी मिल जाती है। इस तरह के लगभग 40 बायोगैस प्लांट अलग अलग जगह पर लगाए जा चुके हैं।

सोलर ड्रायर

यह सौर ऊर्जा से चलने वाला एक यंत्र है जो फसल, फल और फूलों को सुखाने के काम आता है। खास बात यह है कि इसकी कीमत सिर्फ 4000 रुपये ही है। इसे घर पर अचार सुखाने में भी काम में लाया जा सकता है। फसल का भंडारण करने से पहले उसे ठीक से सुखाना होता है ऐसे में यहां भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्राकृतिक खेती पर कार्यशालाएं

आयुष और पवन नैचुरल फार्मिंग यानि प्राकृतिक खेती पर कार्यशालाएं भी आयोजित करते हैं। इसमें ये किसानों को उर्वरक बनाना, गोबर और गोमूत्र से बने कीटनाशकों का इस्तेमाल करना, बीज डालने के सही तरीके आदि के बारे में बताते हैं।

किसानों के लिए पूरा पोर्टल

ये दोनों इंजीनियर दोस्त चाहते हैं कि किसानों के लिए ये एक ऐसा पोर्टल बनाएं जहां वे आसानी से खेती से जुड़े सारे आयामों, मौसम, फसल, बीज, तकनीक हर चीज़ के बारे में जान सकें। पवन बताते हैं कि आजकल किसानों के लिए कई ऐप बनाई गई हैं लेकिन ज़्यादातर किसान इतने पढ़े लिखे नहीं होते कि इनका इस्तेमाल कर सकें। ऐसे में हम चाहते हैं कि हम एक ऐसा पोर्टल बनाएं जहां किसान हर चीज़ को बेहद आसानी से समझ सकें। आखिर छह महीने तक खुद पढ़ने और सीखने के बाद पवन और आयुष एक कृषि पोर्टल बना रहे हैं, जिसमें किसान मौसम पूर्वानुमान, राज्य और केंद्र किसान कल्याण नीति, प्राकृतिक और प्रभावी सूक्ष्म जीव कृषि पद्धतियों के बारे में जानने के लिए नामांकन कर सकते हैं।

इस पोर्टल में, किसान अपने मोबाइल नंबर को पंजीकृत कर सकते हैं और एसएमएस के माध्यम से अपनी स्थानीय भाषा में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि वे पढ़ने में असमर्थ हैं, तो उन्हें उनकी भाषा में भी कॉल के जरिए ये जानकारी दी जाएगी। किसानों के पास रोज़ सुबह एक कॉल जाएगी और उस दिन के मौसम और मौसम के हिसाब से फसल की सुरक्षा आदि के बारे में जानकारी मिल जाएगी। यह सेवा किसानों के लिए बिल्कुल मुफ्त होगी। लगभग 30,000 किसान अब तक इस पोर्टल में रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।

किसानों को जोड़ रहे डिजिटल इंडिया से

इसके अलावा ये किसानों को बैंकों से जुड़े काम, इंश्योरेंस, आदि के बारे में भी ट्रेनिंग देते हैं। वह बताते हैं कि आज जहां 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी डिजिटल ट्रांजेक्शन के बारे में नहीं जानती, ऐसे में हम उन्हें इस नई तकनीक के बारे में समझाने की कोशिश कर रहे हैं।

नोट - अगर आप इन इंजीनियर दोस्तों से संपर्क करना चाहते हैं तो आप गाँव कनेक्शन के फेसबुक पेज पर मैसेज करके उनका नंबर ले सकते हैं

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